राजस्थान में भूमि घोटाला और भ्रष्टाचार का भयानक चक्र! सौर ऊर्जा के नाम पर छिन रही आमजन की ज़मीन, अनुसूचित जातियों पर कहर!


- रेगिस्तान में उगते सूरज की परछाइयों में छिपा अंधेरा!
- राजस्थान के सौर क्रांति में जल रहा जनजीवन, हाशिये पर इंसान – मुनाफे में कंपनियां!
जयपुर, 3 जून, 2025: राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर ज़िलों में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए सरकारी ज़मीन के अंधाधुंध आवंटन ने एक गहरा सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक संकट खड़ा कर दिया है। ओरण और चारागाहों के लिए आरक्षित सार्वजनिक भूमि का निजी कंपनियों को बेहिसाब हस्तांतरण स्थानीय निवासियों और पशुधन के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गया है। इस पूरे प्रकरण में न केवल जनता को भारी दिक्कतें आ रही हैं, बल्कि प्रशासनिक और नीतिगत स्तर पर भी गंभीर अनियमितताएं और भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं।




बेहिसाब ज़मीन आवंटन: सरकारों की अंधाधुंध रेवड़ी


विधानसभा में प्रस्तुत दस्तावेज़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में पूरे राज्य में 1,57,343 बीघा भूमि विभिन्न कंपनियों को सौर ऊर्जा संयंत्रों के लिए दी जा चुकी है। 2018 से 2023 के बीच जैसलमेर में अकेले अडानी रिन्युएबल एनर्जी पार्क लिमिटेड को 42,500 बीघा सहित कुल 70,500 बीघा ज़मीन आवंटित की गई। इसके अतिरिक्त, बीकानेर और फलोदी ज़िलों में भी हज़ारों बीघा भूमि का आवंटन अडानी, लार्सन एंड टूब्रो, एस्सेल सौर्य ऊर्जा, एसबीई रिन्युएबल एनर्जी और वंडर सीमेंट जैसी बड़ी कंपनियों को किया गया है। राजस्थान सरकार ने 2015 से 2024 तक अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में 13.12 लाख करोड़ रुपये के समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं, और सूत्रों के अनुसार, अभी 40 पाइपलाइन परियोजनाओं के लिए सवा दो लाख हेक्टेयर भूमि की और आवश्यकता है।
अनुसूचित जातियों/जनजातियों की ज़मीन पर गिद्ध दृष्टि: कानून बदलने की साज़िश
इस भूमि अधिग्रहण की होड़ ने हाशिये के समुदायों, विशेषकर अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर गंभीर संकट पैदा कर दिया है। राजस्थान का काश्तकारी अधिनियम, 1955 इन समुदायों की कृषि भूमि को गैर-एससी/एसटी व्यक्तियों या संस्थाओं को हस्तांतरित करने पर रोक लगाता है, लेकिन अब इस कानून को बदलने की प्रक्रिया चल रही है। पिछले दिसंबर में कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने घोषणा की कि मंत्रिमंडल ने राजस्थान भू-राजस्व (ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि भूमि का अकृषि प्रयोजनार्थ संपरिवर्तन) नियम, 2007 में संशोधन को मंजूरी दी है, जिससे एससी-एसटी वर्ग के काश्तकारों की कृषि भूमि का सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए परिवर्तन हो सकेगा। दलित लेखक और कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी का कहना है, “यह बदलाव निजी कंपनियों के हित में हो रहा है, लेकिन इसे दलित किसानों के हित में बताया जा रहा है। अगर दलित किसानों के हाथों से उनकी ज़मीन निकल गईं तो फिर उनके पास न भूमि रहेगी और न पैसा।”
अवैध आवंटन और जन आक्रोश: आंदोलन की आग
