“मैं स्तब्ध रह गया” – जूता फेंकने की कोशिश पर CJI गवई का बयान



नई दिल्ली, 9 अक्टूबर। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने गुरुवार को कहा कि वह और उनके भाई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन, सोमवार को 71 वर्षीय वकील राजेश किशोर द्वारा किए गए जूता फेंकने के प्रयास से स्तब्ध (शॉक्ड) रह गए थे। हालाँकि, सीजेआई ने इस घटना को अब न्यायालय के लिए ‘एक भुला दिया गया अध्याय’ बताया।
न्यायपालिका के अपमान पर चिंता
यह टिप्पणी तब आई जब सीजेआई की पीठ एक असंबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी। मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी के बाद, उनके भाई, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां, ने भी इस असफल हमले की निंदा की। न्यायमूर्ति भुइयां ने घटना की गंभीरता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह मजाक का विषय नहीं है, बल्कि संस्था का अपमान है।
अदालत में मौजूद भारत के सॉलिसिटर जनरल (SGI) तुषार मेहता ने भी इस कृत्य को अक्षम्य बताया। मेहता ने कहा कि यह मुख्य न्यायाधीश की उदारता ही थी कि हमलावर को अदालत ने क्षमादान दे दिया।




हमले का कारण
उक्त हमला सोमवार को हुआ था, जब 70 वर्षीय राजेश किशोर कोर्ट नंबर 1 में घुस गए और सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच की ओर जूता फेंकने का प्रयास किया। हमलावर ने अपने हमले के पीछे का मकसद यह बताया कि वह मुख्य न्यायाधीश की उस टिप्पणी से असंतुष्ट था, जो हाल ही में खजुराहो में एक मंदिर में भगवान विष्णु की सिर कटी संरचना की पुनर्स्थापना की मांग वाली याचिका की सुनवाई के दौरान की गई थी।



याचिका की सुनवाई से इनकार करते हुए, मुख्य न्यायाधीश गवई ने टिप्पणी की थी कि मूर्ति को पुनर्स्थापित करने के लिए निर्देश मांगने वाले याचिकाकर्ता को भगवान विष्णु से प्रार्थना करके उपाय तलाशना चाहिए, क्योंकि न्यायालय ने इस पर विचार करने से मना कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह एक मंदिर पर विवाद है, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के तहत एक संरक्षित स्मारक है, और इस संबंध में हस्तक्षेप करने के लिए एएसआई बेहतर प्राधिकारी है।
