106वीं पुण्यतिथि पर आयोजित ‘ओळू समारोह’ का भावपूर्ण आगाज़


- डॉ. टैस्सीटोरी सांस्कृतिक पुरोधा एवं भारतीय आत्मा थे
बीकानेर, 22 नवंबर। प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ के संयुक्त तत्वावधान में महान इटालियन विद्वान एवं राजस्थानी पुरोधा लुईजि पिओ टैस्सीटोरी की 106वीं पुण्यतिथि के अवसर पर दो दिवसीय ‘ओळू समारोह’ का भावपूर्ण आगाज़ हुआ। प्रथम दिन सुबह डॉ. टैस्सीटोरी समाधि स्थल पर पुष्पांजलि एवं विचारांजलि का आयोजन किया गया।
राजस्थानी मान्यता का बीजारोपण
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं राजस्थानी मान्यता आंदोलन के प्रवर्तक कमल रंगा ने कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी सच्चे अर्थों में सांस्कृतिक पुरोधा एवं भारतीय आत्मा थे। उन्होंने 1914 में ही राजस्थानी मान्यता का बीजारोपण कर दिया था और इसे गुजराती से एक स्वतंत्र एवं समृद्ध भाषा बताया था। रंगा ने दुख व्यक्त किया कि इतनी प्राचीन भाषा को आज भी संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पाई है, जो करोड़ों लोगों की जनभावना को आहत करता है। उन्होंने राजस्थानी को शीघ्र दोनों तरह की मान्यताएं देने की पुरजोर पैरोकारी की।
साहित्य, शोध और पुरातत्व में अमूल्य योगदान
मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार प्रमोद शर्मा ने कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति को सच्चे अर्थों में जीते थे और अपनी मातृभाषा इटालियन से अधिक राजस्थानी को प्रेम करते थे। उन्होंने कहा कि टैस्सीटोरी का सपना तभी सच होगा जब राजस्थानी को मान्यता मिलेगी। भाषा अधिकारी सुनील प्रसून ने उन्हें जनमानस में राजस्थानी भाषा की अलख जगाने वाले महान साहित्यिक सैनानी बताया।



युवा कवि गंगा बिशन बिश्नोई और कवि शकूर बीकाणवी ने उन्हें काव्यांजलि अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन कवि गिरिराज पारीक ने किया। प्रारम्भ में, कमल रंगा, प्रमोद शर्मा, पुनीत कुमार रंगा सहित अनेक राजस्थानी हेताळूओं ने डॉ. टैस्सीटोरी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित कर अपनी भावांजलि व्यक्त की।











