जीवाश्म- बीते युग की कहानी पर संवाद, बीकानेर में प्रदर्शित हुए करोड़ों वर्ष पुराने जीवाश्म

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बीकानेर, 20 जुलाई। अजित फाउण्डेशन द्वारा आयोजित मासिक संवाद के अंतर्गत आज जीव विज्ञानी प्रो. (डॉ.) राकेश हर्ष ने “जीवाश्म: बीते युग की कहानी” विषय पर एक महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि जीवाश्म हमें पृथ्वी को समझने और करोड़ों वर्ष पहले के जीवन व भूगर्भीय परिवर्तनों का अध्ययन करने में मदद करते हैं।
जीवाश्मों से खुलते हैं अतीत के रहस्य
डॉ. राकेश हर्ष ने बताया कि जीवाश्म हमें खोदने पर मिलते हैं और इनके माध्यम से हम उन कालों के पादप (पौधे) और जंतुओं में हुए परिवर्तनों पर शोध कर सकते हैं। जीवाश्मों से ही चट्टानों की आयु का भी पता लगाया जा सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अधिकतर जीवाश्म पादप और जंतुओं के कठोर हिस्सों के होते हैं, क्योंकि नरम हिस्से आमतौर पर गल जाते हैं या नष्ट हो जाते हैं। हालांकि, ग्लेशियरों (हिमनदों) में हमें कभी-कभी पूरे जंतुओं के जीवाश्म भी मिल सकते हैं।
डॉ. हर्ष के अनुसार, करोड़ों वर्ष पहले पृथ्वी की हलचल के कारण पादप या जीव-जंतु धूल और मिट्टी के नीचे दब गए। यदि उन पर पानी या हवा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ा, तो वे धीरे-धीरे जीवाश्मों में बदल गए।

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बीकानेर से मिले 32 नई प्रजातियों के जीवाश्म
डॉ. राकेश हर्ष ने बताया कि उन्होंने बीकानेर से भी हजारों जीवाश्म एकत्रित किए हैं, जिनमें से 32 नई प्रजातियों के जीवाश्म उन्होंने खोजे हैं। जीवाश्मों के आकार के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि जीवाश्म जीव के शरीर के अवशेष, जीव का एहसास दिलाने वाले चिन्ह, या उनके पदचिह्नों की ट्रेसिंग के रूप में भी पाए जाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कई जीवाश्म इतने सूक्ष्म होते हैं कि उन्हें केवल माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है, जबकि कुछ जीवाश्म ऐसे भी होते हैं जो पूरे विश्व में कई स्थानों पर मिले हैं। शोध के दौरान कभी-कभी केवल इंप्रेशन मिलते हैं, जिससे हमें उनकी बाहरी संरचना का पता चलता है। संवाद के दौरान डॉ. हर्ष ने जुरासिक काल से लेकर टर्शियरी काल तक के जीवाश्मों के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

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ऐतिहासिक संवाद और जनभागीदारी का आह्वान
कार्यक्रम का संचालन करते हुए संस्था समन्वयक संजय श्रीमाली ने कहा कि अजित फाउण्डेशन विभिन्न विषयों पर ऐसी वार्ताएं आयोजित करता रहता है, लेकिन यह एक ऐतिहासिक संवाद था जहाँ उपस्थित लोगों को करोड़ों वर्ष पुराने जीवाश्मों को छूने और अपनी आँखों से देखने का अवसर मिला। कार्यक्रम के अंत में शिक्षाविद् राजेंद्र जोशी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यों में जनभागीदारी अत्यंत आवश्यक है, ताकि यह ऐतिहासिक जानकारी हमारी भावी पीढ़ी तक पहुंच सके। इस कार्यक्रम में डॉ. अजय जोशी, डॉ. रितेश व्यास, योगेन्द्र पुरोहित, शिव कुमार वर्मा, आनंद पुरोहित, मोहम्मद फारूक, महेश उपाध्याय, जुगल किशोर पुरोहित, प्रेम नारायण व्यास, निखिल स्वामी, नरेश मारू, रामगोपाल व्यास, विनय थानवी, प्रशांत बिस्सा, खुशबू, प्रियांशु हर्ष सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

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