राजस्थानी मान्यता के समर्थन में हिंदी, उर्दू और राजस्थानी कवियों ने भरी हुंकार


मायड़ भासा रौ आखौ कुटम्ब मांगै इधकार’


बीकानेर, 15 दिसंबर। ( थार एक्सप्रेस ) महान इटालवी विद्वान डॉ. टैस्सीटोरी को समर्पित दो दिवसीय ‘सिरजण उछब’ समारोह का दूसरा दिन लक्ष्मीनारायण रंगा सृजन सदन में आयोजित किया गया। इस दिन का कार्यक्रम राजस्थानी भाषा मान्यता को केन्द्र में रखकर आयोजित काव्य गोष्ठी पर केंद्रित रहा, जिसने मान्यता आंदोलन को एक नया आयाम दिया।


हिन्दी, उर्दू और राजस्थानी कवियों की नई पहल
काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि इस आयोजन के तहत पहली बार हिन्दी, उर्दू और राजस्थानी के कवि-शायरों ने एक साथ मंच साझा किया। इन कवियों ने राजस्थानी भाषा मान्यता के पक्ष में अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का वाचन कर एक नई पहल की है, जिससे मान्यता आंदोलन को भारतीय भाषाओं का भी बल मिला है।
‘मायड़ भासा रौ आखौ कुटम्ब’ कविता से मांग
कार्यक्रम अध्यक्ष कमल रंगा ने अपनी ओजस्वी कविता “मायड़ भासा रौ आखौ कुटम्ब मांगै इधकार/मत्ती करौ अळावा-छळावा…” प्रस्तुत कर करोड़ों राजस्थानियों के वाजिब हक की पुरजोर मांग उठाई। वहीं, उर्दू शायर ज़ाकिर अदीब ने अपनी ताज़ा ग़ज़ल का शेर— “हमें हुनर नसीब है/आया है हमें बोलने का हुनर…” पेश कर मान्यता के पक्ष में माहौल बनाया। एक अन्य शायर क़ासिम बीकानेरी ने अपनी ग़ज़ल— “ज़ंजीर से गुलामी की आजाद अब करो…” को राजस्थानी मान्यता के समर्थन में रखा।
इस अवसर पर विभिन्न भाषाओं और शैलियों के कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं:
डॉ. नृसिंह बिन्नाणी ने राजस्थानी हाइकु पेश कर अपनी बात रखी। कवि गिरिराज पारीक ने “राजस्थानी को दिया सम्मान” शीर्षक से कविता प्रस्तुत की। कवयित्री इन्द्रा व्यास ने अपने गीत “मिलै माण इण भासा नै/आखै जग में जाणीजै…” से मान्यता की बात उठाई। कवि जुगल किशोर पुरोहित ने अपने गीत “मायड़ म्हारी मात है/मिलै इण नै मान्यता…” के भाव रखे। कवि लीलाधर जोशी ने “मान दे दो रै मायड़ भासा नै…” पेश की। इनके अलावा, बाबूलाल छंगाणी, युवा कवि आनन्द छंगाणी, शायर इस्हाक गौरी ‘शफक’, हरिकिशन व्यास, सौरभ कश्यप, बी.एल. नवीन, महेन्द्र जोशी, मदन गोपाल व्यास ‘जैरी’ और गोपाल कुमार ‘कुंठित’ ने भी अपनी रचनाओं के माध्यम से राजस्थानी भाषा मान्यता के समर्थन में विचार व्यक्त किए।
सफल आयोजन और आभार
कार्यक्रम के आरंभ में कवि गोपाल कुमार ‘कुंठित’ ने सभी का स्वागत करते हुए ‘सिरजण उछब’ समारोह की महत्ता को रेखांकित किया। काव्य गोष्ठी का सफल संचालन कवि गिरिराज पारीक ने किया, और अंत में भवानी सिंह ने सभी का आभार ज्ञापित किया।








