राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में राजभाषा कार्यशाला आयोजित



बीकानेर, 26 सितंबर । भाकृअनुप–राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर द्वारा आज “हिन्दी भाषा: व्याकरणिक एवं अध्यात्म की दृष्टि से” विषय पर एक राजभाषा कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला केन्द्र में 14 सितंबर से शुरू हुए हिन्दी चेतना मास के तहत आयोजित की गई।
भाषा, संस्कृति और शुद्ध प्रयोग पर जोर
मुख्य अतिथि वक्ता डॉ. चंचला पाठक (वरिष्ठ साहित्यकार, बीकानेर) ने अपने उद्बोधन में विचारों और मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिए भाषा को जीवन का अपरिहार्य अंग बताया।
शुद्धता का महत्व: उन्होंने हिन्दी के शुद्ध प्रयोग पर बल दिया और कहा कि जबकि बोलचाल में अशुद्धियाँ स्वीकार्य हो सकती हैं, लेखन में इनसे बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा का विकास और परिष्कार तभी संभव है जब हम उसकी शुद्धता पर ध्यान दें। उन्होंने भारतीय संस्कृति की विशिष्टता पर प्रकाश डाला और रेखांकित किया कि भारत जैसे विशाल देश को एक सूत्र में पिरोने के लिए हिन्दी को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए।




भाषा और विकास का सकारात्मक दृष्टिकोण
केन्द्र के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने कहा कि यदि भाषा का अस्तित्व न होता तो मानव जीवन में कई आवश्यक वस्तुएँ और धारणाएँ भी अस्तित्व में नहीं आतीं। उन्होंने सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने पर बल दिया।विश्वास जताया कि विज्ञान की प्रगति से भाषा संबंधी कई जटिलताएँ सरल और स्पष्ट हो जाएँगी।हिन्दी की विभिन्न विशेषताओं पर भी प्रकाश डाला। राजभाषा नोडल अधिकारी डॉ. राकेश रंजन ने कार्यशाला के उद्देश्य और हिन्दी चेतना मास की गतिविधियों की जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन मुख्य तकनीकी अधिकारी श्री नेमीचन्द बारासा ने किया।




