श्रावक सम्मेलन में देव, गुरु और धर्म के प्रति अटूट आस्था पर जोर

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गंगाशहर, 3 अगस्त। तेरापंथ भवन में आज जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा गंगाशहर द्वारा आयोजित श्रावक सम्मेलन में उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार जी स्वामी ने श्रावकों को देव, गुरु और धर्म के प्रति अटूट आस्था रखने का आह्वान किया।
श्रावक के प्रकार और कर्तव्य
मुनिश्री कमल कुमार जी ने बताया कि जैन धर्म में अनुयायियों को श्रावक की संज्ञा दी जाती है, जो चार प्रकार के होते हैं- श्रद्धालु श्रावक,सम्यकत्वी श्रावक, बारह व्रती श्रावक, प्रतिमा धारी श्रावक। उन्होंने जोर दिया कि श्रावक में किसी भी प्रकार का व्यसन नहीं होना चाहिए और उनकी देव-गुरु-धर्म के प्रति गहरी आस्था होनी चाहिए। मुनिश्री ने कहा कि धर्म ध्यान आत्मा के लिए होना चाहिए। उन्होंने आचार्य श्री भिक्षु द्वारा बताए गए श्रावक के दो प्रकारों—विनीत श्रावक और अविनीत श्रावक—का उल्लेख करते हुए विनीत श्रावक बनने की प्रेरणा दी।

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दृढ़ संकल्पित श्रावकत्व का आह्वान
मुनिश्री कमल कुमार जी ने विभिन्न उदाहरणों से श्रावकों को दृढ़ संकल्पित रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने ब्यावर मर्यादा महोत्सव का प्रसंग सुनाया, जहाँ स्थान की समस्या होने पर महिलाओं ने अपनी सजगता और त्याग भावना से उसे हल कर दिया। इसी प्रकार, उन्होंने तुंगिया नगरी के श्रावकों का इतिहास बताया, जिन्होंने अनेक प्रलोभनों और हिंसात्मक प्रवृत्तियों से दूर रहते हुए, कई कष्ट सहकर भी अपने श्रावकत्व को नहीं छोड़ा। मुनिश्री ने गंगाशहर के शानदार इतिहास की सराहना करते हुए सभी से गंगाशहर का सुयश बढ़ाने का आग्रह किया।

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धर्मसंघ के प्रति आस्था और सहयोग
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता युवक रत्न राजेन्द्र सेठिया ने कहा कि श्रावक धर्मसंघ और आचार्य के प्रति अपनी आस्था पुष्ट रखें, अपने दायित्व के प्रति जागरूक रहें, और धर्मसंघ की गौरवशाली परंपरा, रीति-नीति व आदर्शों का अनुसरण करें। उन्होंने श्रावकों को धर्मसंघ की आन-बान और शान के प्रति सजग रहने का संदेश दिया। सेठिया ने कहा कि श्रावक साधु-साध्वियों की साधना में सहयोगी बनें और साधर्मिक श्रावक के प्रति आध्यात्मिक आत्मीयता व प्रमोद भावना रखें। उन्होंने बीकानेर के मदनचन्द जी राखेचा, जोजावर के गणेशमल जी संचेती, सरदारशहर की बोगीबाई बरड़िया, टिकूबाई चिण्डालिया जैसे विशिष्ट श्रावक-श्राविकाओं से संबंधित ऐतिहासिक प्रसंगों को प्रस्तुत करते हुए श्रावकों को श्रद्धाशील, विवेकशील, विनयशील एवं कर्तव्यशील बनने हेतु आह्वान किया।

श्रावकों की तपस्याएँ
इस सम्मेलन में अनेक श्रावकों ने विभिन्न तपस्याओं का पचखान किया:

मुनिश्री नेमिकुमार जी के आज 12 की तपस्या, श्रीमती रेखा खांटेड़ (खिवाड़ा निवासी व बेंगलुरु प्रवासी): 27 दिन की तपस्या (मासखमण), श्रीमती नीतु भंसाली (जोजावर निवासी, बेंगलुरु प्रवासी): 23 आंयम्बिल तपस्या, श्रीमती सरोज देवी गोलछा: 10 दिन की तपस्या, पवन छाजेड़ (तेरापंथी सभा गंगाशहर के उपाध्यक्ष): 24 दिन की तपस्या (आज) श्रीमती तारा देवी बैद: 21 दिन की तपस्या (आज)
इसके अलावा, अनेक भाई-बहनों ने उपवास, बेले, तेले व आयंबिल एकासनों के प्रत्याख्यान किए। गणपत भंसाली और श्रीमती सुधा बोथरा ने 35 एकासन। सुनीता संचेती ने 30 एकासन का प्रत्याख्यान किया।
यह सम्मेलन श्रावकों में धार्मिक चेतना और कर्तव्य बोध को सुदृढ़ करने में सहायक रहा।

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