साध्वी संयमलता का विजयनगर में संदेश- भाई के साथ प्रेम व सौहार्द का व्यवहार अतिउत्तम

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विजयनगर, बंगलौर, 29 जुलाई। ( स्वरूप चंद दांती ) युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वीश्री संयमलताजी ठाणा 4 के सान्निध्य में तेरापंथ भवन, विजयनगर में चातुर्मासिक श्रावण मास के दौरान ‘समकित की यात्रा’ विषय पर प्रवचन माला चल रही है।
समकित और मानवीय संबंधों का महत्व
उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए साध्वी संयमलता ने फरमाया कि प्रत्येक भव्य प्राणी के लिए सिद्धत्व प्राप्त करने हेतु समकित (सम्यक् दर्शन) प्रथम सीढ़ी है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि समकित को प्राप्त करने के बाद उसे सुरक्षित रखना और भी अधिक आवश्यक है। अपने विशेष पाथेय में साध्वीश्री ने कहा कि इंसान का दूसरों के साथ स्नेह और मैत्री का व्यवहार रखना श्रेष्ठ व उत्तम है, परंतु अपने भाई के साथ प्रेम व सौहार्द का व्यवहार अवश्य करे, यह अतिउत्तम है। यह मानवीय संबंधों में गहराई और नैतिकता के महत्व को रेखांकित करता है।

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तप का उत्सव और अभिनंदन
श्रावण मास विशेष रूप से तपस्या का महीना माना जाता है, और विजयनगर में भी श्रावक समाज में तप का उत्सव सा माहौल बना हुआ है। आज दो श्राविका बहनों, श्रीमती रंजना भण्डारी और श्रीमती सुनीता छाजेड़ ने साध्वीश्रीजी से 9 दिवसीय तपस्या का प्रत्याख्यान (संकल्प) किया। साध्वी मार्दवश्रीजी ने इस अवसर पर कहा कि आहार शक्ति है, तो अनाहार (तपस्या) महाशक्ति है।

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तप का अभिनंदन तप द्वारा
तपस्वी बहनों का अभिनंदन करने के लिए एक अनूठी पहल की गई, जहाँ बहनों शीतल चौरडिया ने पंचोला, श्री नवीन गंग ने 6, और मंगलचंद कोचर ने 6 की तपस्या की घोषणा कर उनका अभिनंदन किया। कार्यक्रम शुभ संकल्प और मंगल पाठ के साथ संपन्न हुआ।

 

 

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