बाड़मेर-जैसलमेर में चारागाहों और ओरण की सार्वजनिक भूमियां, जो स्थानीय समुदायों के लिए जीवनरेखा हैं, राजस्व रिकॉर्ड में समुचित तरह से दर्ज नहीं थीं। पटवारी, नायब तहसीलदार और एसडीएम जैसे अधिकारी इसी कानूनी पेच का फायदा उठाकर इन ज़मीनों को कंपनियों को दे रहे हैं, जिससे स्थानीय समुदाय बेघर और बेसहारा हो रहे हैं। बइया, नेचसी, चीता, जेराब और बिंजोता जैसे गांवों में महीनों से किसान आंदोलन कर रहे हैं। नेपसी गांव में एक बड़ा तालाब और विदेशी पक्षियों का वासस्थान भी सौर कंपनियों को दिया जा रहा है, जिससे पर्यावरण प्रेमियों में भी भारी रोष है।
भ्रष्टाचार का नया गढ़: काला पानी बना चांदी की खान
कभी “काला पानी” समझे जाने वाले बाड़मेर और जैसलमेर ज़िले अब भ्रष्टाचार का नया केंद्र बन गए हैं। सौर और पवन ऊर्जा कंपनियों के आगमन के बाद सरकारी कर्मचारी यहां नियुक्ति के लिए लालायित हैं। ज़मीन के पंजीकरण से संबंधित कानूनी सलाहकारों और दलालों की फौज खड़ी हो गई है। एसीबी के पुलिस महानिदेशक डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा के अनुसार, बालोतरा के सहायक प्रशासनिक अधिकारी आशीष रंजन विश्वास को होली के दिन स्टांप वेंडरों, डीडराइटरों और पंजीयन दलालों से एक प्रतिशत राशि वसूल करते हुए पकड़ा गया, जिससे 2.29 लाख रुपये बरामद हुए। एसीबी के सूत्रों के अनुसार, अब भ्रष्ट अधिकारियों की सूची में गंगानगर की जगह बाड़मेर ने ले ली है। जैसलमेर की भणियाणा तहसीलदार सुमित्रा चौधरी को 15 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया, और बालोतरा जिले के पटवारी किशनाराम को भी रिश्वत लेते पकड़ा गया। जोधपुर डिस्कॉम का एक इंजीनियर भी रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार हुआ है।
प्रशासनिक दुराचार और सांठगाठ के गंभीर आरोप
जैसलमेर में पोकरण के तत्कालीन एसडीएम प्रभजोतसिंह गिल ने ज़िला कलेक्टर प्रतापसिंह नाथावत पर एक सौर कंपनी के पक्ष में दबाव डालने का आरोप लगाया है, जिसके बाद गिल का तबादला कर दिया गया। यह प्रकरण प्रशासनिक निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। इसी तरह, बाड़मेर जिले के एसडीएम अनिल कुमार जैन पर अपने परिवार के नाम से 2,350 बीघा भूमि कंपनियों को बेचने और सीलिंग कानून का उल्लंघन करने का आरोप है। यह मामला राजस्थान विधानसभा और लोकसभा दोनों में उठ चुका है।
रेगिस्तान अपनी ही बिजली से वंचित: जनता के साथ अन्याय
एक और विडंबना यह है कि इन सौर परियोजनाओं से उत्पादित बहुत कम बिजली राजस्थान को मिल पा रही है। कंपनियों के साथ राज्य के अक्षय ऊर्जा निगम का बिजली आपूर्ति के लिए कोई अनुबंध नहीं हुआ है, और 74 प्रतिशत सस्ती बिजली दूसरे राज्यों में बेची जा रही है। किसान रवींद्रसिंह चारण का कहना है, “हमारे चारागाहों पर बने पावर प्लांट हमें एक यूनिट बिजली भी नहीं देते।” ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर का कहना है कि यह कंपनियों के पावर परचेज एग्रीमेंट पर आधारित है। 22 प्रतिशत सोलर रेडिएशन के साथ देश में अग्रणी होने के बावजूद, राजस्थान अपनी ही बिजली से वंचित है।
यह पूरा प्रकरण राजस्थान के गौरव, उसकी ज़मीन और उसके लोगों के साथ हो रहे अन्याय की एक भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है। सरकार को तत्काल इस भूमि घोटाले और भ्रष्टाचार पर लगाम लगानी होगी, अन्यथा यह सामाजिक-सांस्कृतिक संकट और गहरा जाएगा।