बीकानेर के वरिष्ठ साहित्यकार भवानी शंकर व्यास “विनोद” का स्वर्गवास


बीकानेर , 4 दिसंबर। बीकानेर के साहित्य जगत ने एक प्रमुख हस्ताक्षर, वरिष्ठ साहित्यकार भवानी शंकर व्यास “विनोद” को खो दिया है। उनका निधन 90 वर्ष की आयु में 3 दिसंबर 2025 को उदयपुर में हुआ। उनका मूल निवास बीकानेर के सुथारों की गुवाड़ था, जबकि वे हाल ही में पवनपुरी बीकानेर में रहते थे। उनके पिता का नाम अमरदत्त व्यास था, जो पुलिस सेवा में थे। उनके निधन की खबर से पूरे साहित्य जगत में शोक की लहर छा गई है। उनके पार्थिव शरीर को एम्बुलेंस से जोधपुर ले जाया जा रहा है, जहाँ 4 दिसंबर को उनका अंतिम संस्कार किया गया । मुखाग्नि उनके पुते डॉ राकेश व्यास ने दी।
बहुमुखी व्यक्तित्व एवं साहित्यिक योगदान
भवानी शंकर व्यास “विनोद” एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्हें बीकानेर का “चलते-फिरते एनसाइक्लोपीडिया” कहा जाता था, जो जीवनपर्यंत नए और पुराने सभी लेखकों को पढ़ने और प्रोत्साहित करने में सक्रिय रहे। थार एक्सप्रेस के साथ उनका सम्बन्ध 1993 में उसके लोकार्पण के समय से था। उनका साहित्यिक योगदान हिंदी और राजस्थानी दोनों भाषाओं में विस्तृत है।
उन्होंने क्षण जो शिल्पी हैं (हिंदी विविधा, शिक्षा विभाग राजस्थान) का लेखन किया और शिविरा (मासिक) तथा नया शिक्षक (त्रैमासिक) जैसी पत्रिकाओं का वर्षों तक संपादन किया। उनके निधन से बीकानेर का साहित्यिक परिदृश्य अत्यंत शोकाकुल है।थार एक्सप्रेस परिवार श्रद्धांजलि अर्पित करता है।



बीकानेर के साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने लिखा



साहित्य के पुरोधा-शब्द-ऋषि भवानीशंकरजी व्यास “विनोद” अब नहीं रहे
वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि, शिक्षाविद, सम्पादक, विचारक, समालोचक, संचालक, बहुमुखी व्यक्तित्व जिन्होंने अंग्रेजी, हिन्दी और राजस्थानी में विराट लेखन संसार रचा है । जन-जन के हृदय में रचा-बसा कालजयी साहित्य सागर थे भवानीशंकरजी व्यास”विनोद”। आपका जन्म राजस्थान की मरुधरा “बीकानेर” में पुष्करणा ब्राहमण अमरदतजी व्यास के यहां 11 अगस्त 1935 अश्विन शुक्ला सप्तमी विक्रम सम्वत 1992 को हुआ। विनोद ने राजस्थान विश्वविद्ध्यालय, जयपुर से बीए, बी.एड.किया, अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.,हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से विशारद तथा अंग्रेजी में विशेष दक्षता राज्य भाषा अध्ययन संस्थान अजमेर व जयपुर से प्राप्त की । आपने राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग में अध्यापक पद से अपनी सेवा शुरु की ! सेवाकाल में अनेक पदों पर पदोन्नत होते हुए प्रकाशन अनुभाग (शिक्षा निदेशालय) में वरिष्ठ सम्पादक “शिविरा” के पद से 31 अगस्त 1993 को सेवानिवृत हुए । सरलचित, मृदुभाषी, सादगीपूर्ण व्यक्तित्व के धनी ”विनोद” में मायड भाषा के प्रति अगाध प्रेम है आपने अंग्रेजी भाषा के शिक्षक होते हुए अपना अधिकतर सृजन राजस्थानी ,हिन्दी में करके इसका मान बढाया है । सरकार ने सेवानिवृत किया, लेकिन आपकी साहित्यिक पाठशाला में उम्र के 81 बसंत पार करने के पश्चात आज भी आप युवाओं को साहित्य में प्रोत्साहित कर रहे हैं । युवा आपसे प्रेरणा लें, अच्छा सृजन करके राज्य व देश में अपना और अपने शहर का नाम रोशन करें, यही आपकी कामना हैं !
