रक्षाबंधन का त्योहार: मुनिश्री कमलकुमार की कविता में भाई-बहन के प्रेम का वर्णन



मुनिश्री कमलकुमार जी स्वामी ने रक्षाबंधन के पावन त्योहार पर भाई-बहन के निर्मल और उदार प्रेम को दर्शाती एक हृदयस्पर्शी कविता लिखी है। यह कविता, जिसकी तर्ज़ “कितना बदल गया संसार” पर है, इस पवित्र रिश्ते की गहराई और सांस्कृतिक महत्व को उजागर करती है।
कविता के बोल और भाव
भगिनी कहती बंधव प्यारे तुम मेरी आंखों के तारे।
विपद् काल में करना बंधव आ मेरी संभाल ॥१॥
यहां बहन अपने भाई को अपनी आँखों का तारा कहती है और उससे विपत्ति के समय अपनी रक्षा और देखभाल करने का आग्रह करती है। यह भाई के प्रति बहन के विश्वास और निर्भरता को दर्शाता है।




अक्षत कुमकुम राखी कर में लाती भगिनी बंधव घर में।
गुड़ मिश्री या मीठा लाती मन में हर्ष अपार ॥ २ ॥
बहन अपने हाथों में अक्षत (चावल), कुमकुम और राखी लिए भाई के घर आती है। उसके मन में अपार खुशी होती है और वह गुड़, मिश्री या कोई अन्य मिठाई लाती है, जो इस अवसर की मिठास को दर्शाती है।


तिलक लगा चावल चिपकाती, शुभ शक्ति उज्ज्वलता चाहती।
करती मुंह मीठा बंधव का कितने विमल विचार ॥३॥
बहन भाई के माथे पर तिलक लगाती है और चावल चिपकाती है, जो शुभता और उज्ज्वलता की कामना का प्रतीक है। वह भाई का मुंह मीठा करवाती है, जो उसके निर्मल विचारों और प्रेम को दर्शाता है।
कच्चे धागे का कर बंधन करती भाई का अभिनन्दन।
प्रेम भरे अभिनंदन को करता बंधव स्वीकार ॥४॥
यह पंक्ति बताती है कि बहन कैसे कच्चे धागे (राखी) से भाई को बांधती है, जो उनके अटूट रिश्ते का प्रतीक है। भाई भी बहन के इस प्रेम भरे अभिनंदन को सहर्ष स्वीकार करता है।
पर्व हिन्दु संस्कृति का सुन्दर सांवन पूनम के दिन घर-घर।
सभी मनाते हैं प्रायः मिल-जुलकर हृदय उदार ।।५।।
मुनिश्री बताते हैं कि यह सुंदर त्योहार हिंदू संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, जिसे सावन की पूर्णिमा के दिन घर-घर में मनाया जाता है। सभी लोग उदार हृदय से मिल-जुलकर इस पर्व को मनाते हैं, जो सामाजिक सौहार्द का संदेश देता है।
घर-घर में पकवान बनाते, हर्षोल्लास सहित सब खाते।
रक्षा बन्धन की महिमा गाता मुनि कमल कुमार ॥६ ॥
आखिरी छंद में, मुनिश्री वर्णन करते हैं कि रक्षाबंधन के दिन घरों में स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं और सभी हर्षोल्लास के साथ उनका आनंद लेते हैं। अंत में, मुनि कमलकुमार इस रक्षाबंधन की महिमा का गुणगान करते हैं, इस त्योहार के आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व पर प्रकाश डालते हैं।
यह कविता रक्षाबंधन के पारंपरिक रीति-रिवाजों और उनसे जुड़े भावनात्मक मूल्यों को सरलता और सुंदरता से व्यक्त करती है, जिसमें भाई-बहन के पवित्र प्रेम और एक-दूसरे के प्रति समर्पण का संदेश निहित है।