17 March 2022 03:19 PM
बीकानेर , 17 मार्च। अनंत की यात्रा पर चल दिए शासन माता जी असाधारण साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी. आज सुबह 8.45 बजे चौविहार संथारा में महाप्रयाण हो गया। आचार्य श्री महाश्रमण जी ने पांच दिवसीय आध्यात्मिक अनुष्ठान की घोषणा की है।महाप्रयाण यात्रा आध्यात्म साधना केन्द्र से सायं 4 बजे शुरू होकर सायं 5 बजे अनुकम्पा भवन में पहुंचेगी। जहां अंतिम संस्कार सम्पन्न होगा।
साध्वी प्रमुखा जी ने अपनी संघनिष्ठा अनुशासन, श्रद्धा- समर्पण और अथक परिश्रम के सहारे तीन-तीन तेजस्वी आचार्यों के वरदहस्त का सौभाग्य प्राप्त किया । इसी अकूत बल के सहारे आपने साध्वी कनक प्रभा से महाश्रमणी , संघ महानिदेशिका साध्वीप्रमुखा और असाधारण साध्वी प्रमुखा की अमाप्य ऊंचाई को छुआ । आपका व्यक्तित्व , कर्तृत्व व प्रबंधन बेजोड़ है.... श्लाघनीय रहा । चतुर्विध धर्मसंघ के विकास में आपका योगदान अतुलनीय रहा ।
कला से तुलसी की कलाकृति बनने तक की यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव रही है ....गंगाशहर की पुण्य धरा।
50 वर्ष पूर्व इसी पावन धरा पर आपका चयन साध्वी प्रमुखा के रूप में किया गया...... जो आज..... उन्नयन के चयन के रूप में प्रतिष्ठित है। सचमुच ! सृजन, कर्तृत्व, नेतृत्व, दायित्व ,विकास , संन्यास और उद्भव की सम्मिलित चैतन्य रश्मियों से आलोकित है आपका व्यक्तित्व। आपका जीवन लोककल्याण , नारी अभ्युत्थान एवं नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा में गतिमान रह। अर्द्ध शताब्दी से अधिक समय तक तेरापंथ धर्मसंघ को आपका आशीर्वाद मिलता रहा ।
साध्वी प्रमुखा श्री कनक प्रभा का जन्म से तेरापंथ संघ से संबंध रहा और संबंध भी प्रगाढ़ता की सीमा से भी अधिक गहरा था । कितनी भी आपत्ति क्यों न आयी हो , यह संब॔ध बना रहा और संबंध अधिक गहराता गया जिसका ही परिणाम रहा कि कनकप्रभा जी संघ महानिदेशिका असाधारण महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा के नाम से पूज्य बन गयी है अर्थात अमरत्व को प्राप्त कर लिया ।
आचार्य तुलसी के जीवन में लाडनूं और गंगाशहर दोनों कस्बों का महत्व है। उसी तरह से साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी के जीवन में इन दोनों कस्बों का महत्व रहा । लाडनूं जहाँ आचार्य तुलसी की जन्मभूमि है, वहाँ कला से कनकप्रभा जी का साध्वी के रूप में विक्रम संवत् 2017 को जन्म हुआ। गंगाशहर जो आचार्य तुलसी की पुण्यभूमि बना है, वहाँ वि.सं. 2028 में आचार्य तुलसी के कर-कमलों से उन्हें साध्वी प्रमुखा जी के पद पर प्रतिष्ठापित किया गया। महाश्रमणी का पद वि.सं. 2046 में तथा संघ महानिदेशिका का पद वि.सं. 2049 में लाडनूं में मिला। इस तरह से गंगाशहर के इतिहास में आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ, आचार्य महाश्रमण के साथ-साथ साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी का भी उल्लेख आता है।
सर्वस्व का त्याग करके आध्यात्मिक जीवन स्वीकार करके साधु-सन्त अपने विचारों से समाज को सीख देने का काम करते रहे . कनकप्रभा जी ने तेरापन्थ के तीन तीन आचार्यों के निर्देशन व दिशादृष्टि में अपने साध्वी प्रमुखा के पद को नयी उंचाईयों तक पहुंचाया । तेरापंथ ही नहीं पुरे जैन और साधू समाज में इतना लम्बा व सफलतम कार्यकाल किसी साध्वी प्रमुखा का पढ़ने में नहीं आता। कनकप्रभा जी ने अपने जीवन को अनुशासन व समर्पण की कसौटी पर इतना खरा साबित किया है की खरेपन के पैमाने ही बदल गए हैं जिसका जीता जागता उदाहरण आचार्य महाश्रमण द्वारा शासनमाता व असाधारण साध्वी प्रमुखा सम्बोधन से सम्बोधित करना रहा। तो स्वयं आचार्य तुलसी ने संघ महानिदेशिका व महाश्रमणी पद से सुशोभित करना भी था । तीन तीन आचार्यों के साथ लम्बी लम्बी यात्राएं करने से तेरापंथ के इतिहास में सर्वाधिक पद यात्रा करने का रिकॉर्ड भी साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी के नाम बन गया ।