भवानीशंकरजी ने साहित्य मे विभिन्न विधाओ मे 60 पुस्तकें लिखी है । अनेक ग्रंथों के रचयिता विनोद जी की रचनाएं देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित होती रहती हैं । आपने पांच दशक तक राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बंगाल, आन्ध्रप्रदेश एवं तमिलनाडु के अनेक शहरों में यानी पूरे भारत में अपनी हास्य-व्यंग्य कविताओं से धूम मचाई । यथा जर्दा, इसलिए तोन्द को नमस्कार, चश्मा, रसवंती, गंजा, चमचा, चमची, भोजन भट्ट, हिप्पी, बापू तुम्हारा यहां क्या काम है आज भी श्रोताओं को गुदगुदाती हैं । व्यासजी के सादगीपूर्ण जीवन का मैं कायल हूं और गर्व करता हूं कि बीकानेर वासियों को एक समर्पित प्रखर विद्धवान आसानी से उपलब्ध हो जाता है । साहित्यिक यादों को अपने में समेटे बिरले ही लोग होते हैं जो रचनात्मकता से जुडे हों । आज यहां चर्चा हिन्दी, राजस्थानी और अंग्रेजी भाषा के विद्वान आदरणीय गुरूजी भवानीशंकरजी व्यास “विनोद” के बारे में करना चाहूंगा । सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक लोक रंगों से सराबोर ““विनोदजी” के मानस पटल पर अथाह यादों, संस्मरणों का ज्ञान-कोश अंकित है ऐसी विभूति को पाकर बीकानेर धन्य हो गया है ।
आत्मीय भाव से ओतप्रोत विनोदजी के बारे में अक्सर कहा जाता है कि आप रचनाकारों की तारीफों के पुल बांधते हैं । मेरा मानना है कि गुरुजी बहुत अच्छा कर रहे हैं क्योंकि आज के इस आपा-धापी वाले युग में किसी ने लिखने का मन बनाया है, प्रथम चरण पर ही उसे मास्टर की तरह हडकाने लग गये तो नया सृजनधर्मी अपनी लाइन बदलने की कोशिश करेगा हो सकता है वह साहित्य से ही अपना मुंह मोड ले । भवानीशंकरजी का नए सृजनधर्मियों को समझानें का तरीका बडा शानदार है । वे बडे सलीके से बातों-बातों में उसे सही मार्गदर्शन देते हुए उसकी गलतियों की तरफ इशारा करते हैं, इससे साहित्य सृजनकर्ता का मनोबल बढता है जिससे वह अपनी गलतियों को सुधारते हुए अच्छी रचनाएं समाज को देता है । उदाहरणार्थ वे अपने उद्बोधन में रचनाकार की तारीफ करते हुए कह देते हैं कि अपनी प्रशंसा सुनकर कभी आत्ममुग्ध मत होना । यह आपकी समालोचना की विशिष्ट शैली है ।
विनोदजी राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर की संचालिका के सदस्य रहे हैं तथा अकादमी की ओर से साहित्यकार सद्भाव यात्रा में केरल प्रदेश के सात दिवसीय परिभ्रमण में साहित्यिक चर्चाओं में सक्रिय रुप से भाग लिया ! इसी प्रकार आप केन्द्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली की जनरल कॉंन्सिल एवं राजस्थानी सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं । केन्द्रीय साहित्य अकादमी से प्रकाशित साहित्यकार भीम पांडिया एवं मुरलीधर व्यास राजस्थानी के मोनोग्राफ आपने लिखे हैं तथा हेनरी इब्सन की पुस्तक “ए डॉल्स हाउस” का अनुवाद भी आप द्वारा किया गया । इस साहित्य पुरोधा का मान-सम्मान देश-प्रदेश की अनेकों साहित्यिक, शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर किया गया जिनमें अखिल भारतीय स्तर का प्रदीपकुमार रामपुरिया साहित्य पुरस्कार, गणेशीलाल व्यास उस्ताद पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर का विशिष्ठ साहित्यकार सम्मान, राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ का साहित्य श्री पुरस्कार तथा शिक्षा विभाग का शिक्षक सम्मान पुरस्कार जो 05सितम्बर1974 को जयपुर के रविन्द्र रंगमंच पर दिया गया । इसमें बीकानेर से वरिष्ठ साहित्यकार गौरीशंकर आचार्य “अरुण”,संगीतज्ञ मोतीलाल रंगा तथा साहित्य प्रेमी कृष्ण जनसेवी विशेष रुप से शामिल हुए । इसी तरह अन्य भाषा पुरस्कार के तहत मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, नूरजहां स्मृति सम्मान, राजीव रत्न अवार्ड, मीरां साहित्य एवं संस्कृति सम्मान (मेडता), लोकनायक मुरलीधर व्यास स्मृति संस्थान कोलकाता, जुबिली नागरी भंडार, लॉयंस क्लब, रोटरी क्लब, अम्बेडकर समिति एवं जिला प्रशासन बीकानेर द्वारा सम्मानित हो चुके हैं ! 7 सितम्बर 1974 को विद्वान पंडित विद्ध्याधर शाष्त्री की अध्यक्षता में आचार्य श्री राम विध्यालय में आपका नागरिक अभिनन्दन यादगार रहा । 75 वर्ष पूर्ण करने पर बीकानेर की 51 साहित्यिक संस्थाओं द्वारा बडे हर्षोल्लास के साथ आपका अमृत महोत्सव मनाकर आपके सुखी स्वस्थ, दीर्घायु जीवन की कामना की।

साहित्यकार अशफ़ाक कादरी ने लिखा
श्री भवानी शंकर व्यास विनोद – जिनकी स्मृतियां अमर है
कवि समालोचक साहित्यकार शिक्षाविद श्रीमान भवानी शंकर व्यास विनोद के साहित्य सृजन, सांस्कृतिक अवदान, ज्ञान विज्ञान व्याख्यान, स्मृतिया अमर है । विनोद जी बीकानेर साहित्य, संस्कृति, शिक्षा जगत के चमकते नक्षत्र है जिनके प्रकाश मे नए साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी और शिक्षक प्रकाश में आये ।
भवानी शंकर जी की आवाज पहली बार राजकीय स्टेडियम में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में सुनने को मिली। गणतंत्र दिवस पर कई बार राजकीय सादुल उच्च माध्यमिक विद्यालय के हॉल में जिला प्रशासन द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन और मुशायरे में जाने का अवसर मिला जिसकी कमान भवानी शंकरजी के हाथ में रहती थी । श्री भीम पांडिया जी, हरीश भादानी जी, दीन मोहम्मद मस्तान साहब, मोहम्मद इब्राहिम गाजी साहब, अब्दुल वहीद कमल साहब, अजीज आजाद साहब सहित नगर के 50 से अधिक कवि और शायर मंच साझा करते थे । सर्दी की देर रात तक कवि और शायर देशभक्ति की रचनाओं से श्रोताओं को भाव विभोर करते रहे । बतौर संयोजक विनोद साहब समय के पाबंद थे । उन दिनों नगर के भीतरी भागो में विभिन्न स्थानों पर कवि सम्मेलन आयोजित होते । कार्यक्रमो का संचालन भवानी शंकर जी करते थे । उनकी हास्य रचनाओं का जबरदस्त क्रेज रहता था।
वर्ष 1994 में कवि, कथाकार, नाटककार अब्दुल वहीद कमल साहब राजकीय सेवा से रिटायर हुए तब हमने उनके सम्मान में नगर की विभिन्न संस्थाओं द्वारा गठित अभिनंदन समारोह समिति के तत्वावधान में टाउन हॉल में अभिनंदन समारोह रखा । जिसके सम्मान कार्यक्रम का संचालन भवानी शंकर जी ने किया था। इस अवसर पर प्रकाशित अभिनंदन पत्रिका “मुस्कराते रहना कमल” में भवानी शंकर जी ने विशेष आलेख भी लिखा था “किस कोण से शुरू करू”। जिसके संपादन से में जुड़ा था ।
वर्ष 2001 में बीकानेर पर्यटन विकास के लिए प्रख्यात लेखक उपध्यान चंद्र कोचर साहब की अध्यक्षता में पर्यटन लेखक संघ का गठन किया गया । जिसमे वरिष्ठ उपाध्यक्ष भवानी शंकर व्यास विनोद साहब को बनाया गया और मुझे महासचिव बनने का सौभाग्य मिला । संस्था द्वारा प्रति सप्ताह बीकानेर पर्यटन विकास पर गोष्ठियों के साथ हवेली यात्रा का नवाचार शुरू किया गया।
