भारत का एकमात्र विदेशी एयरबेस हाथ से निकला! चीन-पाक की आंखों का कांटा ‘अयनी एयरबेस’ क्यों गंवाना पड़ा?


दुशांबे, 2 नवंबर। भारत के लिए एक बड़े रणनीतिक झटके के रूप में, ताजिकिस्तान ने अयनी एयरबेस (गिस्सार सैन्य हवाई अड्डा) के लिए कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाने से इनकार कर दिया है, जिसके बाद भारत को लगभग दो दशकों बाद मध्य एशिया में अपनी एकमात्र विदेशी सैन्य उपस्थिति समाप्त करनी पड़ी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ताजिकिस्तान ने रूस और चीन के बढ़ते दबाव के कारण यह निर्णय लिया, क्योंकि ये दोनों देश बेस पर गैर-क्षेत्रीय सैन्य कर्मियों की उपस्थिति के विरोधी थे।



अयनी एयरबेस भारत के लिए अत्यंत रणनीतिक महत्व रखता था। यह न केवल मध्य एशिया में भारतीय वायुसेना को रणनीतिक मजबूती देता था, बल्कि पाकिस्तान की हवाई सीमाओं को दरकिनार करते हुए भारत को उत्तरी अफगानिस्तान पर मात्र 15 मिनट में पहुँच और पीओके (PoK) तथा गिलगित-बाल्टिस्तान पर 360 किमी दूर से निगरानी करने की क्षमता प्रदान करता था। 2021 में अफगानिस्तान से भारतीय लोगों को निकालने के लिए भी इसी एयरबेस का इस्तेमाल किया गया था। भारत ने 2002 के एक समझौते के तहत इस एयरबेस को विकसित किया था और यहाँ Su-30MKI लड़ाकू विमान भी उतर सकता था।



भारत के इस बेस से हटने के कई गंभीर परिणाम होंगे। इससे न केवल खुफिया नुकसान होगा (जैसे SIGINT रडार का जाना), बल्कि 2021 काबुल एयरलिफ्ट जैसे तेज प्रतिक्रिया वाले ऑपरेशन भी मुश्किल हो जाएंगे। यह चीन के CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) पर भारत की निगरानी को भी सीमित करेगा।
विश्लेषकों के अनुसार, इस कदम से मध्य एशिया में रूस और चीन का प्रभाव और मजबूत होगा। हालांकि, भारत अब क्षेत्रीय प्रभाव बनाए रखने के लिए आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों पर निर्भर करेगा और मंगोलिया (प्रस्तावित), ओमान (दुक्म नौसैनिक बर्थ) तथा मॉरीशस जैसे देशों में अन्य लॉजिस्टिक्स पॉइंट बनाने की योजना पर काम कर रहा है।








