अणुव्रत चेतना दिवस पर साध्वीश्री पुण्ययशाजी ने ‘अणुव्रत’ अपनाने पर जोर दिया



बीकानेर, 24 अगस्त। पर्युषण पर्व के पाँचवें दिन को ‘अणुव्रत चेतना दिवस’ के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी की शिष्या साध्वी श्री पुण्ययशाजी ने अपने प्रवचन में जीवन में अणुव्रत को अपनाने का महत्व समझाया।
साध्वीश्री ने भगवान महावीर के पिछले जन्म त्रिपृष्ठ वासुदेव का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे क्रूर हिंसा से उन्हें नरक का बंधन मिला। उन्होंने कहा कि व्रत लेने से हमारे कर्म रुकते हैं और हमारी आत्मा पवित्र होती है। उन्होंने अणुव्रत को जीवन जीने की कला बताते हुए कहा कि ये छोटे-छोटे नियम हमें संयमित जीवन की ओर ले जाते हैं, जिससे हम वीतराग पथ पर आगे बढ़ पाते हैं।




इस कार्यक्रम में साध्वी विनीतयशाजी ने कविता, साध्वी वर्धमानयशाजी ने व्रत का महत्व और साध्वी बोधिप्रभाजी ने एक गीत के माध्यम से अणुव्रत की महिमा का गुणगान किया।
आज के दिन कई तपस्वियों ने एक से पाँच दिन तक की तपस्या का संकल्प लिया, जिसमें पाँच दिन की तपस्या के तेरह प्रत्याख्यान हुए। इसके अलावा, हर्षिता गोटावट ने 11 दिनों की तपस्या पूरी की। इस अवसर पर विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारीगण और बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे।
सभा मंत्री गुलाब बाँठिया ने आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी, जबकि अणुव्रत समिति के उपाध्यक्ष बी.वी. चन्द्रशेखरय्याजी ने कन्नड़ भाषा में अणुव्रत गीत प्रस्तुत किया। आज 14 लोगों ने अणुव्रत की सदस्यता ग्रहण कर संकल्प लिया। कार्यक्रम का समापन साध्वीश्री के मंगलपाठ के साथ हुआ।

