भगवान नेमीनाथ जन्म कल्याणक पर भक्ति संगीत और स्नात्र पूजा


- आत्महित की अनदेखी न करें – मेहुल प्रभ सागर
बीकानेर, 29 जुलाई। गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणि प्रभ सूरीश्वरजी महाराज के आज्ञानुवर्ती गणिवर्य श्री मेहुल प्रभ सागर , मंथन प्रभ सागर, बाल मुनि मीत प्रभ सागर, साध्वी दीपमाला श्रीजी व शंखनिधि के सान्निध्य में मंगलवार को क्षमा कल्याण वाटिका, ढढ्ढा कोटड़ी में 22वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ का जन्म कल्याणक महोत्सव भक्ति संगीत और स्नात्र पूजा के साथ मनाया गया। बुधवार को खरतरगच्छ स्थापना दिवस मनाया जाएगा। भक्तिमय स्नात्र पूजा का आयोजन- श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट और अखिल भारतीय खरतरगच्छ युवा परिषद की बीकानेर इकाई द्वारा सकल श्रीसंघ के सहयोग से आयोजित चातुर्मास स्थल पर हुई स्नात्र पूजा में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने हिस्सा लिया। पूजा के दौरान “परमात्मा की कृपा से म्हारो आत्मा, आत्मा बन जासी परमात्मा” और “इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कम न होना” जैसे भक्ति गीत गूँज उठे।
भगवान नेमीनाथ के सांसारिक जीवन की बारात के गीत के माध्यम से यह बताया गया कि कैसे उन्होंने शादी में बलि के लिए हजारों पशुओं की चित्कार सुनकर सांसारिक मोह बंधन त्याग दिया और मोक्ष व केवल्य का मार्ग चुन लिया।




प्रवचन: “आत्मा के निज स्वरूप का बोध करें”
गणिवर्य मेहुल प्रभ सागर ने अपने मंगलवार के प्रवचन में कहा कि देवचंद्रजी महाराज ने जिन भक्ति के लिए अनेक छंद लिखे हैं, जो परमात्म भक्ति के महोत्सव में श्रद्धा व विश्वास के प्रमुख आधार बन गए हैं। उनके रचे छंदों से बोधि यानी सम्यक् दर्शन का बीज प्रकट होता है। उन्होंने समझाया कि परमात्मा की वाणी का पानी अंतर में सिंचित करने से सम्यक् दर्शन का बीज अंकुरित होगा।


उन्होंने जोर दिया कि परमात्मा की पूजा आत्महितकारी है। वर्तमान में लोग सांसारिक विषयों और भोग वस्तुओं के पीछे भागकर आत्महित की अनदेखी कर रहे हैं। वे आत्मा पर विभाव या दुर्गुणों का कलुष चढ़ा देते हैं और आत्मा के निज स्वभाव व स्वरूप के ज्ञान से वंचित रहते हैं। मुनिश्री ने कहा कि परमात्मा की पूजा व भक्ति से पाप धुल जाते हैं। परमात्मा भले ही हमें साक्षात स्वरूप में दिखाई न दें, लेकिन उनकी प्रतिमा या विग्रह परमात्म स्वरूप ही है।
भगवान नेमीनाथ के जन्म कल्याणक का यही संदेश है कि हम अपने आत्म-परमात्म स्वरूप को बोध करें तथा मोक्ष के मार्ग पर चलें।