राष्ट्रीय कवि चौपाल: ‘हज़ार ज़ख़्म हों तो मुस्कुरा भी लें’ – ग़ज़लों ने बाँधा समां



बीकानेर, 5 अक्टूबर । राष्ट्रीय कवि चौपाल की 536वीं कड़ी आज अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस को समर्पित रही। इस विशेष साहित्यिक कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हरिदास हर्ष ने की, जबकि वरिष्ठ ग़ज़लकार राजेन्द्र स्वर्णकार मुख्य अतिथि रहे। मंच पर विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार सरदार अली पड़िहार और प्रसिद्ध शाइर-कहानीकार क़ासिम बीकानेरी भी मौजूद रहे।
इरशाद अज़ीज़ का हुआ सम्मान
आज की कड़ी का मुख्य आकर्षण राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ ग़ज़लकार इरशाद अज़ीज़ रहे, जिन्हें संस्था द्वारा शॉल, श्रीफल और माल्यार्पण कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ ईश वंदना “वेद विद्या जगति लुप्ता प्रायश: परमेश्वर” से हुआ।




इरशाद अज़ीज़ ने अपनी दार्शनिक ग़ज़ल से सदन का मन मोह लिया: “हज़ार ज़ख़्म हों तो मुस्कुरा भी लें, इस ज़िन्दगी का लुत्फ ज़रा सा उठा भी लें। ख़ुशियाँ तो आनी जानी है मेहमान की तरह, कुछ दिन रूके तो इनको गले से लगा भी लें।”



कलम, चिंतन और रचना संसार
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. हरिदास हर्ष ने अपने बौद्धिक और काव्यात्मक चिंतन को प्रस्तुत किया: “चिन्तन की चिन्ता कर चिंतक सब शांत हुए, चिन्तन चिरंतन हो सोच रहा अन्तर्मन।”
मुख्य अतिथि राजेन्द्र स्वर्णकार ने अपनी रचना और विचार से भरपूर वाहवाही लूटी, जिसमें यह शेर शामिल था: “हो क़लम थामने का फ़र्ज़ अदा, बेज़ुबां हैं, उन्हें ज़ुबां दे जा!”
विशिष्ट अतिथि सरदार अली पड़िहार ने कहा कि, “यौवन जितना रचो उतना कम, लेकिन कलमकार लेखनी में हो दम।” वहीं, शाइर क़ासिम बीकानेरी ने अपनी ग़ज़ल का शे’र पेश करके काव्य गोष्ठी में नया रंग भरा: “दामन के चाक देख, गिरेबां के तार देख/ फ़ुरक़त में किस क़दर हूं, तिरी बेक़रार देख।”
अन्य कवियों और शाइरों की प्रस्तुतियाँ
सागर सिद्दिक़ी: “जिसे लोग कहते है सोने की चिड़िया, बताओ वो भारत कहां है।”
लीलाधर सोनी: “दुःख होता है देखत सुनकर, दुःखी होकर लिखता हूं।”
शिव प्रकाश दाधीज: महंगाई और जनता के मुद्दों पर कटाक्ष।
कृष्णा वर्मा: शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी रात का मनमोहक वर्णन।
कार्यक्रम का संचालन चुटीले अंदाज में शिव दाधीज ने किया, जबकि रामेश्वर साधक ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर हाजी निसार अहमद ग़ौरी, लोकेश लाडणवाल, घनश्याम सौलंकी सहित कई साहित्य अनुरागी उपस्थित रहे।
