पल्लावरम में ‘लोगस्स कल्प अनुष्ठान का भव्य आयोजन हुआ


“सर्व मनोरथ सिद्धि प्रदाता है लोगस्स” – मुनि श्री दीपकुमारजी पल्लावरम, 20 जुलाई। (स्वरूप चंद दांती) तमिलनाडु के पल्लावरम क्षेत्र में स्थित तेरापंथ भवन में आज युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री दीपकुमारजी ठाणा-2 के पावन सान्निध्य में ‘लोगस्स कल्प अनुष्ठान’ का भव्य आयोजन हुआ। यह आयोजन श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, पल्लावरम के तत्वावधान में संपन्न हुआ।
लोगस्स: भक्ति की भागीरथी और मनोरथ सिद्धि का मंत्र
नमस्कार महामंत्र के उच्चारण से शुरू हुए इस अनुष्ठान में मुनिश्री दीपकुमारजी ने सहभागी साधकों को लोगस्स का महत्व बताते हुए कहा कि लोगस्स तीर्थंकर स्तुति का एक महान मंत्र और एक महाशक्ति है। यह भक्ति साहित्य की एक अमर, अलौकिक, रहस्यमयी और विशिष्ट रचना है, जिसे जैन समाज में अत्यंत श्रद्धा और महत्व प्राप्त है।
मुनिश्री ने फरमाया कि लोगस्स शाश्वत सुख का राजपथ है, जो आरोग्य, बोधि, समाधि और सिद्धि प्रदान करने वाला है। उन्होंने बताया कि लोगस्स में भक्ति की भागीरथी प्रवाहित है, और जब साधक इसका पाठ करता है, तो उसका हृदय भक्ति रस से भर जाता है। लोगस्स आगम वर्णित मंत्र गर्भित है, जिसमें मंत्रों के अक्षरों की ऐसी अपूर्व और अनूठी संयोजना है कि इसके स्तवन से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। लोगस्स में तीर्थंकरों की स्तुति से अनिष्ट और अमंगल नष्ट होते हैं, तथा आंतरिक संताप और तनाव समाप्त होते हैं।




उन्होंने यह भी बताया कि लोगस्स का पाठ सप्तपदी मंत्र है, जिसके सात पद्यों की संख्या अपने आप में एक अनूठा रहस्य समेटे हुए है। मुनिश्री से लोगस्स के प्रभाव से जुड़े प्रसंगों को सुनकर साधक भक्ति रस से सराबोर हो गए। मुनिश्री ने लोगस्स के विविध प्रयोगों के बारे में बताते हुए अनुष्ठान करवाया, जिसे उपस्थित जनमेदनी ने तन्मय होकर सामूहिक रूप से गाया। अनुष्ठान के प्रारंभ में मुनिश्री काव्यकुमारजी ने त्रिपदी वंदना का प्रयोग कराया।

