संगीत साधक स्व. रफीक सागर की प्रथम पुण्यतिथि पर ‘स्वरांजलि”


- सुरों के जरिए दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि
बीकानेर, 22 दिसम्बर। गंगाशहर स्थित श्री संगीत कला केन्द्र संस्थान के तत्वावधान में सोमवार को नगर के सुप्रसिद्ध भक्ति संगीत साधक और गजल गायक स्व. रफीक सागर की प्रथम पुण्यतिथि पर एक गरिमामय “स्वरांजलि” कार्यक्रम का आयोजन किया गया। संस्थान के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में संगीत जगत की विभिन्न हस्तियों और कला प्रेमियों ने अपनी सुरीली प्रस्तुतियों के माध्यम से मरहूम सागर साहब को याद किया और उनकी संगीत साधना को नमन किया।


मानवता के संदेशवाहक थे रफीक सागर
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वरिष्ठ लेखक अशफ़ाक कादरी ने स्व. रफीक सागर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि एक बहुआयामी संगीतज्ञ थे जिन्होंने अपनी स्वर लहरियों से सदैव मानवता और प्रेम का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि सागर साहब ने बीकानेर की गलियों से लेकर कोलकाता और मुंबई जैसे महानगरों तक गजल गायन और संगीत निर्देशन के क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई। बीकानेर के भक्ति संगीत (सूफियाना और भजन) के प्रति उनका जुड़ाव अटूट था। इसी क्रम में संगीत शिक्षक अहमद बशीर सिसोदिया और कवि अब्दुल शकूर सिसोदिया ने उन्हें ‘संगीत का महान संत’ और ‘आत्मीयता से ओतप्रोत कलाकार’ बताया। संस्था अध्यक्ष डालचंद सेवग ने कहा कि सागर साहब का पूरा जीवन नए कलाकारों के लिए प्रेरणास्रोत रहा है।


राजा हसन की मार्मिक स्वरांजलि: “तुम सामने बैठो और मैं गीत गाऊं” कार्यक्रम का सबसे भावुक क्षण वह था जब बॉलीवुड सिंगर राजा हसन ने अपने पिता स्व. रफीक सागर के संस्मरण साझा किए। पिता को याद करते हुए राजा हसन ने कहा कि वे उनके जीवन के सबसे बड़े मार्गदर्शक और प्रेरणादायी व्यक्तित्व थे। राजा हसन ने जब अपनी प्रसिद्ध संगीत रचना “तुम सामने बैठो और मैं गीत गाऊं” प्रस्तुत की, तो पूरा सभागार भाव-विभोर हो गया और उपस्थित जनों की आंखें नम हो गईं।
सुरमयी प्रस्तुतियों से महकी महफिल
श्रद्धांजलि सभा में शहर के अन्य नामचीन कलाकारों ने भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा:
पं. पुखराज शर्मा (संस्था निदेशक): इन्होंने सागर साहब की मशहूर ग़ज़ल “मेरे लिए जो सोच है वैसा नहीं माना, अच्छा नहीं माना बुरा भी नहीं माना” पेश कर जमकर दाद बटोरी।
आरव देरदेकर: “मौसम आएंगे जाएंगे हम तुमको भूल ना पाएंगे” गीत के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि दी।
सपन कुमार भक्ता: इन्होंने भक्ति भाव से सराबोर भजन “जिसके सर पर हाथ हो तेरा वो कैसे दुख पाए” सुनाया।
वैभव पारीक: इन्होंने “मन रे तू काहे धीर धरे” सुनाकर माहौल को आध्यात्मिक बना दिया।
चंद्रशेखर सांवरिया: इन्होंने दाग़ देहलवी की गजल प्रस्तुत कर शास्त्रीय गायकी का रंग जमाया।
इस संगीत सभा में तबले पर उस्ताद गुलाम हुसैन, पैड पर सादत हुसैन और आर्गन पर दानिश ने बेहतरीन संगत की। कार्यक्रम में कमल श्रीमाली, हितेंद्र व्यास, आनंद परिहार सहित बड़ी संख्या में संगीत प्रेमी मौजूद रहे।
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