भगवान महावीर का जीवन विनय से सम्पन्न था- मुनिश्री कमलकुमार


भगवान महावीर का दीक्षा कल्याणक हर्षोल्लास से मनाया गया



गंगाशहर, 14 नवंबर । गंगाशहर तेरापंथ भवन में उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमलकुमार जी स्वामी के सान्निध्य में भगवान महावीर का 2595 वां दीक्षा दिवस कार्यक्रम बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
भगवान का विनय और विनम्रता
मुनिश्री कमलकुमार जी ने अपने विचार प्रकट करते हुए फरमाया कि भगवान महावीर का जीवन विनय (humility) से सम्पन्न था। उन्होंने गर्भकाल में ही संकल्प कर लिया था कि जब तक माता-पिता जीवित रहेंगे तब तक दीक्षा स्वीकार नहीं करूँगा, क्योंकि उस समय आप वीतरागी नहीं थे। माता-पिता के स्वर्गवास के बाद जब उन्होंने बड़े भाई से दीक्षा की अनुमति माँगी, और अनुमति नहीं मिली, तब उन्होंने दो वर्ष घर में रहकर ही साधना की। इससे ज्ञात होता है कि वे अपने बड़े भाई के प्रति कितने विनम्र थे। मुनिश्री ने कहा कि विनम्र व्यक्ति परिवार और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। इसके विपरीत, वर्तमान में विनम्रता के अभाव में सर्वत्र अशांति दिखाई दे रही है, जिससे घर, परिवार और समाज में तनाव, टकराव और अलगाव बढ़ रहा है। उन्होंने भगवान के दीक्षा दिवस पर सभी से विनम्रता का अभ्यास करने का आह्वान किया, जिससे घर-घर में अमन चैन का वातावरण बन सके।



भगवान महावीर का दीक्षा के पाँच संकल्प
मुनिश्री ने बताया कि भगवान महावीर ने बेले की तपस्या में दीक्षा स्वीकार की और दीक्षा के साथ पाँच संकल्प किए.
- अधिकतर मौन रहेगा।
- अधिकतर ध्यान का अभ्यास करूंगा।
- कर पात्र रहूंगा (हाथ में भोजन ग्रहण करना)।
- भोजन आदि के लिए किसी का अभिवादन नहीं करूंगा।
- अप्रतीतिकर स्थान में निवास करूंगा।
इस अवसर पर G.S.T. के कमिश्नर कांतिलाल जी जसोल ने भी अपने विचारों से उपस्थित जनसमूह को लाभान्वित किया।








