एमजीएसयू इतिहास विभाग के विद्यार्थियों ने किया शैक्षणिक भ्रमण


बीकानेर, 12 दिसंबर। महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय (एमजीएसयू) के इतिहास विभाग के विद्यार्थियों ने आज सागर की छतरियों और देवीकुंड सागर का शैक्षणिक भ्रमण किया। इस दल को कुलगुरु आचार्य मनोज दीक्षित ने परिसर से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।
इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष एवं भ्रमण निदेशक डॉ. मेघना शर्मा ने विद्यार्थियों को इस ऐतिहासिक स्थल के महत्व के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सागर की छतरियां बीकानेर के राव बीकाजी के राजपरिवार के समाधि स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहाँ सोलहवीं सदी के राव कल्याणमल से लेकर बीसवीं सदी के महाराजा करणी सिंह तक के शासकों की छतरियां शामिल हैं। इन छतरियों के निर्माण में दुलमेरा लाल पत्थर, संगमरमर और आधुनिक काल में ग्रेनाइट का भी उपयोग हुआ है, जो स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है।
राजपूत चित्रकला और वास्तुकला का संगम
डॉ. मेघना शर्मा ने छतरियों की कलात्मक विशेषताओं को रेखांकित करते हुए बताया कि इनके गुंबदों की छत पर हिंदू देवी-देवताओं के चित्र, फूलों, पक्षियों और मोर की बारीक नक्काशी की गई है। यह नक्काशी राजपूत चित्रकला का प्रमुख आकर्षण है। उन्होंने बताया कि यह स्थल हिंदू और इस्लामी वास्तुकला का एक सुंदर मिश्रण प्रस्तुत करता है, जो भारतीय संस्कृति की समावेशिता के गुण को परिलक्षित करता है।



डॉ. मुकेश हर्ष ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि देवीकुंड सागर राजपूत परंपरा और पितृ सम्मान की भावना का प्रतीक तो है ही, साथ ही यह बीते युग की गाथाओं, परंपराओं और जनमानस की आस्था का अमर स्मारक भी है।



अद्भुत स्थापत्य कला के उदाहरण
डॉ. रीतेश व्यास ने छतरियों के स्थापत्य के बारे में बताते हुए कहा कि महाराजा अनूप सिंह की छतरी सोलह खंभों पर टिकी है और यह कला एवं स्थापत्य का एक अद्भुत नमूना है। वहीं, महाराजा सूरत सिंह की छतरी सफेद संगमरमर से बनी है, जो अपनी बारीक नक्काशी और आकर्षण के लिए जानी जाती है।
इस शैक्षणिक भ्रमण दल में विभाग के लगभग साठ विद्यार्थियों ने भाग लिया। अतिथि शिक्षकों में डॉ. गोपाल व्यास, जसप्रीत सिंह, डॉ. खुशाल पुरोहित, रिंकू जोशी और भगवान दास सुथार शामिल रहे।








