भगवान पार्श्वनाथ जन्म कल्याणक दिवस पर विशेष अनुष्ठान, उवसगहर स्तोत्र का 27 बार पाठ


बीकानेर, 15 दिसंबर। आचार्यश्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वीश्री जिनबालाजी के सान्निध्य में तेरापंथ सभा भवन भीनासर के प्रांगण में रविवार पौष दसम भगवान पार्श्वनाथ का जन्म कल्याणक दिवस श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस उपलक्ष्य में विशेष जप अनुष्ठान आयोजित किया गया, जिसमें 108 बीज मंत्र के साथ उवसगहर स्तोत्र का 27 बार उच्चारण किया गया।


पार्श्व प्रभु का स्मरण मात्र से संकट दूर


साध्वीश्री जिनबालाजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि भगवान् पार्श्व प्रभु जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हैं। उन्होंने बताया कि दुनिया में सबसे ज्यादा जैन मन्दिर पार्श्व प्रभु के ही हैं और सबसे ज्यादा पूजा भी भगवान् पार्श्वनाथ की ही होती है। इसके पीछे उन्होंने तीन प्रमुख कारण बताए।
आदेय शुभ नाम कर्म – उनके आदेय शुभ नाम कर्म का उदय था।
अधिष्ठायक यक्ष- उनके पार्श्व नाम के एक अधिष्ठायक यक्ष थे, जो प्रभु का जप और स्तवन करने वालों की सहायता करते हैं।
शक्तिशाली देव- पार्श्वनाथ के तीन श्रावक थे, जो देवलोक में सूर्यदेव, चंद्रदेव और शुक्रदेव बने। ये देव विशेष रिद्धिकारी होते हैं और भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति व स्मरण करने वालों की सहायता करते हैं तथा उनके कष्टों को दूर करते हैं।
उवसगहर स्तोत्र का चमत्कारी महत्व
साध्वी श्री ने उवसगहर स्तोत्र को बहुत चमत्कारी बताते हुए इसकी रचना का इतिहास बताया। उन्होंने कहा कि जैन संघ ने प्रतिदिन आने वाले कष्टों से त्राण पाने के लिए आचार्य भद्रबाहु स्वामी से प्रार्थना की थी। करुणा सागर श्रुत के बलि भद्रबाहु स्वामी ने उनकी प्रार्थना पर ध्यान देकर संघ की सुरक्षा हेतु आने वाले बाहरी विक्षेपों को समाप्त करने के लिए महावीर निर्वाण के 170 वर्षों के बाद प्राकृत भाषा में इस महाप्रभावक स्तोत्र की रचना की। इस पंच पद्यात्मक स्तोत्र में 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की स्तुति की गई है।
जप-तप के हुए आयोजन
साध्वी वृंद ने पार्श्व प्रभु की स्तुति में सामूहिक गीतिका की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने उत्साहपूर्वक उपवास, बेला, तेला, एकासन आदि तप भी किये।
======








