संसार: पाप और पुण्य का मैदान- मेहुल प्रभ सागर जी



बीकानेर, 25 सितंबर। रांगड़ी चौक स्थित सुगनजी महाराज के उपासरे में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान, गणिवर्य मेहुल प्रभ सागर जी. ने कहा कि यह संसार वास्तव में पाप और पुण्य का एक मैदान है, जहाँ हर व्यक्ति इन्हीं दो शक्तियों के प्रभाव में खेल रहा है।
पुण्य और पाप का प्रभाव
गणिवर्य श्री ने पुण्य और पाप के उदय से व्यक्ति के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को स्पष्ट किया कि पुण्य के उदय होने पर व्यक्ति को शरीर, सांसारिक विषय भोग और सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। इसके विपरीत, पाप का उदय होने पर व्यक्ति हर समय दुःखी और परेशान रहता है।




जीवन जीने का सही तरीका
उन्होंने शिष्यों को जीवन जीने का सही मार्ग बताते हुए कहा:



अहंकार से बचें: सुख-सुविधाएँ मिलने या पुण्य का उदय होने पर व्यक्ति को इतराकर अहंकार नहीं करना चाहिए।
सावधानी रखें: पाप का उदय होने पर, व्यक्ति को परमात्मा का स्मरण करते हुए सावधानी बरतनी चाहिए।
संसाधनों का सदुपयोग: हमें परमात्मा की कृपा, पुण्य और पुरुषार्थ से प्राप्त हुए संसाधनों का सदुपयोग करते हुए पुण्य के खाते में वृद्धि करनी चाहिए।
मोक्ष की ओर गति: पुण्य में वृद्धि हमें आत्म और परमात्म से जोड़ते हुए मोक्ष के मार्ग की ओर आगे बढ़ाती है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि पुण्य के उदय से धर्म के कार्य अच्छे लगते हैं, जबकि पाप के उदय से अनैतिकता, अनाचार और अधार्मिक प्रवृत्तियाँ आकर्षित करती हैं। इसलिए, हमें हमेशा पाप प्रवृत्तियों का विसर्जन और पुण्य प्रवृत्तियों का सर्जन करना चाहिए।

