भारतीय संस्कृति सद्संस्कारों की संस्कृति- मुनिश्री दीपकुमार


पल्लावरम/चेन्नई, 27 अक्टूबर । युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण के सुशिष्य मुनिश्री दीपकुमार (ठाणा 2) के सान्निध्य में, श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, पल्लावरम द्वारा तेरापंथ भवन में “हमारी संस्कृति – हमारे संस्कार” विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया।
भौतिकता और पाश्चात्य प्रभाव से दूरी जरूरी
मुनिश्री दीपकुमारजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘जैसी संस्कृति, वैसे हो संस्कार’— जब तक यह सामंजस्य बना रहेगा, तब तक व्यक्ति और उसके व्यवहार की सुरक्षा होती रहेगी। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति मूलतः सद्संस्कारों और ऋषि-मुनियों की संस्कृति है। उन्होंने आज के बदलते दौर में पाश्चिमात्य सांस्कृतिक प्रभाव से उपजे दुष्कृतों पर चिंता व्यक्त की और लोगों से भौतिक एवं आडंबरग्रस्त संस्कृति जनित संस्कारों से दूरी बनाकर अपनी पहचान सुरक्षित रखने का आह्वान किया। उन्होंने जैन संस्कृति को ‘मानव संस्कृति- विश्व संस्कृति’ बताते हुए कहा कि यह सेवा, समर्पण, मैत्री और विसर्जन भाव से युक्त है, जो मानव जीवन को श्रृंगार का वलय प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि संस्कृति की सुरक्षा से ही हमारा भविष्य उज्जवल बन सकता है।




पारिवारिक संस्कारों और प्री-वेडिंग पर चेतावनी
मुनिश्री ने पारिवारिक और धार्मिक संस्कारों पर बल दिया और कहा कि संस्कारों का प्रारंभ परिवार से ही होता है। उन्होंने संस्कृति को पतन की ओर धकेलने वाले कारकों—जैसे समाज में असभ्य परिधान, खान-पान की अशुद्धि, और प्री-वेडिंग—से बचकर रहने की मार्मिक सलाह दी।



गर्भावस्था से ही संस्कारों की शुरुआत पर बल
मुनि श्री काव्यकुमारजी ने कहा कि माता-पिता को बच्चों को विद्यालयी शिक्षा के साथ-साथ सद्संस्कार अवश्य देने चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि संस्कारों का प्रारंभ बच्चे के गर्भ में आने के समय से ही कर देना चाहिए, क्योंकि माँ बच्चों की पहली संस्कारशाला होती है। अंत में, ज्ञानशाला के बच्चों ने अपने अवदान पर भव्य प्रस्तुति दी, जिसका संचालन श्रीमती सुधा मरलेचा एवं श्रीमती शकुंतलादेवी ने किया। पल्लावरम तेरापंथ सभा अध्यक्ष दिलीप भंसाली ने कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया।








