संथारा साधिका श्रीमती पानी देवी मालू के गुणानुवाद सभा आयोजित हुयी

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गंगाशहर , 27 जनवरी। आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री सुमति कुमार जी ने आज तेरापंथ भवन में संथारा साधिका श्रीमती पानी देवी मालू के गुणानुवाद सभा में में बोलते हुए कहा कि भगवान महावीर ने कहा की आत्मा ही करते है और आत्मा ही भोक्ता है “अप्पा कता विकता य दुहाण य सुहाण य ” भगवान महावीर ने तीसरा मार्ग बताया संवर और निर्जरा जिसके माध्यम से कर्म का घेरा तोड़ा जा सकता है ।

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संथारा साधिका श्रीमती पानी देवी मालू के गुणानुवाद सभा में उपस्थित मुनिगण

मुनिश्री ने कहा कि जन्म से मृत्यु के बीच का नाम है जीवन। हम सब अपने आत्मा के लिए क्या कर रहे हैं यदि हमने अपनी आत्मा के लिए कुछ नहीं किया तो जीवन में पाप कर्मों का क्षय नहीं कर पाएंगे। आत्मा केवल पापों से भारी होती रहेगी। हमें आत्मा को हल्का करने के लिए कुछ ने कुछ त्याग,तपस्या ,ध्यान, स्वाध्याय करते रहना चाहिए। धन से संपन्न होना एक बात है ओर धर्म से संपन्न होना बड़ी बात है । यदि हम धर्म से संपन्न नहीं हुए तो हमारी आत्मा का भटकाव निश्चित है। समता बड़ा धर्म है। धर्म है समता हमारा कर्म समता में हमारा हमें सहनशीलता को धैर्य को समता भाव को बढ़ाना चाहिए। मुनि श्री श्रेयांस कुमार ने संथारे का महत्व बताया।

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तेरापंथ न्यास के ट्रस्टी जैन लूणकरण छाजेड़ ने कहा कि भारतीय संस्कृति में कहते हैं कि अंत भला तो सब भला। जैन दर्शन में जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी कार्य वैज्ञानिक ढंग से संपादित करने की विधि है। मृत्यु के वरण करने की भी व्यवस्थित विधि है जिसे संथारा संलेखना के नाम से जाना जाता है। संथारा से मृत्यु का वरण से मृत्यु महोत्सव बन जाती है। इस तरह मृत्यु को मोहत्सव मनाने कि कला केवल जैन दर्शन में ही है। सभी श्रावकों को संथारा संलेखना कि कामना रखनी चाहिए। तेरापंथी सभा के मंत्री जतन लाल संचेती ने संचालन करते हुए अपने विचार रखे। तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष श्रीमती संजू लालाणी , युवक परिषद् के सहमंत्री ऋषभ , मालू परिवार से उनके पुत्र चैनरुप मालू , बहुओं , बेटियों तथा परिजनों ने भी अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित किये। तेरापंथी सभा के मंत्री जतनलाल संचेती ने संचालन करते हुए अपने विचार रखे।

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