बस अग्निकांड में एक परिवार के 5 सदस्यों समेत 21 लोगों की जलने से मौत, DNA से पहचान की प्रक्रिया जारी



जोधपुर/जैसलमेर, 15 अक्टूबर। राजस्थान के जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर मंगलवार दोपहर साढ़े 3 बजे हुए भीषण बस अग्निकांड ने कई परिवारों को शोक में डुबो दिया है। केके ट्रैवल्स की एसी स्लीपर बस में लगी आग में अब तक 21 यात्रियों की जलकर मौत हो चुकी है, जिनमें एक ही परिवार के पांच सदस्य शामिल हैं। हादसे में 14 लोग घायल हुए हैं, जिनमें से चार की हालत गंभीर बनी हुई है। शवों की पहचान के लिए DNA सैंपलिंग की प्रक्रिया चल रही है, जबकि एक बुजुर्ग मां को अभी तक अपने पूरे परिवार की मौत की खबर छिपाई जा रही है।




एक परिवार का पूरा कुनबा सवार था बस में



हादसे का सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि जैसलमेर आयुध डिपो में कार्यरत महेंद्र मेघवाल (उम्र अज्ञात), उनकी पत्नी पार्वती, बड़ी बेटी खुशबू, छोटी बेटी दीक्षा और सबसे छोटा बेटा शौर्य—पूरे परिवार के पांच सदस्य दीपावली मनाने गांव लवारन (शेरगढ़) लौट रहे थे। महेंद्र को 12 साल पहले अपने पिता जालूराम की जगह अनुकंपा नियुक्ति मिली थी। परिवार इंद्रा कॉलोनी में किराए पर रहता था। रिश्तेदारों ने बताया कि महेंद्र करीब 20 दिन पहले ही गांव आए थे, जहां उनके बड़े भाई जगदीश (ओमान में नौकरी करने वाले) को विदा करने गए थे। इस बार वे मां गवरीदेवी और भाभी के साथ दीपावली की खुशियां बांटने जा रहे थे, लेकिन किस्मत ने उनका सपना चूर कर दिया।
मां को मौत की खबर छिपाई जा रही, बहन को DNA के लिए बुलाया
महेंद्र के गांव लवारन में उनकी बुजुर्ग मां गवरीदेवी और भाई जगदीश की पत्नी-बच्चे रहते हैं। उन्हें अभी तक बेटे-बहू और तीनों पोते-पोतियों की मौत की खबर नहीं दी गई है। गांव की महिलाओं को भी उनसे दूर रहने की हिदायत दी गई है, ताकि सदमा न लगे। जगदीश विदेश से लौटने में समय लेंगे, इसलिए परिवार पर संकट गहरा गया है।
DNA सैंपलिंग के लिए महेंद्र के ससुराल (गिलाकौर) से उनकी बहन को रिश्तेदार जोधपुर लाए हैं। कलेक्टर प्रताप सिंह ने बताया कि आग इतनी भयानक थी कि कई शव बस की बॉडी से चिपक गए। 21 मृतकों में से 11 शव जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल मॉर्च्यूरी में और 10 एम्स मॉर्च्यूरी में रखे हैं। अब तक केवल दो शवों की पहचान हो पाई है, जिन्हें पोस्टमॉर्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया।
10 साल के युनुस की भी हो गई मौत, मृतक संख्या 21 हुई
जैसलमेर के निवासी 10 वर्षीय युनुस, जो बुरी तरह झुलस गया था, आज सुबह महात्मा गांधी अस्पताल में उपचार के दौरान दम तोड़ दिया। इससे मृतकों की संख्या 21 पहुंच गई। मूल रूप से हादसे में 19 लोगों की मौके पर मौत हुई थी, जबकि 79 वर्षीय हुसैन खां ने जोधपुर जाते समय दम तोड़ा था।
बस में खामियां बनी मौत का कारण
जैसलमेर से जोधपुर जा रही बस में 57 यात्री सवार थे। बस महज 10-15 किमी दूर थईयात गांव के पास वार म्यूजियम के निकट पहुंची ही थी कि पिछले हिस्से से धुआं निकला। शॉर्ट सर्किट या एसी कंप्रेसर फटने से आग लग गई, जो तेजी से फैल गई। चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने बताया कि बस में केवल एक ही दरवाजा था, जबकि निकासी के लिए कम से कम दो होने चाहिए। सभी खिड़कियां लेमिनेटेड ग्लास से ढकी थीं, जिन्हें तोड़ा नहीं जा सका। स्लीपर बस की फाइबर बॉडी और पर्दों ने आग को और भयावह बना दिया। यात्री अंदर फंसकर जिंदा जल गए।
घायलों का इलाज जारी, चार वेंटिलेटर पर
हादसे में घायल 14 यात्रियों का जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल में इलाज चल रहा है। इनमें महिपाल सिंह, ओमाराम, मनोज भाटिया, इकबाला, फिरोज, भागा बाई, पीर मोहम्मद, जीरराज, इमिमाता, विशाशा, आशीष, रफीक, लक्ष्मण और उबेदुला शामिल हैं। चार घायल वेंटिलेटर पर हैं, जिनकी हालत चिंताजनक है।
गांव में अंत्येष्टि की तैयारी, शोक की लहर
लवारन गांव में एक साथ पांच सदस्यों की मौत से सन्नाटा पसर गया है। ग्रामीण श्मशान घाट की सफाई और झाड़ियां साफ करने में जुटे हैं। आंसुओं से भीगा गांव अंत्येष्टि की तैयारी कर रहा है, लेकिन मां को सच बताने की हिम्मत किसी में नहीं। पूरा समाज शोक में डूबा है।
प्रशासन की संवेदना और जांच
प्रशासन ने मृतकों के परिजनों को हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है। मुख्यमंत्री ने शोक संदेश जारी कर सहायता राशि की घोषणा की है। बस की जांच के आदेश दिए गए हैं ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। यह हादसा सड़क सुरक्षा और वाहनों की फिटनेस पर सवाल खड़े करता है।
7 मिनट में आग का गोला बन गई थी बस
गौरतलब है कि जैसलमेर से जोधपुर जा रही एसी स्लीपर बस में मंगलवार दोपहर 3.30 बजे आग लगी थी। करीब सात मिनट में बस आग के गोले में बदल गई, यात्रियों को संभलने का मौका तक नहीं मिला। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया था कि बस की बैटरी में शॉर्ट सर्किट होने से एसी की गैस फैल गई और आग ने भीषण रूप ले लिया। बस की बनावट संकरी थी तथा इमरजेंसी गेट केवल पीछे की ओर लगाया गया था, जबकि दोनों ओर होना आवश्यक था। नई बस में एसी की गैस पूरी भरी हुई थी।
