धर्म उत्कर्ष मंगल: बीकानेर में गणिवर्य मेहुल प्रभ सागर ने तपस्वियों की अनुमोदना की

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बीकानेर, 5 अगस्त। बीकानेर में आज गणिवर्य श्री मेहुल प्रभ सागर , मंथन प्रभ सागर, बाल मुनि मीत प्रभ सागर, साध्वी दीपमाला श्रीजी और शंखनिधि के साथ चतुर्विध संघ (साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका) ने ढढ्ढा कोटड़ी में विशेष आयोजन किया। इस अवसर पर उन्होंने 40 दिन से चौविहार उपावास (बिना अन्न-जल) की कठोर तपस्या कर रहे वरिष्ठ श्रावक कन्हैयालाल भुगड़ी की अनुमोदना की। साथ ही, ‘दादा दत्त’ व ‘सिद्धि तप’ के साधकों की भी अनुमोदना की गई। ‘दादा दत्त’ तप का समापन 15 अगस्त को होगा।

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दृढ़ आत्मबल और आचरण शुद्धि पर प्रवचन
गणिवर्य श्री मेहुल प्रभ सागर म.सा. ने इस अवसर पर अपने प्रवचन में कहा कि दृढ़ आत्मबल व मनोबल और देव, गुरु व धर्म के प्रति पूर्ण समर्पण से ही बिना अन्न-जल के ऐसी कठिन तपस्या की जा सकती है। उन्होंने मंगलवार को अपने प्रवचन में यह भी कहा कि हमें अपनी धार्मिक, आध्यात्मिक क्रियाओं, कार्यों, व्यवहार और दिनचर्या में आचरण को शुद्ध व पवित्र बनाना चाहिए। उन्होंने परमात्मा की वाणी को आत्मसात करने और प्राकृत, संस्कृत व अन्य भाषाओं में रचित परमात्म वाणी को सीखने व समझने पर जोर दिया। गणिवर्य ने श्रद्धालुओं को अनुशासन में रहकर समर्पण के साथ जैन शासन को संभालने तथा आत्मा की डोर को परमात्मा से जोड़ने की प्रेरणा दी, ताकि आत्मा के अस्तित्व को उत्कर्ष तक ले जाया जा सके।

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धर्म के आधार और तपस्या का महत्व
गणिवर्य ने बताया कि “धर्म उत्कर्ष मंगल है।” धर्म के तीन प्रमुख आधार हैं: अहिंसा, संयम और तप। उन्होंने कहा कि जो इन तीन स्तंभों का आलम्बन लेकर धर्म-ध्यान करता है और अपने मन को धर्म में रमाता है, उसको देवता भी नमस्कार करते हैं। इस अवसर पर, 40 दिन की तपस्या करने वाले तपस्वी भुगड़ी ने बताया कि वे इससे पहले भी 8, 15, 16, 25 दिन और वर्ष 2024 में 31 दिन की तपस्या कर चुके हैं। यह आयोजन जैन धर्म में त्याग, तपस्या और आध्यात्मिक उत्कर्ष के महत्व को दर्शाता है।

 

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