विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर विशेष काव्य गोष्ठी का आयोजन


कवियों ने किया प्रकृति संरक्षण का आह्वान बीकानेर, 29 जुलाई । विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के अवसर पर बढ़ते प्रदूषण और प्रकृति के विभिन्न अंगों को हो रही क्षति को रोकने के प्रयासों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए सोमवार को मल्टी स्किल डेवलपमेंट एसोसिएशन द्वारा “विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस” विषय पर एक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी का संयोजन एसोसिएशन के सीईओ और पूर्व प्रिंसिपल प्रोफेसर डॉ. नरसिंह बिनानी ने किया। प्रकृति की महत्ता और संरक्षण का संदेश
गोष्ठी की शुरुआत में वरिष्ठ कवि व साहित्यकार मोहन लाल जांगिड़ ने प्रकृति को मानव की जननी बताते हुए उसके संरक्षण की महत्ता उजागर की। उन्होंने अपनी रचना “प्रकृति जननी प्रथम सदा, रखिए माँ सा मान” की शानदार प्रस्तुति दी। गोष्ठी का संयोजन करते हुए प्रोफेसर डॉ. नरसिंह बिनानी ने अपने हाइकु प्रस्तुत किए, जैसे: “संरक्षित हो, प्राकृतिक साधन, मानव द्वारा”।




वरिष्ठ कवि व साहित्यकार जुगल किशोर पुरोहित ने धरती को माता मानते हुए उसके संरक्षण को प्राथमिकता दी और अपनी रचना “हरी-भरी हो धरती माता, जन-जन का है इससे नाता” प्रस्तुत की। युवा कवयित्री सरिता तिवाड़ी पारीक ने प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षारोपण के महत्व को उजागर करते हुए अपनी रचना – “ऐसा संकल्प हमें लेना है, जाकर हर गली हर घर, वृक्षारोपण का संदेश देना है” – शानदार शब्दों में प्रस्तुत की। इसी क्रम में वरिष्ठ कवि व साहित्यकार डॉ. कृष्णलाल बिश्नोई ने अपनी विशिष्ट रचना – “अनमोल तोहफा है प्रकृति का, हरियाली का जीवन में आना” – प्रस्तुत कर मानवीय जीवन में हरियाली के महत्व को स्पष्ट किया।


जल संरक्षण और प्रदूषण पर चिंता
गोष्ठी में हिस्सा लेते हुए कवि-कथाकार उमाशंकर बागड़ी ने अपनी रचना में ये शब्द – “एक बोतल पानी से, मैं गाड़ी को बहुत अच्छे ढंग से साफ़ कर लेता हूँ” – जोड़कर मनुष्य जीवन में पानी के उपयोग में मितव्ययता रखने की बात कही। इसी प्रकार, पीबीएम हॉस्पिटल के पूर्व नर्सिंग अधीक्षक व वरिष्ठ कवि डॉ. जगदीश दान बारहठ ने पृथ्वी पर हो रहे पर्यावरण प्रदूषण की तुलना अमावस्या की अंधी रात से की। उनकी रचना के ये शब्द – “धरती को ज्वालामुखी की भांति उगलते देखा” – प्रकृति संरक्षण दिवस के महत्व की वर्तमान समय में सार्थकता सिद्ध करते हैं। काव्य गोष्ठी के संयोजक पूर्व प्रिंसिपल, चिंतक व लेखक प्रोफेसर डॉ. नरसिंह बिनानी थे। अंत में वरिष्ठ कवि व साहित्यकार जुगल किशोर पुरोहित ने सभी की रचनाओं को शानदार और सराहनीय बताते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।