03 March 2023 02:09 PM
रिंकी-पिंकी के इस प्रयास की प्रशंसा करुं या बचकाना कि उन्हें घर की पूरी सजावट, घर के बाहर का लुक, यहाँ तक कि मेरा सो-कॉल्ड सेमी मॉर्डन लुक को नया रुप देने का जुनून चढ़ा है। उन्हें वे अपने क्लासिक अंदाज में रिफोरमेशन कहती है। आप उसे बदलाव या सुधार भी कह सकते हैं। तर्क अनेक हैं।
मसलन... मैं कहती हूँ कि मैं अपने मौजूदा लुक से खुश हूँ। इस पर उनका कहना होता है कि आप परिवर्तन से डरते हो। बदलाव प्रकृति का स्वभाव है। इस मन्त्र को क्यों भूल जाते हो! दुनिया बदल रही है। हवा के साथ चलो... वगैरह... वगैरह।
मेरा जवाब- हवा तो बड़ी जहरीली हो रही है। कितना पॉल्यूशन है। हवा का साथ कैसे दें।
हाँ! आप बाहर की हवा नहीं बदल सकते, पर घर में प्यूरीफायर तो लगा सकते हैं। अपना नजरिया बदला और बदलाव का आनन्द लो। देखो... सुनीता (पड़ोसन) ने अपना घर कितना सुन्दर बना लिया है। अपने बालों को भी ब्लंट लुक देकर वेस्टर्न लुक कर लिया है। भले खाने में देशी परांठे उन्हें भाते हों, पर बाहर तो बदला हुआ लग रहा है ना...।
अपने आपको नया लुक देना मुझे भी अच्छा लगता है, पर सारे घर का फर्नीचर, बाहर का आउटलुक; इन सबमें कितना खर्च आता है, इन नादान लड़कियों को क्या पता। भई, जितनी चादर, उतने पैर पसारने चाहिए। ऐसा ज्ञानी लोग कह गये हैं।
रिंकी-पिंकी का तर्क- ये मुहावरे पुराने हो गए हैं। चादर छोटी हो तो बड़ी खरीद कर ले आओ। उसका पैटर्न बदला। इंटेलिजेंस लगाओ और बदलाव का आनन्द लो...।
इस आमूलचूल बदलाव के लिए मैं तो कतई तैयार नहीं। अपनी पुरानी चीजों से मुझे तो बड़ा लगाव है। इधर, ये लड़कियां पुरानापन स्वीकारने को तैयार नहीं। और उसके ऊपर यह मुआं इंटरनेट... वो भी इनका साथ दे रहा है। घर के फर्नीचर की तस्वीरें ओएलएक्स में डाल दी गयी हैं। यहाँ तक कि वह पुरानी ड्रेसिंग टेबल, जो मुझे दहेज में मिली थी... जो मेरे नवयौवना वधू के लुक से लेकर आज के परिपक्व मेकअप की छवि की साक्षी रही है। अब भला इसे कैसे बदल दूँ।
पर रिंकी-पिंकी का तर्क- यह टेबल छोटे कमरे में कितनी जगह रोके हुए है...!!!
मेरे दिल में इसके लिए जो जगह है, उसकी कोई अहमियत नहीं।
मम्मा! दिल से नहीं, दिमाग से सोचो। नये लुक में पुराना सामान कहाँ जँचता है। नयी व्यवस्था में तालमेल बैठाओ। अपनी पुरानी साडिय़ां बदलो या लेटेस्ट डिजाईन देकर नया आउटलुक बनाओ।
नये पुराने के भँवरजाल में फँसी मेरी सोच अभी उबरने का प्रयास कर ही रही थी कि इस बीच रिंकी-पिंकी ने कबड से कितनी सारी पुरानी साडिय़ां अपने आउटफिट लेकर दो बड़े बैग भर लिए...। यह सब किसी अनाथालय या जरुरतमंदों को दिए जाने थे। उन सबमें मेरी वह पुरानी कशीदाकारी की साड़ी भी थी, जिस पर कभी मैंने अपने हुनर से सुन्दर कढ़ाई की थी। यह सब मेरे लिए कितना मुश्किल था... मेरे घर के स्थूल बदलाव के साथ क्या सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं व्यक्तिगत सोच में भी बदलाव होने जा रहा है!!!
हाँ, बदला है ना... राहुल बोला।
मेरे ऑफिस के पियोन ने बालों में चुटिया बना ली है। मेरे साथ वाले केबिन के शर्माजी ने तिलक लगाना शुरु कर दिया है। पीछे दीवार पर गांधीजी के तस्वीर के ऊपर हनुमानजी की तस्वीर लगा ली है...। हाँ, मेरे बॉस बिलकुल नहीं बदले। वे अब भी पूरे सूट-बूट-टाई में ही नजर आते हैं। और उनकी वह आकर्षक सेक्रेटरी, आज भी अपने वेस्टर्न आउटफिट के साथ सबको मुस्कुराहट बाँटती है...।
वही तो... कुछ चीजें बदलती है क्या...?? सासु माँ का अपनी पुरानी लोहे की पेटी से अटूट मोह, कर्नल साहब का रोबदार अन्दाज, विधायक मनीराम जी का दलबदलू स्वभाव, सुनीता का रोजीना दोस्ती के पाले बदलना और मेरा हलुवा-पूरी का पसंदीदा खाना...। मैंने रिंकी-पिंकी को बदलाव वाली फिलॉसफी समझाने की कोशिश की।
नहीं माँ! बदला है ना, दादी माँ ने तय कर लिया है कि इस बार जब सब लोग यात्रा पर जाएंगे तो वे ठाकुरजी को पड़ौसियों के यहाँ भोग लगवाने की व्यवस्था हेतु नहीं छोडेंग़ी।
वह क्यों... मैंने पूछा।
क्योंकि वे समझ गयी हैं कि संसार को खिलाने वाले को भला भोग की क्या जरुरत। आपने भी तो कल हमारी कामवाली कमला को यह आश्वासन दिया था कि अब उसे शराबी पति से पिटने नहीं देंगी, उसको आप सुरक्षा देंगी। पापा ने भी तो मास्टर डिग्री के लिए मुझे बाहर भेजने की हामी भर दी। चीजें कितनी भी अच्छी हों, स्मॉर्टफोन की तरह कुछ देर बाद अपडेट करना होता है। और बदलाव अगर घर से करें तो बदलाव आएगा... लोग समझेंगे...।
रिंकी का बदलाव को लेकर बिंदास नजरिया मुझे आश्वस्त करता है। आज तो सासु माँ ने भी पिज्जा खाने की इच्छा जतायी है... बदलाव आ रहा है क्या...???
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