आचार्य रामलालजी ने चतुर्विद संघ की साक्षी में पांच मुमुक्षुओं की दीक्षा एक मुमुक्षु मुनि व चार साध्वी बनी


बीकानेर 8 दिसम्बर। अखिल भारतीय साधुमार्गी जैन संघ के हुक्म संघ के नौवें पटधर देशनोक मूल के आचार्य रामलालजी व उपाध्याय प्रवर राजेश मुनि के सान्निध्य में सोमवार को भीनासर के जवाहर विद्यापीठ परिसर में एक मुमुक्षु ने मुनि व चार मुमुओं साध्वी की दीक्षा ग्रहण की।
साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं के चतुर्विद संघ की साक्षी में ब्यावर के मुमुक्षु आयुष कोठारी -रामानंद मुनि, बाड़मेर-सूरत की मुमुक्षु मनीषा छाजेड़- साध्सी राममुक्ता श्रीजी, भोपालसागर की मुमुक्षु आकांक्षा पोखारना- साध्वी रामाज्ञा श्रीजी , चाबां की मुमुक्षु राखी चोरडिया – साध्वी रामकांता श्रीजी बन गई। नव दीक्षित मुनि व साध्वीवृंद की बड़ी दीक्षा 15 दिसम्बर को गंगाशहर-भीनासर में होगी।
श्री साधमार्गी जैन श्रावक संस्थान, गंगाशहर-भीनासर के अध्यक्ष कौशल दुग्गड़ ने बताया कि 28 जनवरी 2026 को ब्यावर के मुमुक्षु अनीश काठेड़ की भागवती दीक्षा उदासर में होगी। आचार्य रामलालजी म.सा. से के शतम महोत्सव के तहत, अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के संकल्प के अनुसार शतम महोत्सव में 108 मुमुक्षुओं ने दीक्षा ग्रहण की है। इनमें 33 मुनि व 75 साध्वी शामिल है। रामलालजी म.सा. युवाचार्य पद से आचार्य पद में अब तक 97 मुमुक्षुओं ने मुनि तथा 448 ने साध्वी की दीक्षा ग्रहण की है।



अखिल भारतीय साधुमार्गी जैन संघ के अहिंसा प्रचारक महेश नाहटा व गंगाशहर-भीनासर संघ के मंत्री चंचल बोथरा ने बताया कि सभी पांचों मुमुक्षुओं तथा उनके परिजनों का रविवार को अखिल भारतीय साधुमार्गी जैन संघ के अध्यक्ष नरेन्द्र गांधी, पूर्व अध्यक्ष चंपालाल डागा, जय चंद लाल डागा व गौतम रांका व गंगाशहर-भीनासर संघ के पदाधिकारियों व भाजपा नेता मोहन सुराणा ने अभिनंदन किया।
प्रवचन-
आचार्यश्री रामलालजी ने दीक्षा के अवसर पर प्रवचन में कहा कि नियमित प्रार्थना व भजन का लक्ष्य रखे। कुछ समय आत्म व परमात्म चिंतन के साथ परमात्म भक्ति में लगाएं। उन्होंने कहा कि भोजन-पानी से शरीर का तथा भाव भरे भजनों से आत्मा का पोषण होता है। हर श्वास में आत्म-परमात्मा का चिंतन मनन करें। परमात्मा का सुमिरन करें, कोई श्वास खाली नहीं जाएं। परमात्म भक्ति शब्द व मन के भावों के भजनों से होती है। मन के भावों से सराबोर होकर की गई भक्ति अंतर आत्मा तक पहुंचती है तथा आत्म कल्याण का कार्य मिलता है ।



आचार्यश्री ने कहा कि शब्दों से भावों को शिरोधार्य कर भक्ति प्रारंभ करें। आरंभ से अनारंभ तक, प्रवृत से अप्रवृत तक, सागार से आगार की ओर बढ़ने से आत्मा का पोषण होता है। आत्म पोषण से काम, क्रोध, लोभ व मोह आदि कषायों से मुक्ति तथा मोक्ष का मार्ग मिलेगा। परमात्म भक्ति से आत्म को संतुष्ट करने का पुरुषार्थ व प्रयास करें। उपाध्याय राजेश मुनि नवंकार महामंत्र सहित अनेक मंत्रों का जाप करवाते हुए मुमुक्षुओं को पांच महाव्रत का संकल्प दिलवाया। दीक्षा के दौरान संयम के गीत गाए गए तथा आचार्यश्री ने अनेक श्रावक-श्राविकाओं को 2026 में 100 सामायिक व शीलव्रत धारण करने का नियम दिलाया।








