राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला-आयुष्मान हार्ट अस्पताल के बाहर धरना 15 दिन में हटेगा, प्रशासन को सख्त आदेश


बीकानेर , 27 नवम्बर। बीकानेर के आयुष्मान हार्ट केयर सेंटर के बाहर पिछले ढाई महीने से अधिक समय से चल रहा धरना अब अपने अंतिम चरण में पहुँच गया है। राजस्थान हाईकोर्ट ने आज स्पष्ट आदेश दिया है कि अस्पताल के बाहर बिना अनुमति के किया जा रहा धरना-प्रदर्शन कानूनन जायज नहीं है और प्रशासन इसे 15 दिन के अंदर हटाने या वैधानिक कार्रवाई करने को बाध्य है।



यह पूरा विवाद 12 सितंबर 2025 को मरीज रामेश्वर लाल की मौत से शुरू हुआ था। परिजनों और कांग्रेस नेता रामनिवास कूकणा ने डॉ. बी.एल. स्वामी पर इलाज में गंभीर लापरवाही का आरोप लगाते हुए अस्पताल के सामने अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया था। 6 अक्टूबर को पीबीएम मेडिकल बोर्ड ने डॉक्टर को क्लीनचिट दे दी, जिसे कांग्रेस ने एकतरफा करार देकर धरना और तेज कर दिया।
अस्पताल प्रबंधन ने इसे अपनी प्रतिष्ठा व कार्य में बाधा मानते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। अस्पताल का कहना था कि धरना बिना अनुमति है, जिससे मरीजों को आने-जाने में परेशानी हो रही है और यह पुलिस एक्ट-2007 की धारा 44 तथा सुप्रीम कोर्ट के अमित साहनी केस (2020) का खुला उल्लंघन है।



जस्टिस नूपुर भाटी की बेंच ने आज अस्पताल की दलीलों को सही मानते हुए बीकानेर जिला प्रशासन और पुलिस को सख्त निर्देश दिया कि 15 दिनों के अंदर धरने पर अंतिम निर्णय लें और कानून के अनुसार कार्रवाई करें। इसका मतलब साफ है – या तो धरना हटेगा या प्रशासन बल प्रयोग करेगा या प्रदर्शनकारियों पर मुकदमा चलेगा।
अब सभी की नजर 12 दिसंबर 2025 तक प्रशासन के अगले कदम पर टिकी है। अगर प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की तो अस्पताल कोर्ट की अवमानना याचिका का रास्ता खुला है। दूसरी तरफ कांग्रेस अभी भी मांग रही है कि परिजनों की शिकायत पर निष्पक्ष जांच हो, पर कानूनी रूप से उसका धरना अब लगभग असंवैधानिक हो चुका है।
पहली बार नहीं लगा लापरवाही का दाग!
यह मामला केवल रामेश्वर लाल की मौत तक सीमित नहीं है। सूत्रों के अनुसार, आयुष्मान हार्ट केयर सेंटर पर यह लापरवाही का पहला मामला नहीं है। इस अस्पताल पर पहले भी इलाज में लापरवाही के आरोप लगते रहे हैं। विपक्षी नेताओं और परिजनों का आरोप है कि सरकारी नियामक एजेंसियों द्वारा प्राइवेट अस्पतालों की पूरी और निष्पक्ष जाँच नहीं करने के कारण ही लापरवाही की ऐसी घटनाएँ बार-बार सामने आती रहती हैं।
अब हाईकोर्ट का यह आदेश दर्शाता है कि न्यायालय ने लंबे समय से चल रहे इस गतिरोध को समाप्त करने और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की दिशा में प्रशासन की जवाबदेही तय की है। प्रशासन को अब न्यायालय के निर्देशानुसार, धरने की वैधानिकता और उसके कारण उत्पन्न हो रही समस्याओं का मूल्यांकन करके, नियमानुसार कार्रवाई करनी होगी।








