शिक्षा विभाग की भेदभावपूर्ण नीति का विरोध



बीकानेर , 21 सितम्बर। राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय ने शिक्षा मंत्री को एक पत्र लिखकर शिक्षा विभाग की भेदभावपूर्ण नीति का विरोध किया है। संघ ने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर द्वारा जारी उस आदेश पर रोष जताया है जिसमें 10वीं और 12वीं की मुख्य परीक्षा में 40 से कम अंक लाने वाले विद्यार्थियों की जानकारी मांगी गई है।
अंकों की अलग-अलग गणना का विरोध
संघ के प्रदेश महामंत्री महेंद्र कुमार लखारा ने इस आदेश को शिक्षकों के बीच असंतोष का कारण बताया। संगठन के प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष रवि आचार्य ने पत्र में कहा कि वर्तमान परीक्षा प्रणाली में 20 अंक सत्रांक के रूप में भेजे जाते हैं, जिनमें से 10 अंक केवल उपस्थिति, प्रोजेक्ट और व्यवहार के लिए होते हैं। बाकी 80 अंकों की लिखित परीक्षा होती है। शिक्षक संघ का कहना है कि 10 अंकों के लिए राज्य स्तर पर समान परीक्षा से ही प्रश्नपत्र तैयार किया गया था, इसलिए मुख्य परीक्षा और विद्यालय परीक्षा के अंकों की अलग-अलग गणना करना उचित नहीं है।




शिक्षकों पर गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ
प्रदेश अध्यक्ष रमेश पुष्करणा ने कहा कि निदेशक द्वारा जारी यह आदेश राजकीय विद्यालयों और शिक्षकों की प्रतिष्ठा को कम करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार एक तरफ शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ शिक्षकों पर शाला दर्पण, पोषाहार, बीएलओ, और विभिन्न जयंतियों जैसे गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ डाल रही है। इससे शिक्षक अपने मुख्य शिक्षण कार्य से दूर हो जाते हैं, जिससे शिक्षण में सुधार के प्रयास सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाते हैं।


जिलाध्यक्ष मोहन भादू और जिला मंत्री नरेंद्र आचार्य ने कहा कि पर्याप्त स्टाफ न होने के बावजूद भी सरकारी स्कूलों के शिक्षकों ने पिछले वर्षों में बेहतर परिणाम दिए हैं। संगठन ने शिक्षा और शिक्षक हितों को नुकसान पहुँचाने वाले इस आदेश को तुरंत रद्द करने की मांग की है।