सिद्धि जैन ने NDA में राष्ट्रपति पदक जीतकर पहली महिला राष्ट्रपति कांस्य पदक विजेता बनीं


- सिद्धि जैन की सक्सेस स्टोरी; बोलीं- जिंदगी में कुछ अलग करना चाहती थी, इसलिए IIT छोड़ डिफेंस ज्वाइन किया
बदायूं , 5 दिसम्बर। सिद्धि जैन ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की ट्रेनिंग पूरी कर परिवार का नाम रोशन किया है। उन्हें पहली महिला राष्ट्रपति कांस्य पदक विजेता होने का गौरव मिला है। नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी ने सिद्धि को मेडल पहनाया तो परिवार के लोग भी खुशी से झूम उठे।



राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में राष्ट्रपति कांस्य पदक जीतने वाली पहली सिद्धि जैन ने महिला कैडेट बनकर इतिहास रच दिया है. यह सम्मान उन्हें 149वें कोर्स की पासिंग-आउट परेड के दौरान मिला. उन्हें बेस्ट ऑल-राउंड एयर कैडेट के खिताब से भी नवाजा गया है. नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी ने उनकी यूनिफॉर्म पर प्रेसिडेंट ब्रांच मेडल लगाया. ट्रेनिंग के बाद सिद्धि गुरुवार को बदायूं अपने घर उझानी पहुंचीं तो लोगों ने जोरदार स्वागत किया।



कुछ अलग करना चाहती थी : सिद्धि ने बताया, NDA परीक्षा दूसरे अटेम्प्ट में क्लियर की थी. मैंने इंजीनियरिंग की बजाए NDA इसलिए चुना, क्योंकि मैं कुछ अलग करना चाहती थी. इसलिए आर्मी ज्वाइन किया. NDA में तीन साल की जर्नी में मेरे अंदर बहुत बदलाव लाए हैं. मुश्किल रूटीन, फिजिकल मेहनत और कड़े डिसिप्लिन ने जिंदगी जीना सीखा दिया. शरीर से ज़्यादा दिमाग को परखा. राह कितनी भी कठिन हो हमें हमेशा सही डिसीजन लेना चाहिए. तीन साल की ट्रेनिंग में बहुत से उतार-चढ़ाव आए।
हमेशा कठिन राह चुनें : सिद्धि ने बताया, NDA की कठिन ट्रेनिंग, पुरुष कैडेट्स के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना, सेना में शामिल होने का सपना और परिवार के सहयोग से वह आज इस मुकाम पर खड़ी हैं. उन्होंने कहा, NDA सिखाता है कि हमें हमेशा कठिन राह चुननी चाहिए. NDA में जो भी जाना चाहता है उसके लिए दृढ़ता, निरंतरता और निरंतरता काफी मायने रखती है. आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आप डिफेंस में शामिल होना चाहते हैं, तो इसमें बहुत मेहनत लगती है।
पिता बोले- गर्व है : पिता निखिल ने कहा, सिद्धि शुरू से ही होनहार रही. जिस काम को ठान लिया उसे पूरा करके दिखाया. हमारे लिए गर्व की बात है कि सिद्धि पहली महिला कैडेट है जिसने ओवरऑल ऑर्डर ऑफ मेरिट में प्रेसिडेंट्स ब्रॉन्ज मेडल पाया. वह पहले प्रयास में एनडीए में चयनित नहीं हुई थी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं छोड़ी और दोबारा कोशिश की. मुझे गर्व है कि वह अब देश की सेवा के लिए तैयार है.
NIT छोड़ डिफेंस ज्वाइन किया : सिद्धि जैन साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं. पिता निखिल जैन और मां तृप्ति जैन टीचर हैं. सिद्धि ने 10वीं सीबीएसई बोर्ड में जिला स्तर पर द्वितीय स्थान हासिल किया था. 12वीं में एपीएस इंटरनेशनल स्कूल की टॉपर बनीं. कोटा, राजस्थान में IIT-JEE की तैयारी कर रही थीं. IIT मेंस में 99 परसेंटाइल लाकर NIT इलाहाबाद में दाखिला लिया. इसके बाद उनका सिलेक्शन नेशनल डिफेंस एकेडमी में हो गया. सिद्धि ने NIT छोड़कर NDA ज्वाइन कर भारतीय वायुसेना में जाना तय किया.

पुणे के खडकवासला में 30 नवंबर को दीक्षांत समारोह नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी ने सिद्धि को मेडल पहनाया, पूरा स्टेडियम तालियों से गूंज उठा. बता दें, सिद्दी जैन तीन बहनों में सबसे बड़ी हैं. छोटी बहन संस्कृति जैन वनस्थली जयपुर से बीटेक कर रहीं है. सबसे छोटी बहन सची जैन उझानी में 12वीं क्लास में पढ़ रही है.
149वें कोर्स में 329 कैडेट पास आउट, जिनमें 15 महिला कैडेट शामिल
रविवार को पासिंग आउट होने वाले 329 कैडेट्स में 15 महिला कैडेट्स थीं। अब तक दो महिला कैडेट अकादमिक स्ट्रीम में टॉपर रही हैं, एक 148वें और एक 149वें कोर्स में। लेकिन ओवरऑल मेरिट में मेडल जीतने वाली पहली महिला कैडेट बनने का गौरव सिद्धि जैन को मिला। एनडीए की ओवरऑल मेरिट सूची कई पहलुओं पर आधारित होती है। जिसमें अकादमिक प्रदर्शन, आउटडोर ट्रेनिंग, संयुक्त ट्रेनिंग, अफसर जैसे गुण, सर्विस सब्जेक्ट्स शामिल होता है।
हमने कंधे से कंधा मिलाकर नहीं, हाथ पकड़कर भी ट्रेनिंग की- Siddhi Jain
अपने परेड के बाद सिद्धि ने कहा, “एनडीए का ट्रेनिंग कठिन है, लेकिन लगातार मार्गदर्शन, इंस्ट्रक्टर्स का सहयोग और परिवार का प्यार इस सफर को आसान बना देता है। यहां सिखाया जाता है कि सैन्य ट्रेनिंग का मतलब है, धैर्य, नियमितता और लगातार आगे बढ़ना। जब हमें पुरुष कैडेट्स के साथ मिलाकर ट्रेनिंग दी गई, तो हमने सिर्फ कंधे से कंधा ही नहीं, बल्कि कई बार हाथ पकड़कर भी चुनौतियों को पार किया।” सिद्धि ने आगे बताया कि बचपन से ही सेना में जाने का सपना था।
IIT-JEE की तैयारी कर रही थी, तभी एनडीए ने महिलाओं के लिए प्रवेश शुरू किया। मैंने फैसला किया कि मैं एनडीए का ही एग्जाम दूंगी। परिवार ने हर कदम पर साथ दिया, तभी यह सफर संभव हो पाया।”








