कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटलीकरण से उभरती नई पीढ़ी


डॉ. वीरेन्द्र भाटी मंगल
डिजिटलीकरण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI ) के दौर में विश्व एक बड़े परिवर्तन से गुजर रहा है। तकनीक की इस प्रवाहमान धारा ने न केवल कार्यप्रणाली बदली है, बल्कि मनुष्य की सोच, जीवनशैली, शिक्षा, रोजगार और सामाजिक व्यवहार को भी गहराई से प्रभावित किया है। विशेष रूप से युवा पीढ़ी इस परिवर्तन का केंद्र है, जो नई चुनौतियों और अवसरों के बीच एक बिल्कुल नए स्वरूप में उभर रही है।
आज की युवा पीढ़ी तकनीक-संचालित संसार में पली-बढ़ी है, जहां सूचना तक पहुंच पहले से कहीं अधिक सरल और तीव्र हो गई है। इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया ने युवाओं के विचार, दृष्टिकोण और अभिव्यक्ति के दायरे को व्यापक बनाया है। चाहे ऑनलाइन अध्ययन हो, डिजिटल संवाद हो या वैश्विक मुद्दों पर सहभागिता। युवा वर्ग अपनी उपस्थिति हर क्षेत्र में दर्ज करा रहा है। डिजिटल प्लेटफॉर्म ने युवाओं को अभिव्यक्ति का एक ऐसा मंच प्रदान किया है, जहां वे अपनी सोच को खुलकर रख सकते हैं। यही कारण है कि संवेदनशील सामाजिक विषयों पर युवा पहले से अधिक स्पष्ट और मुखर दिखते हैं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता शिक्षा जगत में क्रांति की भूमिका निभा रही है। व्यक्तिगत शिक्षण, स्मार्ट क्लासरूम, वर्चुअल सिमुलेशन और शिक्षण-अध्यापन के आधुनिक उपकरणों ने विद्यार्थियों के सीखने की प्रक्रिया को सरल और अधिक प्रभावी बना दिया है। अब छात्र केवल किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि विश्वभर के ज्ञान-संसाधनों से जुड़ पा रहे हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित टूल्स यह पहचान कर लेते हैं कि विद्यार्थी को किस क्षेत्र में अधिक सहायता की आवश्यकता है और उसी अनुरूप उन्हें शिक्षण-सामग्री उपलब्ध कराते हैं। यह शिक्षा को व्यक्तिगत, अनुकूल और अधिक उपयोगी बनाता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता और ऑटोमेशन ने कार्यस्थलों की पारंपरिक संरचना को बदल दिया है। बहुत-से कार्य जहां मशीनें अधिक तेजी और सटीकता से कर रही हैं, वहीं नए क्षेत्रों में रोजगार के अवसर लगातार बढ़ रहे हैं। डाटा साइंस, मशीन लर्निंग, साइबर सुरक्षा, रोबोटिक्स, क्लाउड टेक्नोलॉजी और डिजिटल मार्केटिंग जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता की मांग तेजी से बढ़ी है। नई पीढ़ी को पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी कौशल, रचनात्मकता, नवाचार और समस्या समाधान की क्षमता विकसित करनी होगी। अब केवल डिग्री नहीं, बल्कि व्यवहारिक दक्षता रोजगार का आधार बनती जा रही है।
डिजिटलीकरण ने युवाओं में सामाजिक चेतना को भी मजबूत किया है। ऑनलाइन अभियानों, डिजिटल जनभागीदारी और ई-गवर्नेंस के माध्यम से युवा सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। वे पर्यावरण, महिला सशक्तीकरण, मानवाधिकार, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद कर समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला रहे हैं। डिजिटल माध्यमों की यह सक्रियता लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करती है। जहां तकनीक ने जीवन को सरल बनाया है, वहीं अनेक चुनौतियां भी सामने आई हैं जैसे अत्यधिक स्क्रीन टाइम, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं, गलत सूचना का प्रसार, साइबर अपराध और डिजिटल ठगी, सामाजिक दूरी और मानवीय संवेदनाओं में कमी ये चुनौतियां नई पीढ़ी के समक्ष ऐसे प्रश्न खड़े करती हैं जिन्हें केवल तकनीकी समाधान से नहीं, बल्कि नैतिक जागरूकता, डिजिटल अनुशासन और भावनात्मक संतुलन से ही सुलझाया जा सकता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटलीकरण की तेज रफ्तार भविष्य में और अधिक परिवर्तन लाएगी। ऐसे में आवश्यक है कि युवा तकनीक के उपयोग और दुरुपयोग के बीच का अंतर समझते हुए संतुलित डिजिटल जीवन अपनाएं। परिवार, समाज और शिक्षा संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे युवा वर्ग को तकनीक के प्रति जागरूक, संवेदनशील और विवेकशील बनाएं, ताकि वे डिजिटल संसार में भी मानवीय मूल्यों को बनाये रख सकें।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटलीकरण के इस युग में नई पीढ़ी अवसरों और संभावनाओं से भरे भविष्य की ओर बढ़ रही है। यह पीढ़ी तकनीक-सक्षम, वैश्विक दृष्टिकोण वाली और नवाचार के प्रति उत्साही है। यदि तकनीक का उपयोग सकारात्मक दिशा में किया जाए, तो यह मानव जीवन को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकती है। अतः आवश्यक है कि तकनीक को साधन बनाकर ज्ञान, मानवता और प्रगति के पथ पर आगे बढ़ा जाए।



डॉ. वीरेन्द्र भाटी मंगल
-(स्तम्भकार एवं वरिष्ठ साहित्यकार), लाडनूं 341306 (राजस्थान)