बीकानेर में 1956 में स्थापित श्री संगीत भारती के कार्यक्रमो से आप हमेशा जुड़े रहे । संस्था द्वारा आयोजित संगीत कार्यक्रमो, नृत्य नाटिकाओं, सेमिनारो, विचार गोष्ठियों, चित्र प्रदर्शनी में मुख्य वक्ता के रूप में व्यास जी का सान्निध्य मिलता था। 1999 में संगीत मनीषी डॉ जयचंद्र शर्मा के देहांत के बाद डॉ मुरारी शर्मा जी द्वारा आगामी वर्षों में उनकी स्मृति हंसा गेस्ट हाउस में तीन दिवसीय “संगीतोत्सव” प्रारंभ किया गया जिसमे आपकी नियमित भागीदारी रहती। डॉ जयचंद्र शर्मा के व्यक्तित्व कृतित्व पर प्रख्यात संगीतज्ञ डॉ आभा शंकरन के शोध प्रबंध पर 17 मई 2015 को आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में भी भवानी शंकर जी अतिथि के रूप में मौजूद थे । 8 मार्च 2019 को संगीत मनीषी डॉ मुरारी शर्मा के निधन के बाद आयोजित कार्यक्रमों में डॉ मुरारी शर्मा के संगीत योगदान को आपने मार्मिक ढंग से रेखांकित किया ।
व्यास जी प्रेरणा प्रतिष्ठान के संरक्षक थे। सम्मान कार्यक्रमों में आयोजन में सम्मान पत्र लेखन, कार्यक्रम की रूपरेखा से लेकर भवानी शंकरजी विषय प्रवर्तन मार्गदर्शन करते रहे है । संस्था द्वारा वर्ष 2010 में मुझे शब्दमणि सम्मान से विभूषित किया गया जिसका अभिनंदन पत्र भवानी शंकर जी द्वारा लिखा गया था ।
नागरी भंडार में आयोजित हिंदी विश्व भारती के कार्यक्रमो में आयोजित गोष्ठियों में कुछ समय मेरी सहभागिता रही । कार्यक्रम में संचालन के बाद समाचार भी भवानी शंकर जी बनाते थे ।
मांड गायिका पदमश्री अल्लाह जिलाई बाई के 1992 में देहांत के बाद उनकी स्मृति में हमने 3 नवंबर 1993 से बीकानेर में अखिल भारतीय मांड समारोह का प्रारंभ किया । मांड समारोह में गत 30 वर्षो में समारोह के उद्घाटन समारोह, कार्यशालाओं, विचार गोष्ठियों, शोध प्रबंधों में आपकी भूमिका शानदार रही है पदमश्री अल्लाह जिलाई बाई पर शोध के लिए जयपुर से आकांक्षा दवे बीकानेर आई तब हम उनके साथ भवानी शंकर जी के घर गए। आपने अपने साक्षात्कार में पदमश्री अल्लाह जिलाईं बाई के जीवन और कार्यक्रमों पर तिथिवार पूरा ब्यौरा दिया
नेशनल पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट बीकानेर का कोई कार्यक्रम भवानी शंकर जी बिना पूर्ण नहीं होता । ट्रस्ट के अध्यक्ष हाजी मोहम्मद युनूस जोईया भवानी शंकर जी के खास प्रशंसक थे । ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित साहित्यिक पुस्तकों, स्मारिकाओ, फोल्डर्स, भवानी शंकर जी की नजरो से गुजर कर ही पूर्ण होते और लोकार्पित होते ।
बुजुर्ग शायर अब्दुल रहमान पेशकार “खादिम” साहब भवानी शंकर जी के खास प्रशंसक थे । पेशकार साहब ने राजमाता सुदर्शना कुमारी कला दीर्घा में अपनी संस्था खादिम ए अदब के पहले कार्यक्रम में भवानी शंकर जी के सम्मान का कार्यक्रम रखा था । पेशकार साहब का काव्य संग्रह “खुशबुओं का सफर” की भूमिका भवानी शंकर जी ने लिखी थी और 7 अक्तूबर 2006 को उसके विमोचन कार्यक्रम में भी आपने शानदार समीक्षा की ।
