मांड कोकिला पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई की 33वीं पुण्यतिथि कल

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quicjZaps 15 sept 2025
  • ऑनलाइन समारोह में देश-विदेश के मांड प्रेमी करेंगे गीतों पर चर्चा

बीकानेर, 2 नवंबर। मांड कोकिला पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई की 33वीं पुण्यतिथि के अवसर पर सोमवार को विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएँगे। अल्लाह जिलाई बाई मांड गायिकी प्रशिक्षण संस्थान के प्रबंध निदेशक डॉ. अजीज अहमद सुलेमानी ने बताया कि पुण्यतिथि समारोह के तहत दो मुख्य कार्यक्रम होंगे।

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पहला कार्यक्रम सोमवार सुबह 11 बजे जयनारायण व्यास कॉलोनी में आयोजित किया जाएगा, जहाँ पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई को खिराजे अकीदत (श्रद्धांजलि) पेश की जाएगी और उनके मांड गीतों पर चर्चा होगी।

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इस चर्चा में कथाकार राजेंद्र जोशी, राजाराम स्वर्णकार, डॉ. एमएम बागड़ी, डॉ. हनुमान सिंह कसवां, लेखक अशफाक कादरी सहित देश-विदेश के मांड प्रेमी और परिवार के सदस्य ऑनलाइन शामिल होंगे। दूसरा कार्यक्रम सोमवार को ही बड़े कब्रिस्तान में होगा, जहाँ अल्लाह जिलाई बाई के मज़ार पर कुरआनखानी और पुष्पांजलि अर्पित की जाएगी।

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पद्मश्री से विभूषित मांड कोकिला, जिनकी स्मृति में 33 वर्षों से निरंतर हो रहा है मांड समारोह

3 नवंबर2025 को मरुकोकिला पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई की 33वीं पुण्यतिथि है। उनका गाया अमर गीत “केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश” आज भी मरुभूमि की सरसता और राजस्थान के शौर्य का अहसास कराता है और हजारों पर्यटकों को आकर्षित करता है। अल्लाह जिलाई बाई ने अपना संपूर्ण जीवन मांड और राजस्थानी लोक संगीत को समर्पित किया। उनकी शुद्ध और कलापूर्ण प्रस्तुति ने मांड गायिकी को राजमहलों से लेकर राष्ट्रपति भवन और अल्बर्ट हॉल लंदन तक पहुँचाकर इसे विश्व में प्रतिष्ठित किया।

उनका जन्म 1 फरवरी 1902 को हुआ था और उन्हें गायकी विरासत में मिली थी। आठ वर्ष की आयु में, बीकानेर राज दरबार के गायक उस्ताद हुसैन साहब लंगड़े ने उनकी प्रतिभा को पहचान कर 1910 में महाराजा गंगासिंह से गुणीजन खाने में उनका दाखिला करवाया। बीकानेर नरेशों के विशेष अनुराग के कारण उस समय मांड राग का प्रशिक्षण अनिवार्य था। उन्होंने उस्ताद हुसैन बख्श लंगड़े से ख्याल, ठुमरी, दादरा, मांड और उस्ताद शमसुद्दीन खान से शास्त्रीय रागों की तालीम ली। 21 वर्षों तक बीकानेर रियासत के गुणीजनखाने में सेवाएं देने के बाद, उन्होंने स्वतंत्रता के पश्चात् आकाशवाणी और एचएमवी के माध्यम से अपने गीत घर-घर तक पहुँचाए। उनके लोकप्रिय गीतों में “केसरिया बालम”, “बाई सा रा बीरा”, और “काली काली काजलिये री रेख” शामिल हैं।

उनके विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें 1982 में तत्कालीन राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी द्वारा पद्मश्री से विभूषित किया गया। उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1988) सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी नवाजा गया। 3 नवंबर 1992 को उनका निधन हो गया। उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए उनके नवासे डॉ. अजीज अहमद सुलेमानी (86 वर्ष) और वरिष्ठ लेखक अशफाक कादरी के सहयोग से पिछले 33 वर्षों से बीकानेर में उनकी पुण्यतिथि पर निरंतर मांड समारोह का आयोजन किया जाता रहा है।-माही अयाज़ (प्रवक्ता, मांड समारोह)

 

भीखाराम चान्दमल 15 अक्टूबर 2025
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