वाल्मीकि रामायण समरसता और समन्वय का शाश्वत शिलालेख- मोनिका गौड़



श्रीडूंगरगढ़, 16 अक्टूबर । अखिल भारतीय साहित्य परिषद् इकाई द्वारा बुधवार शाम पाँच बजे आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जयंती के उपलक्ष्य में वाल्मीकि बस्ती में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ वाल्मीकि प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ।
समरसता और सामाजिक समानता पर बल
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि, राजस्थानी व हिन्दी की वरिष्ठ साहित्यकार मोनिका गौड़ (प्रान्त उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय साहित्य परिषद्) ने अपने व्यक्तव्य में वाल्मीकि रामायण को समरसता, संवाद और समन्वय का शाश्वत शिलालेख बताया। उन्होंने कहा कि रामायण में शबरी, निषादराज गुह, वानरराज सुग्रीव, रावण जैसे पात्रों के प्रति वाल्मीकि का निष्पक्ष दृष्टिकोण उनकी सामाजिक समानता की भावना को पुष्ट करता है। उनके काव्य में हर पात्र का मूल्यांकन कर्म और भावना से होता है, न कि जातीय पहचान से। मोनिका गौड़ ने ज़ोर दिया कि आज के युग में जब समाज विभाजन की चुनौतियों से जूझ रहा है, वाल्मीकि की यह समावेशी दृष्टि और अधिक प्रासंगिक हो उठती है।




संतों और वक्ताओं के विचार
कार्यक्रम को सान्निध्य प्रदान कर रहे श्रीराम आश्रम के संत मोहनदास महाराज ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि के संबंध में गलत तथ्य प्रस्तुत कर इतिहास में भ्रांतियां पैदा की गईं, और उन्होंने वाल्मीकि के जीवन से जुड़े कई अनछुए पहलुओं से अवगत कराया। विशिष्ट अतिथि पवन गोहितान ने ‘वल्मीक’ शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हुए वाल्मीकि की तपस्या से जुड़ा प्रसंग सुनाया।



अधिवक्ता पुखराज तेजी ने वाल्मीकि समुदाय के अपने धर्म पर अटल रहने को गौरव का विषय बताया और मेहनत तथा शिक्षा से जीवन बेहतर बनाने की प्रेरणा दी। पवन शर्मा ने प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं को शांत करते हुए श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण से जुड़े अनेक प्रसंग बताए। इकाई अध्यक्ष भगवती पारीक ‘मनु’ ने आभार ज्ञापन के साथ साहित्य के लक्ष्य व उद्देश्यों की जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन अम्बिका डागा ने किया, और अंत में कल्याण मंत्र के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

