उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का ‘अप्रत्याशित और रहस्यमयी’ इस्तीफा, संसद में हलचल, विपक्ष ने उठाए सवाल

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नई दिल्ली, 22 जुलाई। संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन, सोमवार शाम को देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने त्यागपत्र में ‘स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने’ और ‘चिकित्सीय सलाह का पालन करने’ का हवाला दिया है, लेकिन उनके इस अप्रत्याशित कदम ने राजनीतिक गलियारों में अटकलों और हलचल को तेज कर दिया है। विपक्ष ने इसे “अप्रत्याशित और रहस्यमयी” बताते हुए इस्तीफे के पीछे गहरे कारणों की आशंका जताई है।अचानक इस्तीफे के पीछे क्या? 74 वर्षीय धनखड़ ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति पद संभाला था और उनका कार्यकाल अगस्त 2027 तक था। हाल ही में दिल्ली स्थित एम्स में उनकी एंजियोप्लास्टी हुई थी, और मार्च में उन्हें कुछ दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती भी कराया गया था। हालांकि, अधिकांश सार्वजनिक कार्यक्रमों में वे जीवंत और ऊर्जावान दिखे थे। उपराष्ट्रपति के इस्तीफे ने तुरंत कई सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि यह मानसून सत्र के पहले दिन ही आया है। सरकार या सत्तारूढ़ भाजपा की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया कि धनखड़ ने इस्तीफा क्यों दिया या उनका उत्तराधिकारी कौन हो सकता है।

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विपक्ष ने जताई हैरानी, कांग्रेस ने लगाए गंभीर आरोप
धनखड़ के इस्तीफे से विपक्षी दल सकते में आ गए हैं। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इसे “पूरी तरह अप्रत्याशित” और “इसमें जो दिख रहा है उससे कहीं अधिक” बताया है। रमेश ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा, “उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति का अचानक इस्तीफा जितना हैरान करने वाला है, उतना ही समझ से परे भी है।”

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धनखड़ के इस्तीफे पर खड़गे का बयान: देश के असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। खड़गे ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “धनखड़ साहब जाएं या रहें, कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ता।” उन्होंने इस घटना को “मोदी सरकार का इंटरनल मैनेजमेंट” करार दिया और आरोप लगाया कि यह “देश के असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश” है। खड़गे के इस बयान से साफ है कि कांग्रेस इस इस्तीफे को सरकार की आंतरिक राजनीति का हिस्सा मान रही है और वह इसे लेकर किसी बड़ी राजनीतिक बहस में उलझने के बजाय महंगाई, बेरोजगारी और अन्य जन-सरोकार के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया है कि इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों की बजाय कोई और गहरा कारण हो सकता है। उन्होंने बताया कि सोमवार को दोपहर 12:30 बजे जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति (BAC) की बैठक बुलाई थी, जिसमें सदन के नेता जेपी नड्डा और मंत्री किरेन रिजिजू सहित ज्यादातर सदस्य मौजूद थे। थोड़ी देर की बातचीत के बाद समिति की अगली बैठक शाम 4:30 बजे निर्धारित की गई। हालांकि, शाम की बैठक में नड्डा और रिजिजू दोनों नहीं पहुंचे, और धनखड़ को यह भी नहीं बताया गया कि वे क्यों अनुपस्थित रहे। रमेश के अनुसार, धनखड़ को इस बात का बुरा लगा और उन्होंने मीटिंग को अगले दिन दोपहर 1 बजे तक के लिए टाल दिया।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया कि दोपहर 1 बजे से लेकर शाम 4:30 बजे के बीच “जरूर कोई गंभीर बातचीत हुई है,” जिसके कारण जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने जानबूझकर शाम की बैठक में हिस्सा नहीं लिया। धनखड़ जी ने हमेशा 2014 के बाद के भारत की तारीफ़ की, लेकिन साथ ही किसानों के हितों के लिए खुलकर आवाज़ उठाई। उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बढ़ते ‘अहंकार’ की आलोचना की और न्यायपालिका की जवाबदेही व संयम की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। मौजूदा ‘G2’ सरकार के दौर में भी उन्होंने जहां तक संभव हो सका, विपक्ष को जगह देने की कोशिश की।

धनखड़ का टकराव भरा कार्यकाल और सम्मानजनक विदाई
राज्यसभा के सभापति के रूप में अपने कार्यकाल में, धनखड़ का विपक्ष के साथ कई बार टकराव हुआ। विपक्ष ने उन पर महाभियोग चलाने का प्रस्ताव भी पेश किया था, जिसे बाद में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया था। अपने त्यागपत्र में धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मंत्रिपरिषद, तथा सभी सांसदों को उनके कार्यकाल के दौरान सहयोग देने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने भारत की आर्थिक प्रगति और अभूतपूर्व विकास में सेवा करने को सौभाग्यपूर्ण बताया और भारत के उज्ज्वल भविष्य में अटूट विश्वास व्यक्त किया।

पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने धनखड़ को देशभक्त बताते हुए उनके इस्तीफे को स्वीकार कर आगे बढ़ने की बात कही। भाकपा सांसद पी. संदोष कुमार और शिवसेना (यूबीटी) नेता आनंद दुबे ने भी इसे ‘अप्रत्याशित’ बताया और हैरानी व्यक्त की। जगदीप धनखड़ ने इस महीने की शुरुआत में एक कार्यक्रम में कहा था कि वह “सही समय” पर, अगस्त 2027 में, “ईश्वरीय हस्तक्षेप” के अधीन सेवानिवृत्त हो जाएंगे। उनका अचानक इस्तीफा एक ऐसे समय आया है जब उन्हें न्यायपालिका से जुड़े कुछ बड़ी घोषणाएँ भी करनी थीं, और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के लिए विपक्ष द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव का नोटिस भी उन्हें सौंपा गया था। यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इस रिक्त हुए पद के लिए कितनी जल्दी चुनाव करवाती है और कौन इस महत्वपूर्ण संवैधानिक जिम्मेदारी को संभालता है।

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