अमेरिका के नए आव्रजन नियम भारत के लिए एक बड़ा अवसर



- नए वैश्विक संदर्भ में स्वदेशी आंदोलन को पुनर्जीवित करना
बीकानेर , 20 सितम्बर। प्रोफेसर त्रिलोक कुमार जैन के अनुसार, अमेरिका के नए आव्रजन नियम भारत के लिए एक बड़ा अवसर हैं, जिससे भारत में ‘स्वदेशी आंदोलन’ को पुनर्जीवित किया जा सकता है। ये नीतियाँ, जो विदेशी पेशेवरों के लिए अमेरिका में काम करना कठिन बना रही हैं, भारतीय प्रतिभाओं को अपने ही देश में नवाचार करने और काम करने के लिए प्रेरित करेंगी, जिससे आत्मनिर्भर और विकसित भारत का निर्माण होगा।




अमेरिका का नुकसान, भारत का फायदा
प्रोफेसर जैन का तर्क है कि अमेरिका द्वारा H-1B वीज़ा जैसे नियमों को और सख्त करने से भारतीय पेशेवरों को होने वाली शुरुआती असुविधा अंततः भारत के लिए फायदेमंद साबित होगी। यह प्रतिभा पलायन (brain drain) को रोकेगा और भारतीय इंजीनियरों, डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को अपने देश में ही रहकर काम करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।


स्वदेशी उत्पाद और उद्योग: जब भारतीय पेशेवर देश में रहेंगे, तो वे यहीं पर नए उत्पाद, तकनीकें और सेवाएँ विकसित करेंगे। इससे भारत के उद्योग मजबूत होंगे, स्थानीय मांग और आपूर्ति बढ़ेगी, और धीरे-धीरे विदेशी वस्तुओं की जगह स्वदेशी उत्पाद लेंगे।
स्वदेशी शिक्षा को बढ़ावा: भारतीय छात्र अब उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका जाने के बजाय भारतीय विश्वविद्यालयों का रुख करेंगे। यह हमारी शिक्षा प्रणाली को बेहतर शोध केंद्र, प्रयोगशालाएँ और मजबूत संस्थान बनाने का अवसर देगा। बैंगलोर, हैदराबाद, पुणे और जयपुर जैसे शहर वैश्विक ज्ञान के नए केंद्र बन सकते हैं।
आत्मनिर्भरता और स्व-रोज़गार: प्रतिभाओं का देश में रुकना स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा देगा। युवा विदेश में नौकरी खोजने के बजाय अपना खुद का उद्यम शुरू करेंगे। इससे न केवल उन्हें बल्कि कई अन्य लोगों को भी रोजगार मिलेगा, जिससे विदेशी कंपनियों पर हमारी निर्भरता कम होगी।
नवाचार का नया केंद्र बनेगा भारत
प्रोफेसर जैन ने कहा कि अमेरिका भले ही अपनी नीतियों से अपने कर्मचारियों की रक्षा करने की सोच रहा हो, लेकिन ऐसा करके वह नए विचारों के लिए अपने दरवाजे बंद कर रहा है। इससे नवाचार अमेरिका से दूर होकर भारत में आएगा। 20वीं सदी में नवाचार का मतलब ‘पश्चिम’ था, लेकिन 21वीं सदी में इसका मतलब ‘पूर्व’ होगा। वही भारतीय बौद्धिक क्षमता, जिसने सिलिकॉन वैली का निर्माण किया, अब ‘विकसित भारत’ का निर्माण करेगी। स्वदेशी आंदोलन अब केवल कपड़ों या भोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विज्ञान, तकनीक, स्वास्थ्य और ज्ञान के बारे में है। यह भावना हमें ‘यहाँ निर्माण करो, यहाँ खरीदो, यहाँ बढ़ो’ का संदेश देती है।
सामाजिक विकास, सामाजिक उद्यमिता और सामाजिक नवाचारों के प्रति जुनूनी प्रोफ़ेसर जैन ने अपना एक आलेख लिंक्डिन पर पोस्ट करके विचार व्यक्त किये हैं। । इन विषयों पर ऑनलाइन सत्र के जैन को कॉल करें / ईमेल करें: 9414430763 jain.tk@gmail.com –( प्रोफेसर त्रिलोक कुमार जैन)