हर्षाेल्लास के साथ ‘नानीबाई रो मायरो’ कथा संपन्न



बीकानेर, 30 सितंबर। महालक्ष्मी मंदिर प्रांगण में करुणा, भक्ति और समर्पण भाव पर आधारित ‘नानीबाई रो मायरो’ कथा का आज हर्षाेल्लास के साथ समापन हो गया। व्यास पीठासीन कथावाचक श्री उत्कृष्ट महाराज ने समापन के अवसर पर भावुक प्रसंगों का वर्णन किया।
भगवान की भक्तवत्सलता
उत्कृष्ट महाराज ने बताया कि भक्त नरसी की करुण प्रार्थना सुनकर द्वारकाधीश श्रीकृष्ण स्वयं परिवार सहित नानीबाई के ससुराल पधारे। नानीबाई की प्रसन्नता अवर्णनीय थी, क्योंकि जिस बहन का भाई स्वयं भगवान हो, उसका मायरा तो अद्भुत होना ही था।




सांवल सेठ की शरणागति: नरसी के लिए 56 करोड़ का मायरा भरने आए सांवल सेठ (स्वयं भगवान कृष्ण) पर जब नानीबाई के ससुराल पक्ष ने संदेह किया, तो भगवान ने उत्तर दिया, “नरसी मेरे पुराने सेठ और अन्नदाता हैं। यह धन-संपत्ति तो क्या, मैं इनके लिए स्वयं बिकने को भी तैयार हूँ।”



भक्त के अधीन भगवान: इस प्रसंग पर महाराज ने गदगद कंठ से कहा कि “भगवान भक्त के अधीन हैं, और भक्त भगवान के।” उन्होंने भक्तों से कहा कि अपने गोपाल पर भरोसा करके देखो, सब कुछ संभव हो जाएगा।
मायरा और भक्तिमय नृत्य
कथा प्रसंगानुसार सांवल सेठ ने नानीबाई को चुनरी ओढ़ाते हुए पूरे अंजार नगर को मायरा पहनाया।
पारंपरिक गीत: इस दौरान पारंपरिक विवाह गीत ‘बीरा रमक झमक होय आया’ और ‘नौ मण मिश्री, मायरे री बेला आई’ गाए गए। भक्तजन भावविभोर होकर जमकर नृत्य करने लगे।
भजन गायन: श्रीमती सरस्वती आचार्य और संगीतकार लालजी वैरागी ने ‘भर दे मायरो’, ‘सांवरियो भात भरण ने आवियो’, और ‘ओढ़ो ओढ़ो नी बाई’ जैसे भजनों से कथा प्रसंगों को जीवंत कर दिया। कान्हा पुरोहित ने तबला और नवीन पारीक ने ओक्टोपैड संगत पर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के अंत में महिला मण्डल के सभी सदस्यों ने श्रोतागणों और सभी सम्मानित लोगों का आभार व्यक्त किया।

