19 November 2021 05:23 PM
गुरु नानक देव की शिक्षाएं सदैव सर्वकालीन
डॉ पीएस वोहरा, शिक्षाविद
संपूर्ण भारत कार्तिक माह की पूर्णिमा को सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव जी का जन्म दिवस को 'प्रकाश पर्व' के रूप में बड़ी उत्साह व श्रद्धा के साथ मनाता है। गुरु नानक जी 15 वीं सदी के उन भारतीय महापुरुषों व समाज सुधारकों में गिने जाते हैं जिनका प्रभाव संपूर्ण विश्व पर रहा है। उनके द्वारा दी गई शिक्षाएं व किए गए समाज सुधार के कार्य आज भी अपनी महत्वता रखते हैं।
गुरु नानक जी का जन्म 1469 को पंजाब के तलवंडी गांव जो आज पाकिस्तान में ननकाना साहब के नाम से प्रसिद्ध है, माता तृप्ता व पिता मेहता कालू जी के घर हुआ था। इतिहास बताता है कि नानक जी बचपन से ही बहुत धार्मिक व रूहानी प्रवृत्ति के इंसान थे। पारिवारिक मोह-माया में उनका लगाव नहीं था। विभिन्न सामाजिक समस्याओं, कुरीतियों के प्रति चिंतित रहना व मानवता की सेवा उनकी दिनचर्या का भाग था। उन्हें विभिन्न भाषाओं का ज्ञान था। उनका यह अटूट विश्वास भी था कि भगवान का एक ही रूप है पर उसे अलग-अलग नामों से माना व पूजा जाता है।
15वीं सदी के भारतीय समाज में गुरु नानक जी की स्वीकार्यता तत्कालीन संपूर्ण समाज व सभी प्रचलित धर्मों में थी। उन्होंने अपने द्वारा रचित वाणी व भजनों के माध्यम से समाज की विभिन्न समस्याओं पर प्रहार किया था जिसमें सांप्रदायिकता, जातिवाद, आर्थिक संपन्नता के हिसाब से ऊंच-नीच, मूर्ति पूजा, ईश्वर के नाम पर प्रचलित विभिन्न तरह के आडंबर आदि।
गुरु नानक जी ने अपने जीवन में विभिन्न सामाजिक संदेशों को देने के लिए 1499 से 1524 तक के 25 वर्षों में तकरीबन 28000 किलोमीटर की यात्राएं की। सिख धर्म में इसे गुरु नानक जी की 'चार उदासियों' के नाम से भी जाना जाता है। इन यात्राओं में उन्होंने पूर्वी भारत, दक्षिण भारत, श्रीलंका, अफगानिस्तान, तिब्बत, चीन व अरब देशों के विभिन्न भाग मुख्य हैं। उन्होंने अपनी यात्राओं के माध्यम से हिंदू और मुसलमान के मध्य किसी भी तरह के भेद को खत्म करने पर सदैव जोर दिया था। उनकी यात्राओं में उनके साथ सदैव मरदाना नाम के व्यक्ति रहे जो कि मुस्लिम धर्म से संबंधित थे।
गुरु नानक देव दार्शनिक होने के साथ-साथ बहुत दूरदर्शी भी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में मानवता की सेवा को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी। इसी उद्देश्य को ध्यान रखते हुए उन्होंने गरीब,असहाय व असमर्थ लोगों के लिए मुफ्त खाने की प्रथा को शुरू किया जिसे आज 'लंगर' के रूप से जाना जाता है। इतिहास बताता है कि नानक जी के पिता ने उन्हें उस समय ₹20 व्यापार करने के लिए दिए थे जिसे उन्होंने व्यापार की बजाए साधु-संतों व गरीबों को भोजन खिलाने में लगा दिया। वही लंगर की प्रथा आज सिख धर्म के सभी गुरुद्वारों में श्रद्धा के साथ चलती है तथा जिसे संपूर्ण विश्व मानवता की सेवा के रूप में बड़ी इज्जत के साथ स्वीकार करता है। गुरु नानक ने 15वीं सदी में ही नारी की महत्वता पर भी अत्यंत जोर दिया था तथा नारी को पुरुष के बराबर हक दिलाने की सदैव मांग की। अपने द्वारा रचित गुरबाणी में नारी के संबंध में कहां है कि जो नारी राजाओं को पैदा करती है उसे, उसके हक से कैसे वंचित किया जा सकता है। तत्कालीन समाज में प्रचलित सती प्रथा का भी उन्होंने बहुत कड़ाई के साथ विरोध किया था।
सिख धर्म को गुरु नानक देव ने तीन मुख्य सिद्धांतों पर कार्य करने को कहा है। जिनमें, एक ईश्वर पर विश्वास रखना, इमानदारी से अपना रोजगार कमाना व अपनी आय का निश्चित भाग को परोपकारी सेवाओं व गरीबों के हित में लगाना। गुरु नानक देव का विवाह सुलखनी देवी के साथ हुआ था तथा उनके दो पुत्र भी थे। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में गुरु नानक देव करतारपुर साहिब में रहे थे।
RELATED ARTICLES
भागवत कथा स्थल पर कृष्ण जन्मोत्सव व नंदोत्सव में भक्ति, नृत्य व जयकारों की गूंज
27 May 2023 03:57 PM