प्राइवेट स्कूलों की मनमर्जी पर लगाम, दिल्ली सरकार ने फीस नियंत्रण के लिए नया कानून लागू किया


नई दिल्ली, 13 दिसंबर। दिल्ली सरकार ने निजी स्कूलों द्वारा अनियंत्रित फीस बढ़ोतरी पर लगाम कसते हुए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। लाखों अभिभावकों के लिए राहत की खबर है कि निजी स्कूलों की फीस व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया नया कानून अब औपचारिक रूप से लागू कर दिया गया है। इस कानून के तहत, फीस तय करने की प्रक्रिया अब स्कूलों की मनमर्जी के बजाय तय नियमों और पूर्ण पारदर्शिता के दायरे में होगी।
फीस वृद्धि से पहले वित्तीय ब्यौरा अनिवार्य
नए कानून के तहत निजी स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले अपनी पूरी वित्तीय स्थिति सार्वजनिक करनी होगी।



पारदर्शिता: स्कूलों को अपनी आय, खर्च और प्रस्तावित फीस का विस्तृत ब्यौरा शिक्षा विभाग को देना अनिवार्य होगा।



मंजूरी की प्रक्रिया: शिक्षा विभाग इन आंकड़ों की गहराई से जांच करेगा और यदि वे नियमों के अनुरूप पाए जाते हैं, तभी फीस वृद्धि को मंजूरी दी जाएगी। फीस से जुड़ी हर प्रक्रिया, जांच से लेकर निगरानी तक, अब एक तय कानूनी ढांचे के तहत चलेगी।
कैपिटेशन फीस और छिपी वसूली पर रोक
शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने इस कानून को शिक्षा व्यवस्था में बड़ा सुधार बताते हुए कहा कि शिक्षा को अब मुनाफे का जरिया नहीं बनने दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि आर्थिक कारणों से किसी भी बच्चे की पढ़ाई में बाधा न आए।
अवैध वसूली पर रोक: कानून के तहत कैपिटेशन फीस या किसी भी तरह की छिपी हुई वसूली पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। स्कूल केवल उन्हीं सुविधाओं की फीस ले सकेंगे, जिनका छात्र वास्तव में लाभ उठाता है।
नो-प्रॉफिट, नो-लॉस: सभी उपयोगकर्ता-आधारित शुल्क ‘नो-प्रॉफिट, नो-लॉस’ के सिद्धांत पर तय होंगे।
फंड का समायोजन और जवाबदेही
कानून में निजी स्कूलों की वित्तीय जवाबदेही बढ़ाने के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं:
वित्तीय रिकॉर्ड: निजी स्कूलों को अब हर मद के लिए अलग-अलग वित्तीय रिकॉर्ड रखना होगा और अपनी संपत्तियों का पूरा विवरण तैयार करना अनिवार्य होगा।
फंड समायोजन: अभिभावकों से लिया गया पैसा सीधे किसी ट्रस्ट या सोसायटी को ट्रांसफर नहीं किया जा सकेगा। यदि साल के अंत में कोई अतिरिक्त राशि बचती है, तो उसे या तो लौटाना होगा या अगली फीस में समायोजित करना पड़ेगा।
फीस रेगुलेशन कमेटी का गठन
इस कानून की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सभी निजी स्कूलों पर समान रूप से लागू होगा, चाहे वे अल्पसंख्यक हों या सरकारी जमीन पर बने हों।
कमेटी संरचना: हर स्कूल में एक फीस रेगुलेशन कमेटी बनेगी। इसमें स्कूल प्रबंधन, शिक्षा विभाग का प्रतिनिधि, और लॉटरी के जरिए चुने गए पाँच अभिभावक शामिल होंगे।
अधिकार: यह कमेटी फीस को घटा सकती है या उसे मंजूरी दे सकती है, लेकिन फीस बढ़ाने का अधिकार इसके पास नहीं होगा।
स्थायित्व: एक बार तय हुई फीस तीन साल तक बदली नहीं जा सकेगी।
सरकार का मानना है कि इस कानून से निजी स्कूलों की जवाबदेही बढ़ेगी और अभिभावकों का शिक्षा व्यवस्था पर भरोसा मजबूत होगा। अभिभावक अब नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूलों की सीधे शिकायत दर्ज करा सकते हैं, जिस पर त्वरित कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।








