बीकानेर में ज्ञानशाला का वार्षिक उत्सव: बच्चों को संस्कारी बनाने पर जोर

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बीकानेर, 10 अगस्त। बीकानेर के तुलसी साधना केंद्र तेरापंथ भवन में एकादशमधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या शासन श्री द्वय साध्वी मंजू प्रभा जी और साध्वी कुंथु श्री जी के सान्निध्य में ज्ञानशाला का वार्षिक उत्सव बड़े उत्साह और विविध गतिविधियों के साथ मनाया गया।
ज्ञानशाला: संस्कार निर्माण की प्रयोगशाला
साध्वी श्री मंजू प्रभा जी ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि बालक भगवान के रूप होते हैं और वे सरल होते हैं। उन्होंने कहा कि ज्ञानशाला का लक्ष्य बच्चों को संस्कारी, ज्ञानवान और अच्छा इंसान बनाना है। यह बच्चों के बाह्य व्यक्तित्व का विकास करती है और उनमें आत्मविश्वास बढ़ाती है। साध्वी कुंथु श्री जी ने फरमाया कि ज्ञानशाला गुरुदेव श्री तुलसी का एक महनीय उपक्रम है और यह संस्कार निर्माण की प्रयोगशाला है। उन्होंने जीवन की तीन अवस्थाओं—बचपन में ज्ञानार्जन, यौवन में धनार्जन और बुढ़ापे में धर्मार्जन—का उल्लेख करते हुए कहा कि जिसका बचपन अच्छे संस्कारों से भावित हो जाता है, उसकी युवावस्था और बुढ़ापा भी अच्छी तरह व्यतीत होता है। उन्होंने बच्चों को कच्ची मिट्टी के समान बताते हुए कहा कि उन्हें जिस रूप में ढाला जाए, वे ढल जाते हैं। साध्वीश्री ने मां को बालक की प्रथम शिक्षिका बताया, तत्पश्चात ज्ञानशाला संस्कार निर्माण में माध्यम बनती है। उन्होंने जोर दिया कि जो अभिभावक बच्चों को ज्ञानशाला भेजते हैं, उन बच्चों का भविष्य संवर जाता है।

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दोनों साध्वी श्री जी ने ज्ञानशाला के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रशिक्षिकाओं के दायित्व की सराहना की। उन्होंने कहा कि कुशल प्रशिक्षिका से बच्चों को प्रशिक्षण भी अच्छी तरह मिल सकता है, और इस हेतु उन्होंने प्रशिक्षिकाओं के श्रम और समय नियोजन की सराहना की।

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वार्षिक उत्सव की गतिविधियां
वार्षिक उत्सव के अवसर पर ज्ञानार्थियों ने ज्ञानशाला में गतिशील विविध गतिविधियों की जानकारी प्रस्तुत की। आचार्य भिक्षु के त्रिशताब्दी वर्ष के अंतर्गत स्वामी जी के जीवन को अनेक दृश्यों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। आचार्य भिक्षु के प्रमुख श्रावकों जैसे गेरू लाल जी व्यास, टीकम जी डोसी, भिक्षुभक्त शोभ जी और विजय चंद जी पटवा की भूमिका निभाकर उनके परिचय का इतिवृत्त प्रस्तुत किया गया। आमेट की श्राविका चंदू बाई का परिचय भी दिया गया।

सभा अध्यक्ष  सुरपत  बोथरा ने अपने विचार व्यक्त किए और सभी बच्चों का उत्साहवर्धन करते हुए उन्हें सम्मानित किया। एक नन्हे बालक आर्यन बैंगानी ने तेले की तपस्या की थी, जिसका विशेष सम्मान किया गया। कार्यक्रम का कुशल संचालन ज्ञानशाला संयोजिका शांताबाई भूरा ने किया।

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