मुझे उनका आशीर्वाद हमेशा मिलता रहा है । ईद के दिन सबसे पहले भवानी शंकर जी का फोन पर ईद की मुबारक मिलती है । आप फरमाते कि में अपने मिलने वाले सभी मुस्लिम मित्रो को ईद मुबारक करता हू। मेरे जन्मदिन आप हमेशा मेरे साहित्यिक मित्रो के साथ मेरे घर पधारते रहे है । माल्यार्पण, शॉल, सम्मान पत्र प्रदान कर मुझे आशीर्वाद प्रदान करते है । मेरे राष्ट्रीय लेखन और साहित्यिक साधना पर वक्तव्य प्रदान करते रहे है जो मेरे लिए बहुमूल्य है ।
हम अपने कार्यक्रम भवानी शंकर जी के सान्निध्य में आयोजित करने की अभिलाषा रखते । समाजवादी चिंतक और पूर्व पार्षद स्व भंवरलाल स्वर्णकार आर्य ब सभी कार्यक्रम आपके सान्निध्य में आयोजित हुए । आपके जोधपुर जाने के बाद सीमित कार्यक्रम कर पाए । कोरोना काल के बाद भवानी शंकर जी बीकानेर पधारे तब उनके बीकानेर निवास पर पुस्तक विमोचन के कार्यक्रम के आयोजन हुए । 3 मार्च को पूर्णिमा मित्रा के राजस्थानी लघुकथा संग्रह “तिस”, 20 मार्च को डॉ अजय जोशी के व्यंग्य संग्रह “पत्नीसयमूडम्य” डॉ सुमन बिस्सा के काव्य संग्रह “मन के भीतर मन” का विमोचन किया गया । 2 अप्रैल 2023 को राजाराम जी स्वर्णकार के काव्य संग्रह “म्हारी लाडो” पूर्णिमा बोहरा के काव्य संग्रह “काव्य प्रवाह” का लोकार्पण व्यास जी के सान्निध्य में आपके निवास पर किया गया । इन कार्यक्रमों में पुस्तकों के रचियताओ के साथ श्रीमती आनंद कौर व्यास, कवि कथाकार राजेंद्र जोशी, श्रीमती सरोज बिस्सा, प्रेमनारायण व्यास जी और मुझे शामिल होने का अवसर मिला ।
भवानी शंकर जी ने 60 से अधिक पुस्तके लिखी और 100 से अधिक पुस्तकों की भूमिकाएं लिखी । पत्र पत्रिकाओं में उनका लेखन और संपादन निरंतर चलता रहता । भवानी शंकर जी रोजाना नियमित रूप से अंग्रेजी में डायरी लिखते । जिसमे उस दिन की गतिविधि, साहित्यिक कार्यक्रम, समाचार लिखते है । आपकी डायरी से ऐतिहासिक घटनाएं बीकानेर से प्रकाशित होने वाले एक अखबार में प्रकाशित हुए ।
हम सोचते थे कि भवानी शंकर जी यथासमय इतना केसे लिख पाते है और कार्यक्रमों में किसी भी विषय पर शानदार वक्तव्य केसे दे पाते है । इसका बोध तब हुआ जब हम राजारामजी स्वर्णकार के साथ भवानी शंकर जी के पवनपुरी स्थित घर जाना होता था । हमने देखा कि वे अपना लेखन रोजाना नियमित रूप से करते है । इससे पहले उनमें पढ़ने की प्रवृति थी। उनकी जीवन संगिनी श्रीमती आनंद कौर व्यास हिन्दी राजस्थानी की वरिष्ठ साहित्यकार है । उनके पुत्र डॉ राकेश व्यास केंसर विशेषज्ञ है तथा वर्तमान में उदयपुर में गीतांजलि विश्वविद्यालय में कुलपति है। उनकी पुत्रियां सरोज बिस्सा, डॉ सुमन बिस्सा भी साहित्य से जुड़ी है ।
नए रचनाकारों की रचनाओं का हृदय से स्वागत करते ,उन्हे प्रोत्साहित करते थे । उनकी पुस्तकों की भूमिका में सकारात्मक भाव रखते है । मुझे भी हमेशा कहते है कि तुम लंबे समय से लिख रहे हो, तुम्हारी पुस्तके प्रकाशित होनी चाहिए । आप फरमाते है कि नई पीढ़ी को तैयार करना आवश्यक है । आजकल आप उदयपुर प्रवास कर रहे थे मगर आप बीकानेर में हमारे हृदय में निवास कर रहे थे। आज 3 दिसंबर को उनके निधन का समाचार मिला । ईश्वर की इच्छा केआगे नत मस्तक हैं। आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहे ।
आपके देवलोक गमन का समाचार आग की तरह फ़ैल गया सभी शोकमग्न आपको श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।








