सद्गुणों से ही संत की पहचान, केवल वेश धारण करने से कोई साधु नहीं बनता- मुनि कमल कुमार


गंगाशहर , 22 दिसम्बर । उग्र विहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार जी ने आज तेरापंथ भवन में प्रवचन देते हुए कहा कि उतराध्ययन सुत्र में भगवान महावीर स्वामी ने कहा कि जो छ: काय के जीवों की हिंसा नही करता है वह शुद्ध साधुचर्या का पालन करता है। छ: काय का अर्थ है पृथ्वीकाय, अप्पकाय, तेजसकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय व त्रसकाय के जीवों से है।


मुनिश्री ने कहा कि साधु अपने जीवन में कभी भी इन जीवों की हिंसा नही कर सकता है। इसलिए ही आगम में साधुओं के लक्षणों का निरूपण है। सच्चा संत भी भिक्षा से आहार प्राप्त करता है तो मिथ्याचारी साधु भी भिक्षा से ही आहार प्राप्त करता है। इसलिए दोनों ही प्रकार के संतों की संज्ञा संत है। मुनि श्री ने प्रवचन के दौरान ‘असली और कृत्रिम स्वर्ण’ का उदाहरण देते हुए समाज को जागरूक किया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार दिखावटी सोना असली सोने जैसा ही चमकता है, लेकिन कसौटी पर कसने पर ही उसकी शुद्धता का पता चलता है, ठीक उसी प्रकार केवल नाम और वेश धारण करने से कोई सच्चा संत नहीं हो जाता। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक सच्चा संत अपने ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, विनय और शांति जैसे सद्गुणों के कारण ही समाज में प्रतिष्ठित होता है।


मुनि श्री ने कहा कि उतराध्ययन सुत्र में भगवान महावीर ने कहा कि संवेग, विवेक, सुशील, आराधना, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, विनय, शान्ति, मार्दव, आर्जव, अदीनता, तितिक्षा, आवश्यक, शुद्धि ये सभी सच्चे संत के लक्षण है। जो अहिंसक जीवन जीता है, संयममय जीवन जीता है। वह साधु है।
आज के कार्यक्रम में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के सी. पी. एस. के राष्ट्रीय प्रभारी दिनेश मरोटी का गंगाशहर आगमन पर अभिनन्दन तेरापंथी सभा गंगाशहर की ओर से सभा के अध्यक्ष नवरतन बोथरा, मंत्री जतनलाल संचेती, सहमंत्री पीयूष लूणिया,वरिष्ठ श्रावक जैन लूणकरण छाजेड़, पूर्व अध्यक्ष अमरचंद सोनी ने साहित्य व पताका पहनाकर किया। अभा तेयुप के दिनेश जी मरोटी ने उग्र विहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार जी स्वामी के तप व श्रावकों के आत्मकल्याण हेतु किये जा रहे प्रयासों को उल्लेखनीय बताया। एवं गंगाशहर सभा का आभार व्यक्त किया।








