अनावश्यक न बोलना ही वाणी संयम की महत्ता है



गंगाशहर, 23 अगस्त। पर्युषण पर्व के चौथे दिन, ‘वाणी संयम दिवस’ के अवसर पर तपोमूर्ति मुनिश्री कमलकुमार जी ने वाणी के महत्व पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि अनावश्यक न बोलना ही वाणी संयम की महत्ता है। उन्होंने भगवान महावीर के समिति और गुप्ति के उपदेश का जिक्र किया। ‘भाषा समिति’ का अर्थ है सोच-समझकर, पाप रहित और हितकर बोलना।
कटुसत्य और मौन: उन्होंने समझाया कि असत्य और अप्रिय वाणी के साथ-साथ कटुसत्य भी समस्याओं को बढ़ा सकता है। ऐसी स्थिति में मौन यानी पूर्ण गुप्ति का पालन करना आवश्यक है।
आचार्य महाश्रमण जी का उदाहरण: मुनिश्री ने आचार्य श्री महाश्रमण जी का उदाहरण देते हुए कहा कि इतने बड़े धर्मसंघ का नेतृत्व करने के बावजूद वे हमेशा प्रसन्न रहते हैं क्योंकि वे केवल आवश्यक और सीमित शब्दों में ही बोलते हैं।
गृहस्थ जीवन में वाणी का प्रयोग
मुनिश्री ने कहा कि जहाँ साधुओं के लिए मौन संभव है, वहीं गृहस्थों के लिए परिवार और व्यापार चलाने के लिए बोलना जरूरी होता है। ऐसे में वाणी में मधुरता और चतुराई होनी चाहिए ताकि हर मुश्किल काम को आसान किया जा सके। इस मौके पर उन्होंने वाणी संयम पर अपना लिखा हुआ एक गीत भी सुनाया। मुनि श्रेयांस कुमार जी और मुनि मुकेश कुमार जी ने भी भक्ति गीत प्रस्तुत किए।




तपस्या और कार्यक्रम
मुनिश्री ने फरमाया कि आज पचरंगी का अंतिम दिवस हे दो पचरंगी का एक साथ होना अच्छी बात है। भाई बहनों ने उपवास, बेले, तेले, चोले, पंचोले, छः तक की तपस्या के साथ काफी लोगों ने एकाशन का प्रत्याख्यान किये। तारादेवी बैद के 41 व मुनि नमिकुमार जी के 32 दिन की तपस्या सानंद प्रर्वधमान है। सांयकालीन प्रतिक्रमण के तत्पश्चात शान्तिनिकेतन में साध्वीश्री विशदप्रज्ञा जी साध्वीश्री लब्धियशा जी के सानिध्य में जैन श्रावक की पहचान विषय पर कार्यक्रम आयोजित किया गया।

