ऊंटनी के दूध उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर जोर



बीकानेर , 21 सितम्बर। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र (NRCC) ने अपने उन्नयन दिवस पर ऊंटनी के दूध उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर जोर दिया। इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने ऊंटों की घटती संख्या पर चिंता जताई और इस व्यवसाय को बचाने के लिए नए वैज्ञानिक तरीकों और व्यावसायिक रणनीतियों की आवश्यकता पर बल दिया।
ऊंटनी के दूध उत्पादों को बढ़ावा देने पर जोर
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार ने कहा कि ऊंटों की स्थिति सुधारने के लिए वैज्ञानिकों को मिशन मोड में काम करना चाहिए। उन्होंने ऊंटनी के A2 दूध और घी की प्रोसेसिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर जोर देते हुए कहा कि इससे उत्पादों की कीमत कई गुना बढ़ाई जा सकती है। उन्होंने इको-टूरिज्म, क्लोनिंग, और मिश्रित दूध (फॉर्मुलेशन) जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ावा देने की भी बात कही।




डॉ. संजय कुमार ने कहा कि ऊंट पालक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) जैसी योजनाओं का लाभ उठाकर ग्रामीण स्तर पर ही दूध भंडारण और प्रसंस्करण की छोटी इकाइयां शुरू कर सकते हैं। उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सभी संस्थानों में भी ऊंटनी के दूध उत्पादों के उपयोग का सुझाव दिया।


ऊंट पालन व्यवसाय की चुनौतियाँ
NRCC के निदेशक डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने बताया कि देश में ऊंटों की संख्या घट रही है। उन्होंने इस व्यवसाय की कुछ प्रमुख चुनौतियों को रेखांकित किया:
- चराई के प्रतिबंधित क्षेत्र
- विभिन्न राज्यों के बीच ऊंटों के आवागमन में बाधा
- दूध की उचित कीमत न मिलना
- युवा पीढ़ी का इस व्यवसाय से पलायन
विशेषज्ञों के विचार
डॉ. आर्तबंधु साहू (निदेशक, राष्ट्रीय पशु पोषण शरीर क्रिया विज्ञान संस्थान) ने गुजरात से प्रेरणा लेकर ऊंटनी के दूध को व्यावसायिक रूप देने पर जोर दिया।
डॉ. अरुण कुमार तोमर (निदेशक, केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान) ने कहा कि ऊंट और ऊंट गाड़ी का महत्व हमेशा बना रहेगा और इनका संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।
इस अवसर पर, NRCC में पौधारोपण, किसानों का सम्मान, और ऊंट सजावट प्रतियोगिता जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्याम सुंदर चौधरी ने किया, जबकि डॉ. प्रियंका गौतम ने इसकी रूपरेखा तैयार की।