‘कवि चौपाल’ की 525वीं कड़ी ग़ज़ल को समर्पित “पराये दर्द से रोते सुना देखा न पत्थर को!”


बीकानेर, 20 जुलाई। स्वास्थ्य एवं साहित्य संगम के साप्ताहिक कार्यक्रम ‘कवि चौपाल’ की 525 वीं कड़ी आज साहित्य की प्रसिद्ध विधा ‘ग़ज़ल’ को समर्पित रही। इस विशेष ग़ज़ल गोष्ठी में मंचासीन सभी ग़ज़लकारों को “राष्ट्रीय कवि चौपाल ग़ज़ल-सम्मान” से सम्मानित किया गया।
वरिष्ठ ग़ज़लकारों की उपस्थिति
कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी एवं राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ ग़ज़लकार राजेन्द्र स्वर्णकार ने की। आज के प्रोग्राम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ उर्दू शाइर ज़ाकिर अदीब थे। विशिष्ट अतिथि के तौर पर नौजवान शाइर बुनियाद ज़हीन, उर्दू शाइर एवं समालोचक डॉ. ज़ियाउल हसन क़ादरी, शाइर मोहम्मद शकील ग़ौरी ‘शकील’ बीकानेरी एवं मुनव्वर हुसैन ‘सागर’ सिद्दिक़ी मंच पर शोभित हुए।सम्मान से पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ रामेश्वर साधक ने ईश वंदना से किया। कार्यक्रम में मंचस्थ अतिथियों एवं आगंतुक ग़ज़लकारों ने अपनी एक से बढ़कर एक ग़ज़लें पेश कर समां बांध दिया।




गजलों की शानदार प्रस्तुति
अध्यक्षता करते हुए राजेन्द्र स्वर्णकार ने तहत और तरन्नुम में हिंदी और राजस्थानी भाषा में ग़ज़लों की प्रस्तुति दी। उनके शेर “अगर इंसान होता तू, तेरे आंसू निकल आते,.. पराये दर्द से रोते सुना देखा न पत्थर को!” को श्रोताओं ने भरपूर पसंद किया। मुख्य अतिथि ज़ाकिर अदीब ने अपनी बेहतरीन ग़ज़ल सुना कर श्रोताओं से भरपूर दाद हासिल की। उनके इस शे’र – “आज़ादि-ए-इज़हार से क्या ख़ौफ़ है उसको,.. क्यों ताइरे तख़ईल के पर काट रहा है!” को श्रोताओं ने खूब दादो-तहसीन से नवाज़ा। विशिष्ट अतिथि बुनियाद ‘ज़हीन’ ने जब अपनी ग़ज़ल का यह शे’र – “आये थे बिन लिबास ज़माने में हम ज़हीन .. बस एक कफ़न के वास्ते इतना सफ़र किया” पेश किया तो समस्त श्रोता वाह-वाह कह उठे।


विशिष्ट अतिथि डॉ. ज़ियाउल हसन क़ादरी ने अपनी बेहतरीन ग़ज़ल सुना कर श्रोताओं से भरपूर तारीफें पाईं। उनके इस शे’र – “घटा वो काली न मौसम वो ख़ुशनुमा देखे,.. कि जिसने आपको देखा है फिर वो क्या देखे” की प्रस्तुति ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। शाइर मोहम्मद शकील ग़ौरी ‘शकील’ ने अपनी ग़ज़ल के मतलअ – “चाहत में तेरी दिल मेरा लालाज़ार है.. तू बेवफ़ा है फिर भी तेरा इंतज़ार है” सुनाकर माहौल को ग़ज़ल के रंग में रंग दिया। नौजवान शाइर मुनव्वर हुसैन ‘सागर’ सिद्दिक़ी ने अपनी ग़ज़ल के इस शे’र – “इसकी सरहद की निगहबां है जलाली आंखें.. कौन डालेगा मेरे मुल्क पे काली आंखें” से मुल्क के हिफाजत की बात को बखूबी सामने रखा। उर्दू शाइर वली मोहम्मद ग़ौरी ‘वली’ रज़वी ने – “जो वक़्त साथ में क्या क्या बदल गया.. अपने बदल गए तो ज़माना बदल गया..” ग़ज़ल के शे’र के ज़रिए बदलते हुए ज़माने की बात करते हुए श्रोताओं को लुत्फ़ अंदोज़ कर दिया।
डॉ. कृष्ण लाल विश्नोई ने – “नफा न होगा नफरतों से, इन्हें कर दरकिनार वली,” प्रस्तुत किया। शाइर क़ासिम बीकानेरी ने अपने शे’र – “ज़िन्दगी मन के मुताबिक़ तुम जियो.. मारकर मन को भी जीना क्या हुआ” के प्रस्तुतीकरण से कार्यक्रम को परवान चढ़ाया और ज़िन्दगी को अपने मन के मुताबिक़ जीने का संदेश दिया। माजिद खान माजिद ने – “क्या बताऊँ तुझ को कहानी मेरी,.. ये मुहब्बत खा गई जवानी मेरी,” सुनाया। मनमोहन कपूर ने – “रश्मीमंतम समुद्ध्यतम देवासुर नमस्कृतम। पुज्यस्य विवास्यं तम भास्करम भुवनेश्वरम ..” से प्रस्तुति दी। सिराजुद्दीन भुट्टा ने – “कवि चौपाल पर क्या लिखूं मैं ग़ज़ल.. कि मीर और गालिब का दिवान है तूं,..” पेश किया। श्रीमती कृष्णा वर्मा ने – “रोशनी उन्हीं को मिली है जिनके हाथों में मशाल है” प्रस्तुत कर श्रोताओं का मन मोह लिया।
कार्यक्रम का संचालन और उपस्थिति
कार्यक्रम में अनेक कवि, शायर एवं काव्य रसिक श्रोता मौजूद थे, जिनमें हास्य कवि बाबू बमचकरी, कैलाश टाक, लीलाधर सोनी, शिव दाधीच, राजू लखोटिया, वैध विद्या सागर शर्मा, डॉ. तुलसी राम मोदी, सुभाष विश्नोई, पवन चड्ढ़ा, घनश्याम सोलंकी, शमीम अहमद, राजगोपाल सोनी, गोविंद सोनी, नत्थू खां, रवि राजपुरोहित, श्रीकांत आर्यन सहित कई गणमान्य साहित्यानुरागी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सरस संचालन राष्ट्रीय कवि चौपाल के संस्थापक सदस्य क़ासिम बीकानेरी ने किया।