संस्कृति व सांगोपांग लोक कला राजस्थान का गर्व है- राजवीर सिंह चलकोई

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चूरू, 1 सितंबर। राष्ट्रीय संस्थान नगरश्री प्रांगण में राजस्थान कला संस्कृति एवं विरासत संरक्षण अभियान द्वारा घुमंतू एवं अर्ध घुमंतू दिवस के अवसर पर भोपा जाति के सुरीले साज “रावण हत्था” की मनमोहक प्रस्तुति के साथ भव्य सांस्कृतिक आयोजन हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर कमल सिंह कोठारी ने की। मुख्य अतिथि युवा आईकॉन राजवीर सिंह चलकोई, मुख्य वक्ता इंटेक शेखावाटी चैप्टर की कन्वीनर डॉ. श्रुति नड्डा, विशिष्ट अतिथि बिड़ला सार्वजनिक हॉस्पिटल पिलानी के निदेशक मधुसूदन मालानी, और राजस्थान कला संस्कृति एवं विरासत संरक्षण अभियान के प्रदेश संयोजक नितिन बजाज मंचस्थ रहे।

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मुख्य आकर्षण: रावण हत्था की मंत्रमुग्ध प्रस्तुति

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40 देशों में रावण हत्था वाद्य यंत्र की कला को बढ़ावा देने वाले अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार कीकरलाल भोपा ग्रुप ने “तालरिया मगरिया रे…”, “हरिराम जी ध्याव बांका दुखड़ा मिट ज्यावे…”, और “केशरो नागण को जायो…” जैसे गीतों के साथ रावण हत्था की धुन बजाई। इस प्रस्तुति ने राजस्थान की लोक कला को साकार कर दिया, और दर्शक झूम उठे।

आयोजन का उद्देश्य

कार्यक्रम के संयोजक नितिन बजाज ने स्वागत भाषण में कहा कि यह आयोजन राजस्थान की समृद्ध विरासत को जन-जन तक पहुंचाने के लिए किया गया। उन्होंने बताया कि संस्था का उद्देश्य लोक वाद्य, संस्कृति, और धरोहर के संरक्षण के लिए सरकार से संवाद स्थापित कर इन्हें संरक्षित करना है।

राजवीर सिंह चलकोई का उद्बोधन

मुख्य अतिथि राजवीर सिंह चलकोई ने कहा कि राजस्थान की संस्कृति और रीति-रिवाज अत्यंत समृद्ध हैं, जिनमें वह मिठास है जो हर व्यक्ति को आकर्षित करती है। उन्होंने भारतीय इतिहास में राजस्थान की परंपराओं के महत्व को रेखांकित करते हुए चूरू के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख किया, जहां शासकों ने साहस और सेठ-साहूकारों ने चांदी के गोले चलाकर अपनी जन्मभूमि की रक्षा की। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे नई पीढ़ी को राजस्थान की शौर्य गाथाओं से अवगत कराएं। साथ ही, उन्होंने जातिवाद और छुआछूत जैसे सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने का आह्वान करते हुए लोक कलाकारों को संस्कृति का दूत बताया।

कमल सिंह कोठारी के विचार

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार कमल सिंह कोठारी ने कहा कि राजस्थान की संस्कृति को संरक्षित करने में लोक कलाकारों का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने रावण हत्था, भपंग, सारंगी, कमेचा, तंदूरा, ढोल, और मोरचंग जैसे वाद्य यंत्रों को राजस्थान की जान बताया। उन्होंने बोली, पहनावे, और गीत-संगीत में राजस्थान की संस्कृति की महत्ता पर जोर दिया।

डॉ. श्रुति नड्डा का वक्तव्य

मुख्य वक्ता डॉ. श्रुति नड्डा ने कहा कि राजस्थान के कण-कण में संस्कृति और इतिहास छिपा है, जिसे उजागर करने की आवश्यकता है। उन्होंने राजस्थान के पहनावे, खान-पान, और रहन-सहन की जानकारी को सभी तक पहुंचाने के प्रयासों की सराहना की।

मधुसूदन मालानी का उद्बोधन

डॉ. मधुसूदन मालानी ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन युवा पीढ़ी को राजस्थान की अनूठी परंपराओं से अवगत कराते हैं। उन्होंने युवाओं से ऐसे कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने और “सेवा परमो धर्म” की परंपरा को अपनाने का आह्वान किया।

कार्यक्रम का संचालन और आभार

कार्यक्रम का संचालन गुरुदास भारती और रवि दाधीच ने किया। आयोजन समिति के संयोजक राहुल शर्मा ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रम युवाओं को प्रेरणा देने वाले हैं।

बारिश में भी उत्साह

मुसलाधार बारिश के बावजूद सैकड़ों लोग रावण हत्था के सुरीले स्वरों का आनंद लेने नगरश्री प्रांगण पहुंचे। कीकरलाल भोपा ग्रुप के कलाकारों कीकरलाल, विमला देवी, ताराचंद, सांवरमल, और पवन कुमार भोपा ने देर शाम तक अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध रखा।

उपस्थित गणमान्य

कार्यक्रम में राजीव बहड़, राहुल शर्मा, रामरतन बजाज, आशा कोठारी, काव्या, प्रभा, राजेश महनसर, डॉ. श्यामसुंदर शर्मा, डॉ. प्रमोद बाजोरिया, हरिमोहन दाधीच, बाबू पाटील, डॉ. मोतीलाल सोनी, हर्ष बजाज, नरेंद्र राठौड़, सौरभ सिंह, आशीष माटोलिया, कुलदीप जारावत, गौतम सारस्वत, मदन पंवार, अजय नायक, मोहित सिगानियां, रावतसिंह चौहान, मोहित इन्दोरिया, तिलोक औझा, दीपक गुर्जर, दिव्यांस जांगिड़, मयंक जालाण, पंकज शर्मा, अमित खारिया, दिव्यासू सैनी, रौनक गुर्जर, डॉ. पार्थ शर्मा, डॉ. रामानंद शर्मा, सुमित बोहित, गजानंद गौड़, हरिश शर्मा, विकास हिमांशू, सौरभ राजपुरोहित, मेघराज बजाज, कुलदीप जरगावत, आदित्य सिंह एडवोकेट, आनंद बालाण सहित सैकड़ों कला प्रेमी उपस्थित रहे।

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