सम्यक दर्शन की प्राप्ति से अज्ञान दूर होता है -गणिवर्य मेहुल प्रभ सागर



बीकानेर, 12 अगस्त। गणिवर्य श्री मेहुल प्रभ सागर , मंथन प्रभ सागर, बाल मुनि मीत प्रभ सागर, साध्वी दीपमाला श्रीजी व शंखनिधि के सान्निध्य में मंगलवार को अक्षय निधि तप शुरू रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे में कलश स्थापना के साथ शुरू हुआ। दत सूरी तप का समापन 15 अगस्त को जैन समाज के प्रमुख आगम कल्पसूत्र पर क्विज प्रतियोगिता के बाद होगा। तपस्वियों का अभिनंदन 17 अगस्त होगा ।




सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट, अखिल भारतीय खरतरगच्छ युवा परिषद की बीकानेर इकाई की ओर से सकल श्रीसंघ के सहयोग से आयोजित चातुर्मास स्थल पर मंगलवार को कन्हैयालाल भुगड़ी के चौविहार (बिना अन्न जल) के 47 दिन की तपस्या तथा ’’दादा दत्त सूरी’’ ’ व सिद्धि तप के तपस्वियों की अनुमोदना की गई। संघ की ओर से विधिकारक संजय भाई, वरिष्ठ श्रावक महावीर गोलछा व राकेश बैद का राजूजी बैद, देवेन्द्र नाहटा व कन्हैयालाल भुगड़ी ने किया।


गणिवर्य मेहुल प्रभ सागर ने मंगलवार को ढढ्ढा कोटड़ी में प्रवचन में कहा कि सम्यक दर्शन की प्राप्ति से अज्ञान दूर हो जाता है । अज्ञान रूपी अंधेरा ज्ञान रूपी उजाले में परिवर्तित हो जाता है। सम्यक दर्शन की विशिष्ट भूमिका है। सम्यक दर्शन या दृष्टि, शुद्ध बोध, सम्यक बोध व्यक्ति के जीवन में आने से वह आचरण में समाहित हो जाता है। आचरण में आने से व्यक्ति ज्ञान, दर्शन व चारित्र की साधना, आराधना व भक्ति करते हुए त्याग अवश्य करता है। उन्होंने कहा कि परमात्मा के गुणों व आदर्शों की व पहचान करते हुए निष्काम भाव से चिंतन करते हुए सम्यक, दर्शन, ज्ञान व चारित्र की पालना के साथ भक्ति करने वाला भक्त स्वयं अरिहंत व सिद्ध पद को प्राप्त कर लेता है।