.भारतीय संस्कृति व जैन संस्कृति को पल्ल्वित व पुष्पित करने का कार्य तेरापन्थ में बखूबी हो रहा है। तेरापंथ के 262 वर्षों के इतिहास में आचार्य तुलसी के काल से आचार्य महाश्रमण जी के काल तक साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी ने पूर्ण मनोयोग से इस परम्परा को अद्भुत ढंग से निर्वहन किया है। उन्होंने 17 वर्ष की उम्र में लेखन कार्य प्रारम्भ किया और सर्वप्रथम कानपुर से कोलकाता की अणुव्रत पदयात्रा का लेखन किया। अपने जीवन में साध्वी प्रमुखा जी ने साहित्यिक कृतियां, यात्रा साहित्य और सम्पादित साहित्य पर उल्लेखनीय कार्य करते हुए अनेक पुस्तकें लिखी है। जिसके चलते देश - विदेश की लम्बी लम्बी पदयात्राएं, आचार्य तुलसी वाङ्ग्मय के 108 ग्रन्थों का निर्माण करना हो या आगम मंथन के कार्य में सहभागिता निभानी हो अथवा अणुव्रत साहित्य लिखना हो या अपनी कविताओं व आलेखों इत्यादि का प्रकाशन सब में साध्वी प्रमुखा का असाधारण व्यक्तिव उभर कर आया ।
भाषा दर्शन और साहित्य तीनों क्षेत्रों में ऐसा महत्वपूर्ण काम किया, जिससे आने वाली पीढिय़ां प्रभावित होती रहेगी। उनकी कविताएं सुसज्जित भाषा का अनुपम उदाहरण है। कविताओं में प्रतीकों और बिम्बों का ऐसा सुन्दर व स्वाभाविक प्रयोग हुआ है, जो पाठक के मन में चित्र सा खींच देता है। काव्य की समृद्धि में आपका योगदान महत्वपूर्ण रहा । इन्होंने अपने मौलिक चिन्तन व लेखन से युग चेतना को प्रभावित करते हुए साहित्य भण्डार को समृद्ध किया । प्रसाद, निराला, महादेवी वर्मा, पंत और बच्चन से भी आगे जाकर भावनात्मक, श्रद्धा, समर्पण एवं अनुभूति की गहनता उनके काव्य की प्रमुख विशेषता रही ।
प्रमुखा पद के स्वर्णिम वर्ष पूर्णता पर अमृत महोत्सव का आयोजन करके तेरापंथ संघ ने संघ महानिदेशिका , असाधारण साध्वी प्रमुखा के प्रति अपना अहोभाव व्यक्त करते हुए अमृत महोत्सव के आयोजन से आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा देने का महनीय कार्य किया । संत समाज को जीवन भर में जो उन्हें प्राप्त होता है , वह सभी को मिले, इसलिये वो प्रयासरत रहते हैं. साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा जी पर यह कथन सटीक परिलक्षित हो रहा है। प्रतिदिन सैकड़ों - हजारों लोगों से मिलना उनकी बातें सुनना , दुःख दर्द समझना , पीड़ितों व शोक में डूबे व्यक्तियों को सांत्वना देना अर्थात उन सब की सार संभाल करने का कार्य जीवनभर चलता रहा है।
तेरापंथी महासभा के संरक्षक जैन लूणकरण छाजेड़ ने कहा कि
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा
गंगाशहर में विराजित समस्त चारित्र आत्माओं , जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा , गंगाशहर तथा गंगाशहर की समस्त तेरापंथी संस्थाओं , कार्यकर्ताओं व श्रावक समाज की तरफ से कनकप्रभा जी को श्रद्धांजलि व्यक्त की है ।
थार एक्सप्रेस परिवार की तो वो माँ थी। थैरेक्सप्रेस का लोकार्पण भी कनकप्रभा जी के कर कमलों से हुआ था।
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