साधु हो या श्रावक, सभी का जीवन अनुशासनबद्ध होना चाहिए – मुनि कमलकुमार

shreecreates
quicjZaps 15 sept 2025

गंगाशहर, 7 अगस्त।श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, गंगाशहर में उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमलकुमार जी स्वामी के पावन सानिध्य में आचार्य भिक्षु की मासिक पुण्यतिथि का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुनिश्री कमलकुमार जी स्वामी ने केंद्र द्वारा निर्धारित विषय “आचार्य श्री भिक्षु की अनुशासन शैली” पर अपने विचार व्यक्त किए।
अनुशासन का महत्व और पात्रता का ध्यान
मुनिश्री कमलकुमार ने फरमाया कि आचार्य भिक्षु एक अनुशासन प्रिय आचार्य थे। उनका मानना था कि साधु हो या श्रावक, सभी का जीवन अनुशासनबद्ध होना चाहिए। यदि ऐसा न हो, तो व्यक्ति, परिवार, समाज और संगठन का स्तर ऊपर नहीं उठ सकता।

indication
L.C.Baid Childrens Hospiatl
SETH TOLARAM BAFANA ACADMY

मुनिश्री ने इस बात पर जोर दिया कि अनुशासन कब और किस पर कैसे लागू किया जाए, इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने हीरे का उदाहरण देते हुए कहा कि हीरे पर कितनी भी चोटें की जाएँ, वह टूटता नहीं, बल्कि उसका रूप निखरता रहता है। इसके विपरीत, यदि कोई कांच पर चोट करे तो वह चूर-चूर हो जाता है और किसी काम का नहीं रहता।

pop ronak

मृदु और कठोर अनुशासन के उदाहरण
मुनिश्री ने बताया कि आचार्य भिक्षु ने भी आवश्यकतानुसार कहीं मृदु (कोमल) और कहीं कठोर अनुशासन का प्रयोग किया था। उन्होंने कहा कि भारीमाल जी और खेतसी जी पर किए गए कठोर अनुशासन का ही यह प्रभाव था कि भारीमाल जी भिक्षु स्वामी के उत्तराधिकारी बने और खेतसी जी स्वामी सतयुगी कहलाए। इसके विपरीत, चंद्रभान जी, त्रिलोक चंद जी और फत्तूजी पर किया गया अनुशासन सहिष्णुता के अभाव में अस्तित्वहीन बन गया। चंद्रभान जी और त्रिलोक चंद जी विद्वान होते हुए भी अस्तित्वहीन बन गए, जबकि भारीमाल जी, खेतसी जी और अन्य साधु-साध्वी आचार्य श्री भिक्षु के अनुशासन का पालन करके जन आस्था के आधार बन गए।

मुनिश्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि स्वामी जी कभी तेले का दंड भी देते थे, तो कहीं मृदु शब्दों से भी प्रेरणा देते थे। उन्होंने हेमराज जी जैसौ का उदाहरण दिया, जहाँ स्वामी जी ने केवल इतना कहा, “हेमड़ा सोए-सोए अवगुण मेरे देखता है या अपने!” इतने भर से ही हेमराज जी मुनि का कोप शांत हो गया और वे तत्काल आसन समेटकर आहार के लिए तत्पर हो गए। मुनिश्री कमलकुमार जी ने जोर दिया कि हमें भी अनुशासन करते समय पात्रता का ध्यान रखना चाहिए, ताकि किसी का अहित न हो और उसके व्यक्तित्व का सांगोपांग निर्माण हो सके।

तपस्या का अनुमोदन
आज कई श्रद्धालुओं ने तपस्या का प्रत्याख्यान भी किया, जिनमें पवन जी छाजेड़ (28), तारा देवी बैद (25), प्रज्ञा सेठिया (8), हीरा देवी बाफना (8), सुरेंद्र भूरा (7) और अभिनव छाजेड़ (7) शामिल थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *