राष्ट्रवाद और वसुधैव कुटुंबकम् पर परिचर्चा, वेद और महर्षि दयानंद की दृष्टि



बीकानेर , 4 अक्टूबर। स्थानीय होटल पाणिग्रहण में ‘राष्ट्रवाद और वसुधावाद-वेद व महर्षि दयानंद की दृष्टि में’ विषय पर दो दिवसीय परिचर्चा एवं विचार गोष्ठी का आयोजन शुरू हुआ। इस कार्यक्रम का आयोजन आर्ष न्यास अजमेर, पर्यावरण पोषण समिति बीकानेर और आर्य समाज के पदाधिकारियों द्वारा किया गया। उद्घाटन सत्र का संचालन हैदराबाद से पधारे आचार्य हरिप्रसाद ने किया।
प्रथम सत्र: भाषा, वेदों और विचारों का महत्त्व
प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ. नरेश धीमान ने की और संचालन डॉ. दीपक आर्य ने किया। डॉ. प्राचेतस (प्रयागराज): उन्होंने सामान्य जनता तक पहुँचने के लिए स्वभाषा (मातृभाषा), राष्ट्रभाषा के उपयोग पर बल दिया। महर्षि दयानंद का उदाहरण देते हुए कहा कि गुजराती मातृभाषा और संस्कृत में अध्ययन के बावजूद महर्षि ने सदैव हिंदी भाषा को बढ़ावा दिया। उन्होंने वेदों की ओर लौटकर बुराइयों को दूर करने और मानवता के विकास का आह्वान किया।




आचार्य अजय (अहमदाबाद): कंप्यूटर विशेषज्ञ आचार्य अजय ने राष्ट्र के लिए उपयोगी सकारात्मक विचार पर बल दिया, क्योंकि अनुपयोगी विचार ही राष्ट्र के पतन का कारण बनते हैं। उनके अनुसार, वेदों का छूट जाना ही जातिवाद, भाषावाद और क्षेत्रवाद के हावी होने का मूल कारण है। उन्होंने पक्षपात रहित नीतियों और कर्तव्य का स्वबोध रखने वाले कुशल नागरिकों की आवश्यकता बताई।



स्वामी सत्येंद्र: उन्होंने युवाओं को महर्षि के विचारों से अवगत कराने को कर्तव्य बताया ताकि सही राष्ट्रवाद उत्पन्न हो। उन्होंने कहा कि राष्ट्र को नष्ट करने के लिए उसकी शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता और भाषा में बदलाव करना ही काफी है। उन्होंने छात्रों के लिए जितेंद्रिय (इंद्रियों पर नियंत्रण) होने को राष्ट्र और समाज के लिए योग्य बनने की शर्त बताया।
मनीषा आर्या सोनी (साहित्यकार/कवयित्री): उन्होंने वसुधैव कुटुंबकम् के विचार पर बल दिया और कहा कि मानव मूल्य, आध्यात्मिक मूल्य और नैतिक मूल्यों की स्थापना ही राष्ट्रवाद है। राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा और सुधार के लिए स्त्री की सुरक्षा, शिक्षा और समानता पर विशेष बल देना होगा।
पद्मश्री आचार्या सुकामा का उद्बोधन
रुड़की से पधारीं पद्म श्री आचार्या सुकामा ने कहा कि ‘राष्ट्र’ और ‘वसुधा’ शब्द अपने आप में पूर्ण हैं और वेदों के उदाहरण हमें सन्मार्ग प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि राष्ट्र तभी समृद्ध होगा जब प्रत्येक नागरिक में आठ गुण समाहित हों। सत्य निष्ठ, वृहद (समृद्ध), न्यायोचित व्यवहार, अन्याय का विरोध, कर्तव्यों के प्रति ईमानदारी, सहिष्णुता, ज्ञान का उच्च स्तर/श्रेष्ठ जीवन, दान (त्याग एवं बलिदान)
द्वितीय सत्र और समापन
परिचर्चा के द्वितीय सत्र में डॉ. दीपक आर्य (रोजड), स्वामी श्रेयस्पति, डॉ. नरेश धीमान (अजमेर), विमर्शानंद महाराज (लालेश्वर महादेव मंदिर के अधिष्ठाता), और प्रोफेसर रवि प्रकाश (रोहतक) ने अपने विचार व्यक्त किए। परिचर्चा के अंत में उपस्थित दर्शकों की जिज्ञासाओं का सहज रूप से समाधान किया गया और दर्शकों ने कार्यक्रम के अंतिम सत्र में सत्संग का लाभ उठाया।

