ट्रंप टैरिफ से बीकानेर के 70% एक्सपोर्ट पर संकट: कालीन, वुलन, नमकीन और मिठाई उद्योग प्रभावित होंगे



बीकानेर, 13 अगस्त। बीकानेर के पारंपरिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय उद्योगों के सामने एक नया संकट खड़ा हो गया है। अमेरिका द्वारा भारत पर 25 प्रतिशत आयात शुल्क (टैरिफ) लगाए जाने की संभावना ने स्थानीय व्यापारियों, बुनकरों और उद्यमियों की चिंता बढ़ा दी है। इसका सबसे अधिक असर कालीन, वुलन (ऊन), नमकीन और मिठाई जैसे प्रमुख उद्योगों पर पड़ सकता है, जो बीकानेर की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण आधार हैं।
निर्यात पर सीधा असर
बीकानेर से हर साल लगभग ₹2500 करोड़ का कालीन निर्यात होता है, जिसका करीब 70 प्रतिशत हिस्सा अकेले अमेरिका को भेजा जाता है। ट्रंप प्रशासन की संभावित टैरिफ नीति न केवल निर्यातकों के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है, बल्कि लाखों कुशल और अकुशल श्रमिकों की आजीविका को भी खतरे में डाल सकती है।





कालीन उद्योग: रोजगार का बड़ा आधार खतरे में
बीकानेर का कालीन उद्योग देशभर के करीब 25 लाख प्रत्यक्ष और 50 लाख अप्रत्यक्ष श्रमिकों को रोजगार देता है। यह उद्योग अपनी उच्च गुणवत्ता वाले हस्तनिर्मित कालीनों के लिए प्रसिद्ध है। टैरिफ लगने की स्थिति में भारत से अमेरिका को भेजे जाने वाले कालीनों की कीमतें बढ़ जाएंगी, जिससे अमेरिकी बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाएगी और ग्राहक अन्य सस्ते विकल्पों की ओर मुड़ सकते हैं।


राजस्थान वूलन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष कमल कल्ला ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया, तो बुनकरों और श्रमिकों को दूसरे रोजगार तलाशने पर मजबूर होना पड़ेगा। उन्होंने केंद्र सरकार से इस संकट की गंभीरता को समझते हुए विशेष आर्थिक सहायता और प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा करने की अपील की है।
बीकानेर की मिठाई और नमकीन पर भी असर
विश्व प्रसिद्ध बीकानेर की भुजिया और रसगुल्ले का भी अमेरिका को बड़े पैमाने पर निर्यात होता है, जिसकी सालाना कीमत करीब ₹10 करोड़ है। अमेरिका में रहने वाले भारतीय और एशियाई समुदाय में इन उत्पादों की भारी मांग है, खासकर त्योहारों के दौरान। स्थानीय व्यापारियों का मानना है कि टैरिफ लागू होने पर उनके व्यापार में 30 से 40 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है, जिसका असर उत्पादन से लेकर आपूर्ति तक हर स्तर पर पड़ेगा।
बीसी ग्रुप के मुख्य वित्तीय प्रबंधक आनंद अग्रवाल ने बताया कि त्योहारों के लिए ऑर्डर आने शुरू हो गए हैं, ऐसे में टैरिफ की आशंका ने उद्यमियों की नींद उड़ा दी है। उन्होंने सरकार से इस मसले पर अमेरिका से बातचीत करने और निर्यात को राहत दिलाने की अपेक्षा की है।
ईसबगोल निर्यात पर भी लगा ब्रेक
बीकानेर से बड़ी मात्रा में ईसबगोल का निर्यात भी अमेरिका को होता रहा है, जो हर महीने करीब 100 टन होता है। 50 फीसदी टैरिफ की घोषणा के बाद से इस उत्पाद के नए ऑर्डर पूरी तरह बंद हो गए हैं। व्यापारी अब नए विदेशी बाजारों की तलाश में हैं।
भीखाराम चांदमल ग्रुप के एमडी हरिराम अग्रवाल ने बताया कि टैरिफ की घोषणा के कारण नए ऑर्डर न के बराबर आ रहे हैं। दीपावली के लिए जो ऑर्डर आए थे, उन्हें जुलाई तक भेज दिया गया है, लेकिन नए ऑर्डर का इंतजार किया जा रहा है।
नए बाजारों की तलाश शुरू
खतरे की आहट से परेशान व्यापारियों ने हार नहीं मानी है। अब कई उद्योगपतियों और निर्यातकों ने अन्य अंतरराष्ट्रीय बाजारों जैसे यूरोप, खाड़ी देश, दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया की ओर रुख करना शुरू कर दिया है। व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति भारत के लिए अपने पारंपरिक उत्पादों को नए बाजारों में पहुंचाने का एक अवसर भी हो सकती है, लेकिन इसके लिए समय, संसाधन और नीतिगत समर्थन की आवश्यकता होगी।