अनुशासन , धर्म, संयम और चेतना के युगपुरुष को श्रद्धांजलि


आचार्य तुलसी की पुण्यतिथि पर विशेष आलेख




– जैन लूणकरण छाजेड़


भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा में आचार्य तुलसी एक ऐसे युगनायक रहे हैं, जिन्होंने न केवल जैन समाज को नई दिशा दी, बल्कि संपूर्ण मानवता को नैतिक मूल्यों, अहिंसा, अनुशासन और तपस्या की जीवनदृष्टि प्रदान की।आषाढ़ कृष्णा तीज को हम महापुरुष आचार्य तुलसी की पुण्यतिथि मनाते हैं, जिन्होंने अपने तपोबल और चिंतन से हजारों-लाखों लोगों के जीवन में चेतना की अलख जगाई। इस वर्ष यह पुण्यतिथि 14 जून को देश – विदेश में मनायी जायेगी।
जीवन परिचय
आचार्य तुलसी का जन्म 20 अक्टूबर 1914 को राजस्थान के लाडनूं नगर में हुआ। 11 वर्ष की अल्पायु में ही वे साधु जीवन में प्रविष्ट हुए और 1936 में मात्र 22 वर्ष की आयु में आचार्य पद पर अभिषिक्त हुए। यह पद उन्होंने जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के नवां आचार्य के रूप में संभाला। उनका नेतृत्व एक आध्यात्मिक क्रांति का प्रतीक बना।
अनूठी पहल – अणुव्रत आंदोलन
आचार्य तुलसी की सबसे क्रांतिकारी पहल थी – अणुव्रत आंदोलन। इस आंदोलन का उद्देश्य सामान्य जन को धार्मिक कठोरताओं के बिना नैतिकता की राह पर चलने के लिए प्रेरित करना। सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, व्यसनमुक्ति जैसे सिद्धांतों को व्यवहार में लाने की प्रेरणा देने वाला यह आंदोलन आज भी प्रासंगिक है। किसी भी धर्म को मानने वाला व्यक्ति अणुव्रत के नियम स्वीकार कर सकता है।
जैन संस्कृति के वैज्ञानिक व आधुनिक व्याख्याता
उन्होंने जैन दर्शन को आधुनिक संदर्भों में व्याख्यायित किया। “जीवन विज्ञान”, “संयमपूर्ण जीवन पद्धति”, “अहिंसा यात्रा” और “मानवता की साधना” जैसे विचारों को जन-जन तक पहुँचाया।
तेरापंथ धर्मसंघ का सुदृढ़ीकरण
आचार्य तुलसी ने तेरापंथ को एक अनुशासित, संगठित और आध्यात्मिक संस्था के रूप में खड़ा किया। उनके नेतृत्व में अणुव्रती संतों का निर्माण हुआ, जो ग्राम-ग्राम जाकर समाज में नैतिक चेतना फैलाने का कार्य करते रहे। उन्होंने संघीय परम्परा में तात्कालिक व्यवस्था और भविष्य दृष्टि का अनूठा समन्वय किया। उनके कार्यकाल में तेरापंथ में मजबूत संगठन बने। अखिल भारतीय स्तर पर युवक परिषद् , महिलामंडल , अणुव्रत समिति , किशोर मंडल , कन्यामण्डल , पारमार्थिक शिक्षण संस्था , विकास परिषद् जैसी संस्थाओं व अनेक स्कूलों व की स्थापना करके तेरापंथ को मजबूत समाज बनाया।
साहित्य-सृजन और शिक्षण कार्य
आचार्य तुलसी स्वयं एक कुशल कवि, चिंतक और लेखक थे। ‘सत्य की तलाश’, ‘मम जीवन’, ‘जीवन दृष्टि’, ‘धर्म दर्शन और जीवन शैली’ जैसी कई रचनाएं व सैकड़ों गीत आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। साथ ही, उन्होंने जैन विश्व भारती संस्थान व यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों की स्थापना कर शिक्षा और साधना के क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्य किया ।
पुण्यतिथि: स्मरण और संकल्प
आषाढ़ कृष्णा तीज की तिथि केवल श्रद्धांजलि का अवसर नहीं, बल्कि आत्मावलोकन और आत्मसुधार का अवसर है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि आचार्य तुलसी केवल एक संत नहीं, एक युगद्रष्टा थे। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि साधना केवल जंगलों में नहीं, समाज के बीच रहकर भी की जा सकती है।
निष्कर्ष:
आज जब समाज नैतिक और आध्यात्मिक संकटों से जूझ रहा है, आचार्य तुलसी का विचार-सरोवर हमारे लिए एक अमृत-स्रोत बन सकता है। आइए, उनकी पुण्यतिथि पर हम यह संकल्प लें कि हम जीवन में नैतिकता , संयम, सेवा और साधना के पथ पर चलें और उनके दिखाए मार्ग को आत्मसात करें। “आचार्य तुलसी अमर रहें। उनके सिद्धांत हमारे जीवन में उतरे – यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
